Book Title: Jinabhashita 2008 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 6
________________ क्षेत्र कमेटी के कर्ता-धर्ता रहे श्री बाबूलाल जी पाटोदी ने एक साक्षात्कार (सन्मति-वाणी में प्रकाशित) में स्पष्ट कहा है कि 'बावनगजा में पंचामृताभिषेक की परम्परा तथा स्त्रियों द्वारा अभिषेक की परम्परा नहीं हैं' फिर वहाँ इस आयोजन में कतिपय साधुओं द्वारा जिद करना कि पंचामृताभिषेक ही होना चाहिए, यहाँ तक कि महोत्सव का बहिष्कार भी किया, क्या यह उचित है? जबकि यही लोग परम्परा की दुहाई देते हैं। कहीं-कहीं कोई प्रभावशाली व्यक्ति साधु या आर्यिका-विशेष के आग्रह पर या छल-कपट पूर्वक दूध-दही आदि से अभिषेक करवा देता है (कहीं-कहीं आयोजकों का धनसंग्रह का लालच भी इसमें समाहित है). तो इसे परम्परा क्यों माना जाना चाहिए? एक माता जी जानबझकर तेरापंथी-परम्परावाले तीर्थक्षेत्रों पर पंचामताभिषेक करवाती हैं और उसकी वीडियो कैसिट / सी० डी० बनवाकर रखती हैं, ताकि कालान्तर में वहाँ पंचामताभिषेक की परम्परा बताई जा सके, इस प्रवृत्ति पर विराम लगना चाहिए। मुझे इस बात पर घोर आश्चर्य हुआ कि कुछ साधुओं ने स्पष्ट कहा कि 'वे तो मात्र सप्तरंगी कलश देखने आये हैं। यदि ऐसा पता होता कि मात्र जल से अभिषेक होगा, तो इतनी दूर से क्यों आते?' यहाँ विचारणीय है कि इनकी निष्ठा किसमें है? जिनाभिषेक में या कि पंथपोषण में? इस विषय में श्रवणबेलगोल-2006 एवं सिद्धवरकूट 2007 में अपनायी गयी स्पष्ट नीति समाज हित में अनुकरणीय हो सकती है। ____ हमें पूजन-अभिषेक सम्बन्धी क्रियाओं में पक्षपाती, दुराग्रही न होकर आगमसम्मत अहिंसक क्रियायें ही उपादेय हैं। हमें सामाजिक समरसता और उचित संदेश का भी ध्यान रखना चाहिए। जिस तरह बावनगजा में जलाभिषेक के विरुद्ध वातावरण बनाया गया और दैनिक समाचारपत्रों में उसे हवा दी गयी, वह अशोभनीय है। इसकी पुनरावृत्ति से सभी को बचना चाहिए। इस सम्बन्ध में स्थानीय क्षेत्र कमेटी का मौन या मूकदर्शक बने रहना चिन्तनीय है। हम जिसके नेतृत्व में कार्य करें वह भी निष्पक्ष, निर्भीक और स्पष्ट मतवाला होना चाहिए। जब यह लगने लगता है कि "माना ये हमने कि पैसा खुदा नहीं, पर सच ये भी है कि पैसा खुदा से कम नहीं" तो सब कुछ उल्टा-सीधा होने लगता है और जो हो रहा है उसे ही जायज ठहराया जाने लगता है। ऐसे अवसरों पर अन्य मतावलम्बी नेताओं द्वारा बिना शुद्धि के अभिषेक करवाना घोर आपत्तिजनक है। हमारे यहाँ कहा जाता है कि "महाजनो येन गतः स पन्थाः" लेकिन जब महाजन | महापुरुष ही अपने पद और धर्म के विरुद्ध आचरण करें तो हम किसका अनुकरण करें। समाज को इन विषयों में स्पष्ट धर्मसम्मत रवैया अपनाना चाहिए। श्री गोपालदास 'नीरज' की यह पंक्ति बड़ी मौजूं हैं कि साथियो! अपनी मशालें गुल न कर देना अभी, क्या पता इस अम्न के पीछे कोई तूफान हो? ___ डॉ० सुरेन्द्रकुमार जैन 'भारती' काहे को दुनिया बसायी एक बार रास्ते में विहार करते हुए आ रहे थे। एक गाँव से गुजरना हुआ वहाँ दुकान पर एक भजन चल रहा था। "दुनिया बनानेवाले क्या तेरे मन में समायी, तूने काहे को दुनिया बनायी।" इस पंक्ति को सुनकर आचार्यश्री के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी तो साथ में चलनेवाले सभी हँसने लगे। आचार्य महाराज ने कहा। ऐसा कहना ठीक नहीं बल्कि ऐसा कहो- "दुनिया बसानेवाले क्या तेरे मन में समायी तूने काहे को दुनिया बसायी।" संसार में तुम ही फँसे हो, गृहस्थी तुमने ही बसायी है खुद को दोषी कहो भगवान् को दोषी मत कहो। मुनि श्री कुन्थुसागरकृत 'संस्मरण' से साभार 4 फरवरी 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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