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२. उसके सामने धर्ममय जीवनपद्धति के विनष्ट होने का संकट नहीं होता।
३. उसका मन रागद्वेष से मुक्त न होकर मृत पति के प्रति तीव्रराग से और विधवाजीवन के कष्टों के प्रति भीरुताजन्य द्वेष से ग्रस्त होता है।
४. सतीमरण से न तो मरनेवाली स्त्री को कोई धार्मिक लाभ होता है, न उसके मृत पति को। संस्कृत के सुप्रसिद्ध गद्यकवि बाणभट्ट स्वरचित 'कादम्बरी' नामक उपन्यास में सतीमरण को अत्यन्त अज्ञानतापूर्ण एवं अहितकर कृत्य बतलाते हुए लिखते हैं
"यदेतदनुमरणं नाम तदतिनिष्फलम्, अविद्वज्जनाचरित एष मार्गः। --- अत्र हि विचार्यमाणे स्वार्थ एव प्राणपरित्यागोऽयम् असह्यशोकवेदनाप्रतीकारत्वादात्मनः। उपरतस्य तु न कमपि गुणमावहति। ---असावप्यात्मघाती केवलमेनसा संयुज्यते।" (कादम्बरी/महाश्वेतावृत्तान्त/पृ.१११-११२/चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी)।
अनुवाद- "यह जो अनुमरण (सतीमरण) है, वह अत्यन्त निष्फल है। यह अज्ञानियों के द्वारा अपनाया जानेवाला मार्ग है। --- विचार करके देखा जाय, तो यह प्राणपरित्याग स्वार्थ ही है, क्योंकि यह असह्यवेदना से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। जिसके लिए प्राण त्यागे जाते हैं, उसका इससे कोई लाभ नहीं होता। --- और आत्मघात करनेवाला भी केवल पाप से लिप्त होता है।"
किन्तु संन्यासमरण या सल्लेखनामरण न तो मृत्यु के अपरिहार्य कारण के अभाव में किया जाता है, न धर्ममय जीवनपद्धति का विनाश करनेवाले कारण के अभाव में, न ही जीवन के असह्य कष्टों से भीरुता के कारण। तथा सल्लेखनामरण से पापमय, अनैतिक जीवनपद्धति को ठुकराने और पापकर्मों के बन्धन से बचने का लाभ होता है। इस प्रकार सल्लेखनामरण और सतीमरण में परस्पर अत्यन्त वैषम्य है। अतः सल्लेखनामरण को सतीमरण के समान आत्मघात नहीं कहा जा सकता। वास्तविक हत्याओं और आत्महत्याओं पर ध्यान दिया जाय
जैनधर्म का सल्लेखनाव्रत, जो आत्महत्या नहीं है, उसे आत्महत्या नाम देकर न्यायालय द्वारा अवैध घोषित कराने का प्रयत्न करनेवाले महाशय से मेरा अनुरोध है कि वे एक अनावश्यक, धर्मविरोधी, लोकहितविरोधी, धर्मनिरपेक्षताविरोधी एवं लोकतंत्रविरोधी कृत्य में अपनी शक्ति का अपव्यय करने की बजाय प्रतिदिन हजारों की संख्या में हो रही कानून-सम्मत वास्तविक हत्याओं और आत्महत्याओं को अवैध घोषित कराने का अत्यावश्यक पुण्यकार्य सम्पन्न करें।
सन् १९७१ तक भारत में गर्भपात करना व कराना कानूनन अपराध माना जाता था, किन्तु वर्ष १९७१ में भारत सरकार ने The medical Termination of Pregnancy Act, 1971 बनाकर परिवार-नियोजन के लिए अपनाये गये गर्भनिरोधक साधनों के विफल रहने पर गर्भपात कराने को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी, जिससे प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में भ्रूणहत्याएँ की जाने लगीं। सम्पूर्ण भारत में लगभग ५१ लाख ४७ हजार गर्भपात प्रतिवर्ष हो रहे हैं और इस संख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। (देखिए , श्री गोपीनाथ अग्रवाल द्वारा लिखित लघुपुस्तिका 'गर्भपात : उचित या अनुचित : फैसला आपका'/ पृष्ठ १७-१८/प्रकाशक-प्राच्य श्रमणभारती, १२/ए , प्रेमपुरी, निकट जैन मंदिर, मुजफ्फरनगर२५१००१/ई.सन् १९९८)।
सल्लेखना से तो वर्षभर में दो-चार ही मृत्युएँ होती हैं, किन्तु गर्भपात से प्रतिवर्ष ६०-७० लाख भ्रूणहत्याएँ हो रही हैं। सल्लेखनाधारी को तो मृत्यु से बचाया ही नहीं जा सकता, क्योंकि सल्लेखना तब ग्रहण की जाती है, जब उपसर्ग, रोग आदि के रूप में उपस्थित हुआ मृत्यु का कारण अपरिहार्य हो जाता है। अतः जिसे मरने से बचाया ही नहीं जा सकता, उसे बचाने की निरर्थक कोशिश करने की बजाय, जिन मानव-शिशुओं का जीवन अभी विकसित ही हो रहा है, जिनकी स्वाभाविक मृत्यु अभी वर्षों दूर है, उनकी कानून की सहमति से गर्भ में ही करायी जा रही हत्या को रोकना सर्वप्रथम आवश्यक है। सल्लेखना को अवैध घोषित कराने के लिए प्रयत्नशील बन्धु पहले विशाल स्तर पर
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