Book Title: Jinabhashita 2008 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 34
________________ यह सुनकर आचार्यश्री मंदमंद मुस्कुराते रहे और जनता । समारोह हेतु अपनी स्वीकृति प्रदान करें और वहाँ अपना में तुरंत प्रतिक्रिया हुई कि आगामी विधानसभा चुनाव में | ससंघ सान्निध्य एवं शुभाशीर्वाद प्रदान करें क्योंकि आपके जीतने के लिए आशीर्वाद मांग रहे हैं। इस अवसर पर | ही प्रमुख शिष्य मुनिपुङ्गव श्री सुधासागरजी महाराज के मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार द्वारा कन्या-शिक्षा, जननी- | शुभाशीर्वाद एवं मंगल प्रेरणा से यह अभिनव तीर्थ साकार सुरक्षा और कन्याओं के संरक्षण हेतु प्रारंभ की गई योजनाओं हो रहा है जो आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विश्व की बड़े ही काव्यात्मक ढंग से जानकारी दी जिसका | के पर्यटन मानचित्र पर अपनी दस्तक देने जा रहा है। अतः जनसमूह ने खुले दिल से करतलध्वनि कर समर्थन दिया।| यदि आचार्यश्री के चरण वहाँ पड़ते हैं तो उस तीर्थ के उन्होंने आचार्यश्री को विदिशा में ग्रीष्मकालीन वाचना करने | उत्तरोत्तर विकास को गति मिलेगी। वहाँ आर.के. मार्बल्स तथा उसके बाद भोपाल पधारने हेत विनती की और श्रीफल | परिवार की ओर से विशाल एवं भव्य आदिनाथ जिनालय अर्पित किया। का निर्माण हुआ है वह पर्यटकों को सहज ही आकर्षित आचार्यश्री नारेली जायें करता है और जो भी वहाँ जाता है वह एक अध्यात्म के अ.भा.जैनविद्वत्सम्मेलन के मध्य अ.भा. दिगम्बर रंग से रंगकर निकलता है। उपस्थित जनसमूह ने भी करतल जैन विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष डॉ. शीतलचन्द्र जैन ने | ध्वनि से इसका समर्थन किया। राजस्थानवासियों को आशा राजस्थान के जैनतीर्थों के परिचय के मध्य कहा कि- नारेली | है कि आचार्यश्री अवश्य वहाँ पधारेंगे और उनकी राजस्थान का नवोदित तीर्थ है जहाँ आचार्यश्री के सान्निध्य | मनोकामनापूर्ण करेंगे। में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन होना शेष है। हम | आचार्यश्री की भावना सब राजस्थानवासी आपके शुभाशीर्वाद की प्रतीक्षा में हैं। | अ.भा. जैनविद्वत्सम्मेलन के मध्य परमपूज्य आचार्यश्री डॉ. साहब के वक्तव्य पर टिप्पणी करते हुए सम्मेलन के | ने ज्ञान कल्याणक के महत्त्व को रेखाङ्कित करते हुए जहाँ संचालक डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' ने कहा कि यद्यपि | जिनवाणी के महत्त्व एवं षद्रव्य व्यवस्था पर प्रेरक प्रवचन आचार्यश्री के चरण बुन्देलखण्डवासियों ने पूरे समर्पण- | दिया वहीं सम्मेलन के निदेशक डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' भाव के साथ पकड़ रखे हैं अतः मैं यह तो नहीं कह | एवं संयोजक धर्मदिवाकर पं. लालचन्द्र जैन 'राकेश' आदि सकता कि आचार्यश्री बुन्देलखण्ड छोड़कर अन्यत्र विहार विद्वानों से परस्पर संवाद में भावना व्यक्त की कि जैनसमाज करें किन्तु मैं श्री दिगम्बरजैन ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र नारेली- | में जो संस्थाएँ पहले से कार्य कर रही हैं उन्हें और अधिक अजमेर (राजस्थान) कमेटी की ओर से पूज्य आचार्यश्री | सक्रिय करने की आवश्यकता है इसके लिए समाज को विद्यासागर जी महाराज से यह निवेदन अवश्य करना चाहूँगा तन-मन-धन से सहयोग करना चाहिए। कि वह वहाँ आयोजित होनेवाले पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एल-६५, न्यू इंदिरानगर, बुरहानपुर (म.प्र.) राणा प्रताप का भाट जब वीर-केसरी राणा प्रताप जंगलों और पर्वत-कन्दराओं में भटकते फिरते थे, तब उनका एक भाट पेट की ज्वाला से तंग आकार शहंशाह अकबर के दरबार में पहुँचा और सिरकी पगड़ी बगल में छिपाकर फर्शी सलाम झुका लाया। अकबर ने भाट की यह उद्दण्डता देखी तो तमतमा उठा और रोष-भरे स्वर में बोला 'पगड़ी उतारकर मुजरा देना, जानता है कितना बड़ा अपराध है?' भाट अत्यन्त दीनता-पूर्वक बोला- 'अन्नदाता! जानता तो सब कुछ हूँ, मगर क्या करूँ, मजबूर हूँ। यह पगड़ी हिन्दूकुल-भूषण राणा प्रतापकी दी हुई है। जब वे आपके सामने न झुके, तब उनकी दी हुई यह पगड़ी कैसे झुका सकता था? मेरा क्या है, मैं ठहरा पेट का कुत्ता, जहाँ भी पेट भरन की आशा देखी, वहीं मान अपमान की चिन्ता न करके पहुँच गया। मगर जहाँ-पनाह...' अकबर ने सोचा- 'वह प्रताप कितना महान् है, जिसके भाट तक शत्रु के शरणगत होने पर भी उसके स्वाभिमान और मर्यादा को अक्षुण्ण रखते हैं।' (अनेकान्त, मार्च १९३९ ई.) । श्री अयोध्या प्रसाद गोपलाय : 'गहने पानी पैठ' से साभार 32 अप्रैल 2008 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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