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वैसे तो मैंने १८ वर्ष की अवस्था से आज तक एक | मन स्वपरज्ञान में समर्थ हुआ। अब मुझे विश्वास हो बार भोजन किया है, क्योंकि मेरी १८ वर्ष में वैधव्य | गया कि मैं अपनी संसार अटवी को अवश्य पार कर अवस्था हो चुकी थी। तभी से मेरे एक बार भोजन का लूँगी। मेरे ऊपर अनन्त संसार का जो भार था, वह आज नियम था, अब आपके समक्ष विधिपूर्वक उसका नियम | तेरे प्रसाद से उतर गया। लेती हूँ। मेरी यह अन्तिम यात्रा है। हे प्रभो! आज तक मेरा जीव संसार में रुला। इसका मूलकारण आत्मीय
'मेरी जीवनगाथा'/ भाग १/ अज्ञान था, परन्तु आज तेरे चरणाम्बुज प्रसाद से मेरा
पृष्ठ ३९५-४०० से साभार
आपके पत्र
"जिनभाषित' का प्रत्येक अंक मिलते ही उसी । नये वर्ष की (2008) हार्दिक शुभकामनाएँ दिन पूरा पढ़ लेता हूँ, फिर अगले अंक की लम्बी | स्वीकारें। शतायु हों। दिसम्बर 07 'जिनभाषित' मेरे प्रतीक्षा करना पढती है. पूरे एक माह। क्योंकि मासिक सामने है। बहुत रोचक एवं पठनीय लेख इस अंक पत्रिका है। लगता है यह सप्ताहिक होती। अपनी रीति
में समायोजित हैं। जहाँ बोधकथाओं की महक है, नीति के अनुरूप जैनधर्म-दर्शन-संस्कृति के विविध |
| वहीं आचार्य श्री के दोहों में शब्द चमत्कार तथा मुनि आयामों का सम्यक् प्रतिनिधित्व कर रही है यह।
श्री क्षमासागर जी की कविता में भाव-प्रवणता का नवम्बर 07 के अंक में प्रकाशित सभी लेख ज्ञानवर्धक
| सघन अहसास। पूज्य गणेशप्रसाद वर्णी जी का व्यक्तित्व हैं। स्व० डॉ० जगदीशचंद जैन जैसे अन्ताराष्ट्रियख्यातिप्राप्त विद्वान् का 'जर्मनी में जैनधर्म के कुछ अध्येता'
जितना सरल और विनम्र, सम्यकदर्शन पर उनकी नामक लेख हमें जैनधर्म के प्रति विदेशियों के मन लेखनी से प्रसूत सरिता सा सरल प्रवाह। मुनि श्री में आदर और समर्पण की सूचना देता है। ब्र० पं० | प्रणम्यसागर जी का दिव्यध्वनि पर दिव्य आलेख अमरचन्द्र जी का आलेख वर्तमान में मंत्र-तंत्रादि के | शोधपूर्ण तार्किक एवं वैज्ञानिक लगा। मुनि श्री कुंथुसागर बल पर जरूरत से ज्यादा लोकप्रियता और धनसंग्रह | जी के लघु संस्मरण पढ़ने में मीठे और शिक्षाप्रद को मुख्य लक्ष्य बनानेवाले मुनियों को ही नहीं, अपितु हैं। संत के समत्व का स्फुरण जिनसे प्रगट है। मुनि कुछ विधि-विधान कर्ता / प्रतिष्ठाचार्य विद्वानों को | श्री क्षमासागर की 'चिड़िया' भावाकाश की ऊँचाईयाँ आत्मबोध की ओर आने को बाध्य करनेवाला है। अपने परों से तैय करती चोंच में ही जैनदर्शन के बुंदेली बोली (भाषा) में मालती मड़बैया के आचार्य
| तत्त्व-कण दबाये स्वच्छन्द विहग बनी फुदफुदाती हुई श्री विद्यासागर जी के बुंदेल खण्ड क्षेत्र के प्रति विशेष
आत्म-स्वातंत्र्य का रूप-बिम्ब। बुन्देलखण्ड का वैभव, लगाव, झुकाव-विषयक आलेख ने तो दिल को छु
| (श्री राकेश दत्त त्रिवेदी) जैसे कोई हमारी जन्मभूमि लिया। बुंदेली के इस प्रथम आलेख को पढ़कर और |
का यशोगान कर रहा हो। वह भी आचार्यश्री से सम्बन्धित, उनकी आन्तरिक विशेषताओं को पढ़कर बहुत आनन्द आया। मेरा उन्हें
डॉ० सुरेन्द्र भारती को और विस्तारित लिखना विशेष धन्यवाद। इसी प्यारी-प्यारी बुंदेली में आगे भी |
| चाहिए था, आज के पंचकल्याणकों के अभिनव लिखते रहने हेतु। अन्य सभी आलेख भी प्रेरणाप्रद |
| अभिनय अभिनीत पर। वैसे वे कहना तो बहुत चाहते
थे, लेकिन 'जिनभाषित' की अपनी कुछ सीमाएँ हैं। प्रो० फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी'
पं० निहालचन्द्र जैन जैन दर्शन विभागाध्यक्ष
जवाहर वार्ड- बीना (म०प्र०) सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी।। .
हैं।
फरवरी 2008 जिनभाषित 15
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