Book Title: Jinabhashita 2008 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ विनाश के कगार पर विरासत मूल अँग्रेजी लेखक : शाहिद हुसैन हिन्दी अनुवादक : एस. एल. जैन यह आलेख 'दि सण्डे इण्डियन' (वॉल्यूम 2, अंक 13 ) 31 दिसम्बर 07 से 6 जनवरी, 08, प्रधान सम्पादक : अरिंदम चौधरी, सम्पादक : ए. सन्दीप, कार्यालय : प्लानमेन मीडिया प्रा. लि., डी-103, ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया, फेज - प्रथम, नई दिल्ली- 110020, Website - www. thesundayindian.com, E-maileditor@thesundayindian.com में शाहिद हुसैन के प्रकाशित लेख 'हेरिटेज अण्डर थ्रेट' का हिन्दी अनुवाद है । ऐसी महत्त्वपूर्ण एवं दुर्लभ सामग्री प्रकाशित करने के लिए 'दि सण्डे इण्डियन' जैनसमुदाय के धन्यवाद का पात्र है। लेखक श्री शाहिद हुसैन, 'दि सण्डे इण्डियन' के सम्पादक एवं प्रकाशक के प्रति भी आभार प्रदर्शित करते हुए 'विरासत के संरक्षण किए जाने की पवित्र भावना से' पाठकों के अवलोकनार्थ यह आलेख हिन्दी प्रस्तुत किया जा रहा है ।) में पाकिस्तान के थार रेगिस्तान में स्थित जैनमंदिर, उपद्रवी तत्त्वों के आक्रमण, चोरी एवं संरक्षण की कमी के शिकार - शाहिद हुसैन द्वारा प्राचीन नगर की यात्रा कर सत्य तथ्य का खुलासा । थार रेगिस्तान भारत के सिन्धु नदी के कछार से पूर्व की ओर फैला हुआ है और भारत में राजस्थान प्रदेश का हिस्सा है तो उत्तर में अरबसागर से सतलुज नदी तक फैला हुआ है। इसी क्षेत्र के सुदूर दक्षिणी भाग में स्थित सिन्धु प्रान्त में थारपारकर जिला है । यह स्थान वर्षाऋतु के पश्चात् जब हरियाली से मनमोहक हो जाता है तब दूषित वातावरण में रहने के लिए बाध्य शहरी परिवार इस सुन्दर प्राकृतिक छटा का आनन्द लेने के लिए भ्रमण करते हैं । विशाल रेत के ढेर ऐसे प्रतीत होते हैं मानो मनोज्ञ देवियों के नृत्यों के आकार जैसे हों। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि यह विशाल रेगिस्तान पहले समुद्र का भाग था । लेकिन शहरी पर्यटकों, जिन्हें अपनी विरासतों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं होती है, के कारण इस थारपारकर में स्थित पुरातत्त्वीय सम्पदाओं को क्षतिग्रस्त करने, बहुमूल्य पुरातत्त्वीय विरासत को चुराने आदि रूप में अत्यन्त खतरा उत्पन्न हो रहा है। Jain Education International ही दण्ड एक साथ दिए जा सकेंगे।' लेकिन इस प्रकार के प्रावधानों के पालन करवाने के लिए उस मन्दिर में कोई सुरक्षागॉर्ड तैनात नहीं किए गए हैं। पाकिस्तान में स्थित 1376 ईस्वी में निर्मित यह गोरीमन्दिर एक प्राचीनतम जैनमन्दिर है, जिसे गैर जिम्मेदार पर्यटकों द्वारा नुकसान पहुँचाया जा रहा है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। इस मन्दिर को कितनी क्षति पहुँचाई जा चुकी है, यह बात इसी से मालूम पड़ती है कि अब यहाँ चिड़ियों के घोंसले एवं चमगादड़ आदि भरे हुए हैं जबकि पहले यहाँ श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता था । कासिम अली - कासिम, पूर्व निदेशक- आर्कियोलॉली एवं म्यूजियम विभाग, दक्षिण संभाग, पाकिस्तान सरकार कहते हैं, कि 'भारत में साठ लाख से अधिक जैन धर्मावलम्बी हैं । हम गोरीमन्दिर को उनके लिए तीर्थस्थान के रूप में विकसित करना चाहते हैं । इसके लिए हमने एक योजना का प्रारूप पाकिस्तान की केन्द्रीय सरकार को भेजा है।' उन्होंने आगे कहा- 'दुर्भाग्यवश पाकिस्तान में मन्दिरों के पुनरुद्धार के लिए कुशल कारीगर नहीं हैं। हम अपने कारीगरों को आवश्यक प्रशिक्षण के लिए भारत भेजना चाहते हैं। अतः हमने 4.2390 करोड़ रुपये का मास्टर प्लान सरकार को स्वीकार करने हेतु प्रस्तुत किया है।' गोमन्दिर नगरपारकर शहर, जिला थारपारकर से २८ किलोमीटर पर स्थित है। उस मंदिर के बाहर पाकिस्तान सरकार के आर्कियोलॉजी एवं म्यूजियम विभाग के डायरेक्टर जनरल द्वारा इस प्रकार की सूचना लगाई गई है- 'एण्टिक एक्ट (1976 का VII) की धारा 19 के अन्तर्गत, यदि कोई भी व्यक्ति, जो इस सम्पदा को क्षति पहुँचाएगा, तोड़फोड़ करेगा, परिवर्तन करेगा, आकृतियों को मिटाएगा, कुछ लिखेगा, पत्थरों से खुदाई करेगा अथवा अपना नाम आदि लिखेगा, तो उसे तीन वर्ष के कठोर कारावास या अर्थदण्ड अथवा दोनों । पुरातत्त्वीय महत्त्व के स्थानों को क्षति हो रही है तो किसी कासिम के अनुसार सिन्ध प्रान्त में 128 पुरातत्त्वीय महत्त्व के स्थान हैं लेकिन पुरातत्त्व विभाग के पास धन की कमी होने के कारण केवल 50 चौकीदार (गॉर्ड) हैं। इन परिस्थितियों में यदि गोरीमन्दिर या थारपारकर के अन्य अप्रैल 2008 जिनभाषित 23 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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