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जीवन का परामर्शदाता कैसा हो ?
डॉ. वीरसागर जैन
व्यक्तित्व के विकास में मनुष्य की अंतरङ्ग योग्यता,। सिंह को हंस की सलाह बहुत ही पसन्द आई। वर्तमान पुरुषार्थ, बाह्य वातावरण आदि अनेक तत्त्वों की | उसने ब्राह्मण को मारने का इरादा छोड़ दिया और उसके महती भूमिका होती है। इन्हीं में से एक अत्यन्त प्रमुख पास जो गजमोती जमीन में छपे हए रखे थे उन्हें अपने तत्त्व है- उसका परामर्शदाता। जिसका परामर्शदाता जैसा | पंजे से निकाल ब्राह्मण देवता को अर्घ्यस्वरूप चढ़ा दिया। होता है उसके व्यक्तित्व का विकास भी वैसा ही होता | ब्राह्मण प्रसन्न हो गया और आशीर्वाद देकर अपने घर है। अथवा यूँ कहिए कि जो मनुष्य जिसे अपना आदर्श | लौट गया। घर में खुशियाँ छा गई। नये-नये वस्त्राभूषण परामर्शदाता, सच्चा सलाहकार बनाता है, उसका जीवन | आ गये और नित्य ही अच्छा-अच्छा भोजन बनने लग उसके अनुसार ही निर्मित होता है।
गया। लेकिन वह ब्राह्मण निरुद्यमी था, अतः थोड़े दिन यूँ तो हमें जीवन में कदम-कदम पर ही अनेकानेक | बाद पुनः निर्धन हो गया। जो लोग निरुद्यमी होते हैं परामर्श देनेवाले मिल जाते हैं। दुनियाँ में बिना माँगे परामर्श | उनके पास कितनी भी सम्पत्ति हो, एक दिन सब समाप्त देनेवालों की कोई कमी नहीं है, भले ही वह सम्बन्धित | हो जाती है। पत्नी के आग्रह से किन्तु लोभवशात् वह विषय से अनभिज्ञ ही हो। किन्तु यह भी कटु सत्य | ब्राह्मण पुनः थोड़े से गजमोती और लेने जंगल में गया। है कि सच्चे परामर्शदाता दुनियाँ में अत्यन्त दुर्लभ हैं। संयोग से उसे उसी स्थान पर वही सिंह पुनः मिल गया। जो व्यक्ति नि:स्वार्थ हो, सम्बन्धित विषय का समीचीन | सिंह ने अपने ब्राह्मण देवता को दूर से ही आते हुए ज्ञाता हो, करुणा-सम्पन्न हो, वही सच्चा परामर्शदाता हो | देख लिया अतः खड़े होकर विनयपूर्वक बोला-"आइए, सकता है।
| आइए, मेरे ब्राह्मण देवता! पधारिए, आपको मेरा बारम्बार __ इस सम्बन्ध में संस्कृत-वाङ्मय के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ | प्रणाम। मैं धन्य हूँ जो आज आपके पुनः दर्शन हुये। 'सम्यक्त्वकौमुदी' में एक बड़ी महत्त्वपूर्ण कथा आती | पिछली बार जब से आपके दर्शन हुये हैं मैं आपको है। एक निर्धन ब्राह्मण था। उसकी पत्नी उसे रोज़ कहती | प्रतिदिन प्रातः प्रातः परोक्ष प्रणाम करता हूँ। और आपके रहती थी कि कहीं से कुछ धन लाओ। एक दिन वह | पुनः पुनः दर्शन की प्रतीक्षा करता रहता हूँ। हे मेरे प्रातः अपनी पत्नी के उलाहनों से तंग होकर जंगल में चला | स्मरणीय देवता! आज तो मैं आपके पुनः दर्शन पाकर गया। सोचा, इससे तो अच्छा है कि मैं मर ही जाऊँ। | सचमुच ही स्वयं को कृतकृत्य महसूस कर रहा हूँ। जंगल में उसे एक शेर मिल गया, जो उसे मारकर खाने आप जरा विराजिए, मैंने इस बार आपके लिए बहुत के लिए उस पर झपटने ही वाला था, किन्तु समीप | से गजमोती इकठे करके रखे हैं। आप स्वीकार कीजिए, में एक वृक्ष के ऊपर बैठे हुए एक हंस पक्षी ने उससे | और मुझे आशीर्वाद दीजिए ताकि मेरी आत्मा का कल्याण कहा-"अरे मृगराज! यह तुम क्या कर रहे हो? जानते | हो।" नहीं हो ये कौन हैं? अरे, ये तो ब्राह्मण देवता हैं। आज | किन्तु आज बाहरी स्थिति में थोड़ा अन्तर था। तुम्हारे किसी महान् भाग्य का उदय हुआ है जो तुम्हें | समीप स्थित वृक्ष पर जहाँ पहले हंस बैठा था, आज इनके दर्शन हुए हैं, वरना इनके तो दर्शन ही महादुर्लभ | उसके स्थान पर एक कौआ बैठा था। सिंह जैसे ही होते हैं। मेरा कहना मानो तो इन्हें मत मारो, पेट भरने | ब्राह्मण देवता को अर्घ्यस्वरूप गजमोती चढ़ाकर प्रणाम के लिए जंगल में जानवरों की कमी नहीं है। इनको | करने को उद्यत हुआ, ऊपर वक्ष की शाखा से वह कौआ मारने से तो तुम्हें ब्रह्महत्या का पाप लगेगा, जिससे तुम | बोला-"अरे ओ सिंह के बच्चे! ये क्या हो गया है तुझको? सैंकड़ों जन्मों में भी मुक्त नहीं हो पाओगे। अतः यदि | ये क्या कर रहा है तू?" सिंह ने हंस से पूर्व में प्राप्त अपना भला चाहते हो तो आज अवसर का लाभ उठाओ हुई सर्व शिक्षा को उसे बता दिया तो कौआ उसकी और इन ब्राह्मण देवता को कुछ अादि चढ़ाकर प्रणाम | हँसी उड़ाते हुए बोला- "अरे, यह सब उसने तुम्हें उलटी करो। यदि इनका आशीर्वाद मिला तो तुम इस पशुयोनि | पट्टी पढ़ा दी है और तुम भोले हो जो उसकी बातों से तिर जाओगे।"
। में आकर उल्लू बन गये हो। अरे, सब आदमी एक
-अप्रैल 2008 जिनभाषित 19
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