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से वह अपने आपके शरीर को वेष्टित करता चला जाता । से, कितनी शक्ति आ जाती है, कितना धैर्य हो जाता है। रेशम के कीड़ों को पालनेवाले जो व्यक्ति हैं, वे | है। हम लोगों ने सोचा था कि कर्म तो बहुत दिन के उनको, जब वे पूर्णरूप से वेष्टित हो चकते हैं तब | हैं और उनको समाप्त करना बहत कठिन है. हम तो उन्हें उबलते हुए पानी में डाल देते हैं, वह लार रेशम | इनके नौकर रहेंगे, चाकर रहेंगे, ये तो मिटने वाला नहीं के रूप में परिवर्तित हो जाता है और रेशम के कीड़े | है। संसार में सबसे अधिक कमजोर पदार्थ है तो वह को जिन्दगी से हाथ धोना पड़ता है। ध्यान रहे कि रेशम 'मोह' है। यह तो आप लोगों की कमजोरी है मन के के कीड़ों को पालनेवाले व्यक्ति उसकी लार को मुख | हारे हार है और मन के जीते जीत। आप डर जाते में से बहा नहीं सकते, उसको खुराक खिलाते चले जाते हैं और वह मोह कुछ संवेदन ही नहीं कर पाता। यदि हैं, और वह स्वयं लार उगलता चला जाता है। यह | आप उसे भगाना चाहें तो वह भाग सकता है, आप उसकी ही गलती है, उसका ही दोष है, अपराध है। उसे रोकना चाहें तो वह रुक सकता है, वह अपनी उसे कोई बांधने वाला नहीं है। जब तक वह लार नहीं | तरफ से कुछ भी तो नहीं करता है। उगलता तब तक कोई उसे उबलते हुए पानी में पटकता | आपके मकान की दीवार से हवा टकराती हुई भी नहीं है।
जा रही है किन्तु वह क्या वहाँ पर रुक रही है? रुक आत्मा प्रत्येक समय मोह, राग, द्वेष, मद, मत्सर | नहीं सकती. चाहें तो भी रुक नहीं सकती। किन्त आप के माध्यम से अपने आपके परिणामों को विकृत बनाता वहाँ पर थोड़ी-सी चिकनाहट रख दीजिये, वहाँ पर हवा चला जा रहा है और फलस्वरूप वहाँ पर कर्म-वर्गणायें के माध्यम से धूलि कण उड़कर आयेंगे ओर चिपक आकर के चिपकती चली जा रही हैं, यह अनन्तकालीन | जायेंगे। यह चिकनाहट की देन है, धूलि की देन नहीं परम्परा अक्षुण्ण चल रही है। आत्मा को न कोई दसरा | है। आप नित्य ही राग-द्वेष मोह मत्सर करते चले जा सुखी बना सकता है, न कोई दूसरा इसको दुःखी बना | रहे हैं, अपने परिणामों को विकृत बनाते चले जा रहे सकता है। यह स्वयं ही सुखी बन सकता है और स्वयं | हैं। इसलिये और नये-नये कर्म आते जा रहे हैं। ध्यान ही दुःखी बन सकता है। यह आत्मा का स्वभाव है | रखिये कि आने की परम्परा टूटी नहीं है इसलिये प्रतीति पर यह अनन्तकाल से इस जाल में फँसा हुआ है तथापि | में आ रहा है कि बहुत दिन की यह धारा टूटेगी नहीं, किसी अन्य सत्ता के माध्यम से पूर्ण समाप्त नहीं हुआ। | ऐसा नहीं है। कर्म बहुत सीमित हैं किन्तु आगे का कोई यह अजर है, अमर है, काल अनन्त है तो आत्मा भी | अन्त नहीं है हम यदि इसी प्रकार करते चले जायेंगे अनन्त है. वह नहीं मिटेगा तो वह भी नहीं मिटेगा। | तो यह सिलसिला टटने वाला नहीं है क्योंकि यह एक क्या यह संसार भी मिटने वाला नहीं है? नहीं, मिटाना | घुमावदार (सर्किल) रास्ता है। है तो एक ही मील का चाहें तो मिट सकता है। राग-द्वेष मोह मिटाये जा सकते | किन्तु घुमावदार होने के कारण सुबह से लेकर शाम हैं किन्तु आत्मा को मिटाने वाला कोई नहीं है। आत्मा | तक चलते चलो तो भी ज्ञान नहीं होता कि कितने चले, मिट नहीं सकती। इससे कुछ बल मिल जाता है कि कितने नहीं चलें, चला तो एक ही मील है, सफर तो हाँ कुछ सम्भाव्य है, कुछ गुंजाइश है उन्नति के लिये, | एक मील का तय हुआ सुबह से लेकर शाम तक, किन्तु चाहना बहुत कठिन है। आप प्रत्येक पदार्थ को | यह तेली के बैल की चाल है। चाह रहे हैं किन्तु निजी पदार्थ की चाह आज तक उद्भूत प्रायः तेली के बैल को कोल्हू से बाँध दिया जाता नहीं हुई। यह मोह ही ऐसा है, क्या करें महाराज! ध्यान | है। आँखे बन्द कर दी जाती है। बैल सोचने लगता रहे, मोह जड़ है और आप चेतन हैं, यह मोह आपको | है कि सुबह से लेकर शाम तक मेरा सफर तय हो प्रभावित नहीं करता अपितु आप मोह से प्रभावित होते | रहा है, शाम को तो कोई अच्छा स्थान मिल ही जायेगा, हैं। तो क्या करें? अतीत में बंधा हुआ जो मोहकर्म | बहुत चलकर आ रहा हूँ। पर शाम को जब पट्टी हटती है ध्यान रहे कि वह अनन्त नहीं है, अतः उसे नष्ट | है तब ज्ञात होता है कि- मैं तो वहीं पर हूँ जहाँ पर करने का प्रयास करें।
कितना बल मिल जाता है साहित्य को देखने अर्जित कर्म बहुत सीमित हैं और संकल्प अनन्त
था।
8 अप्रैल 2008 जिनभाषित
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