________________
विक्रमादित्य षष्ठ के शासन का उल्लेख करता है जिसने | हैं कि इस स्थान की महत्तर ख्याति का कारण इस महान् 1076 ई० से 1126 ई० तक शासन किया। लेकिन | आचार्य की ख्याति थी। अभिलेख का वह भाग जिसमें वास्तविक तिथि अंकित अपने उपर्युक्त अध्ययन के समय हमने यह उल्लेख थी, नष्ट हो गया है। तो भी, हम इसे लगभग 11वीं किया है कि कोणकुन्दे या कोण्डकुन्दी स्थान का मूल शती के अन्त का मान सकते हैं।
नाम था और यह कर्नाटक प्रदेश में था। इस स्थान से इस अभिलेख का महत्व त्रिकोणीय है। पहला प्राप्त अधिकांश अभिलेख कन्नड़ भाषा में हैं। कुन्दे, वह इस कथन के समर्थन में आभिलेखिक साक्ष्य प्रस्तुत कुन्द या गुण्ड से अन्त होने वाले नाम सामान्यतः कन्नड़ करता है कि पद्मनन्दि कोण्डकुन्दाचार्य का दूसरा नाम | देश में मिलते हैं यथा मेल-कुन्दे, ओक-कुन्दे नरगुण्ड, था। दूसरा, यह साक्ष्य प्राचीनतम है, क्योंकि कोण्डकन्दाचार्य
नविल-गुण्ड आदि। वेलारी जिला में बल-कुन्दि नाम के प्रथम टीकाकार जयसेन, जिन्होंने पद्मनन्दि के साथ
का एक गाँव है। इस नाम के उत्तरार्द्ध का अभिज्ञान उनकी पहली बार पहचान की, का समय 12वीं शती
कोण्डकुन्दि से किया गया है। यह उल्लेख करना मनोरंजक का उत्तरार्द्ध निर्धारित किया गया है। तीसरा, आचार्य | है कि इस गाँव का मल नाम बल्लकन्दे था, जो निश्चित के जन्म स्थान के सम्बन्ध में, यह अतिरिक्त प्रमाण प्रस्तुत | रूप से कोण्ड-कुन्दे से समाप्त होता था। शब्द व्युत्पत्ति करता है कि आधुनिक कोनकोण्डा या कोण्डकुन्दी | की दृष्टि से कोण्ड और कन्द नाम के दो कन्नड भाग कोण्डकुन्दाचार्य का जन्मस्थान था।
हैं, जिनका प्रायः वही अर्थ है अर्थात् पहाड़ी। कन्नड़ हम यहाँ कुछ और तथ्यों का उल्लेख करेंगे।
कुन्द शब्द तामिल के कुण्णम् का समानवाची है। इस रसासिद्धल पहाड़ी पर के एक अन्य अभिलेख में श्री
प्रकार कोण्डकुन्दे शब्द का अर्थ पहाड़ी बस्ती या ऐसा विद्यानन्द स्वामी का उल्लेख है। संभवतः इसकी पहचान
स्थान होगा जो पहाड़ी पर स्थित हो।° शब्द का यह महान् जैन विद्वान् वादी विद्यानन्द से की जा सकती
शाब्दिक भावार्थ कोण्डकुन्द ग्राम, जो पहाड़ी श्रृंखला के है, जो6 9वीं शती में हुए। वादी विद्यानन्द के सम्बन्ध
समीप है, उसकी स्थिति के सर्वथा अनुरूप है। में यह कहा जाता है कि उन्होंने कोपण और अन्य तीर्थों ।
उपर्युक्त विवेचन से हमें आचार्य के सच्चे और में महान् उत्सव कराये।। जैसा कि पहले कहा जा चुका
सही नाम को, जो कोण्डकुन्द रहा होगा, पहचानने में है, कोण्डकुन्दे एक तीर्थ था और कोण्डकुन्दाचार्य का
मदद मिलती है। संस्कृत लेखकों द्वारा यह कुन्दकुन्द उससे सम्बन्ध होने के कारण निश्चित रूप से श्रद्धा
में परिवर्तित कर दिया गया। यहीं यह भी विचारणीय की दृष्टि से देखा जाता था, अतः यह बिल्कुल संभव
है कि कन्नड़ प्रदेश के अभिलेखों में सामान्यरूप से है कि वादी विद्यानन्द ने इस स्थान का भ्रमण किया
आचार्य का उल्लेख कोण्डकुन्द के ही रूप में किया हो और यहाँ भी किसी प्रकार का धार्मिक समारोह सम्पन्न
गया है। परवर्ती लेखकों ने आचार्य के संस्कृत नाम विरुद किया। तीसरा, यह कहा जाता है कि पहले इस ग्राम
'कुन्दकुन्द' की व्याख्या हेतु कई आख्यान गढ़ लिये। में अनेक जैन परिवार रहते थे जिनमें से कुछ अभी
उदाहरणार्थ, रत्नत्रय बसदि, बीलिगि, उत्तरी कनारा जिला, हाल तक विद्यमान थे।
बम्बई राज्य के सोलहवीं शती के अभिलेख1 में निम्नांकित इस स्थान से प्राप्त पुरावशेषों के मौलिक अध्ययन
विशिष्ट कहानी मिलती है। एक बार एक दुष्ट मनुष्य से हमारा विश्वास है कि कोनकोण्डला या कोण्डकुन्दी प्रारम्भिक समय से लेकर आधुनिक काल तक जैनधर्म
ने, जो आचार्य से शत्रुभाव रखता था, आचार्य की कोठरी का एक केन्द्र था और कोण्डकुन्दाचार्य का जन्मस्थान
में एक सुरापात्र छिपाकर रख दिया और राजा के समक्ष था। डॉ० उपाध्ये18 इस आचार्य का समय लगभग पहली
उसके निन्द्य चरित्र की शिकायत की। आचार्य को पात्र शती ई० निर्धारित करते हैं। तो भी, यह शंका करने |
T R P के साथ दरबार में बुलाया गया और आश्चर्य अपने पवित्र के संकेत हैं कि यह स्थान इस आचार्य के, जो इस
मन्त्रयोग से उन्होंने उसे चमेली के फूलों से युक्त पात्र नाम के कारण प्रसिद्ध हआ, जन्म से पहले भी जैनधर्म | में बदल दिया। तब से मुनि कुन्दकुन्द अर्थात् चमेली का केन्द्र था। हम यह भी सम्भावना व्यक्त कर सकते | के पात्र के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
20 फरवरी 2008 जिनभाषित
Jain Education International
For Private & Personal use only
-www.jainelibrary.org