Book Title: Jinabhashita 2008 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 28
________________ आवश्यक सहयोग एवं मार्गदर्शन की व्यवस्था भी उपलब्ध है। अभी तक यहाँ की सामग्री का उपयोग करनेवाले सात शोधार्थियों ने अपने शोध प्रबन्ध प्रस्तुत कर विद्यावारिधि की उपाधि अर्जित की है। जिनकी तालिका उनके विषय के साथ निम्न है १. श्रीमती अमिता जैन- डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ( आचार्य विद्यासागरकृत मूकमाटी और हिन्दी महाकाव्य) ३. डॉ. कु. चन्द्रकान्ता जैन- डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ( आचार्य जिनसेनकृत आदिपुराण में प्रतिपादित शिक्षाशास्त्रीय मान्यताओं का वर्तमान सन्दर्भ में परिशीलन ) संग्रहीत इन पुस्तकों का सर्वाधिक उपयोग अनेक जैनसन्त व जैनधर्म के स्वाध्यायी जिज्ञासुओं द्वारा किया जाता है। विश्वविद्यालय में संचालित स्नातक एवं स्नातकोत्तर २. डॉ. सुनील जैन- डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्व के जैनदर्शन के पाठ्यक्रम की उपलब्धता होने से अनेक विद्यालय, सागर (जैन साहित्य में ज्योतिष) छात्र-छात्राएँ भी इन पुस्तकों का उपयोग कर लाभान्वित होते हैं। सहायक गतिविधियाँ ५. सर्वोदय जैनविद्यापीठ एवं स्व. पं. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य पुण्यस्मरण आयोजन समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में राष्ट्रीय प्रतिभा प्रोत्साहन संगोष्ठी का आयोजन भी सफलता पूर्वक सन् २००२ में श्री सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर एवं २००३ में सागर में किया गया। ६. जैन साहित्य के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से एक पुस्तक विक्रय केन्द्र संचालित है, जिसमें निर्धारित छूट के साथ धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध होती हैं । सर्वोदय जैनविद्यापीठ सिद्धायतन, महावीरनगर, छोटा करीला, सागर ४७० ००१ ४. डॉ. वन्दना जैन- डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (विदिशा जिले का सांस्कृतिक अध्ययन : पुरातत्त्व एवं जैनधर्म के विशेष सन्दर्भ में) ५. डॉ. कु. अनीता जैन - रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर (पाणिनि एवं जैनेन्द्र व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन ) ६. डॉ. ब्र. राजेन्द्र कुमार जैन- रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर ( भारतीय योगपरम्परा और ज्ञानार्णव) ७. डॉ. कु. शशि जैन- डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्व विद्यालय, सागर ( आचार्य कुन्दकुन्द और समन्तभद्र के श्रावकाचारों का विशेष अध्ययन ) संस्कृति और संस्कारों की ओर बढ़ते चले, आधुनिक शिक्षा के साथ श्री वर्णी दिगम्बरजैन गुरुकुल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय एवं छात्रावास 1. उच्चतम, स्वच्छंद आवासीय व्यवस्था 2. 6 एकड़ भूमि का विशाल प्राङ्गण 3. आधुनिक सुविधायुक्त अध्ययन कक्ष 4. प्रत्येक कक्षा में सीमित छात्र संख्या 5. प्रशिक्षित एवं अनुभवी शिक्षकों द्वारा अध्ययन 6. धार्मिक क्रियाओं का आगमानुसार प्रशिक्षण 7. सरस शुद्ध सात्विक भोजन व्यवस्था 26 अप्रैल 2008 जिनभाषित इसके साथ ही तीन अन्य शोधार्थी इन ग्रन्थालय का उपयोग वर्तमान में कर रहे हैं, जिनके कार्य शीघ्र ही पूर्ण होने की सम्भावना है। Jain Education International प्रवेश प्रारंभ 8. कम्प्यूटर शिक्षण की व्यवस्था । 9. उच्च संगीतज्ञों द्वारा संगीत - शिक्षा 10. मासिक खेल प्रतियोगिताएँ 11. प्रातः कालीन योगाभ्यास क्रियाएँ 12. वार्षिक उच्च प्राप्ताङ्कों पर शासकीय उच्चाधिकारियों द्वारा सम्मान सम्पर्कसूत्रः अधिष्ठाता - ब्र. जिनेशजी .9301338591, 9425984533, 9301338591, 2672991 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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