Book Title: Jinabhashita 2008 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ शिकायत कागज की कश्ती कुछ देर लहरों में खेली फिर डूब गयी उसे शिकायत है कि किनारों ने उसे धोखा दिया एक ईंट पुरानी दीवार की एक ईंट और गिर गयी लगता है जैसे किसी ने पूछा हो जिन्दगी और कितनी रह गयी? नि:शेष मुझे कहना है अभी वह शब्द जिसे कहकर नि:शब्द हो जाऊँ मुझे देना है अभी वह सब जिसे देकर नि:शेष हो जाऊँ उसने कहा मौत ने आकर उससे पूछामेरे आने से पहले वह क्या करता रहा? उसने कहाआपके स्वागत में पूरे होश और जोश में जीता रहा सुना है मौत ने उसे प्रणाम किया और कहाअच्छा जियो अलविदा... मुझे रहना है अभी इस तरह कि मैं रहूँ लेकिन 'मैं' रह न जाऊँ। 'अपना घर' से साभार AND Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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