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से अपव्यय हो रहा है, सभी उसका सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं।। जितना काम करे, उसे उसके अनुरूप वेतन मिलना चाहिए, फिर
एक समय वह भी था, जब धनसंपत्ति का संग्रह होता भी | चाहे वह मनुष्य हो या पशु भी क्यों न हो। सभी को समान था, तो एक दूसरे के उपकार के लिय होता था। धन का उपयोग | अधिकार है जीने का। यह कहलाती है शासन व्यवस्था! यही धार्मिक अनुष्ठानों मे होता था। जो धन दूसरों का हित करनेवाला राजा का धर्म है। आज इस धर्म के पालन में कमी आ जाने से था वही धन आज परस्पर द्वेष और कलह का कारण बना है। 'मैं | सभी दुख का अनुभव कर रहे हैं। हमें अधर्म से बचकर मानवधर्म किसी को क्या है। इस प्रकार की स्वार्थ भावना मन में आ गयी | के लिए तत्पर रहना चाहिये। है। इसी लिए धन का उपयोग कैसे करें, कहाँ करें, इस बात का गाँधी जी के माध्यम से भारत को स्वतंत्रता मिली। उनका विवेक नहीं रहा। अर्जन करने की बुद्धिमानी तो है, लेकिन सही- उद्देश्य मात्र भारत को स्वतंत्रता दिलाने का नहीं था। व्यक्तिसही उपयोग करने का विवेक नहीं है। जैनधर्म का कहना है कि व्यक्ति स्वतंत्रता का अनुभव कर सके, प्राणीमात्र स्वतंत्र हो और उतना ही उत्पादन करो, जितना आवश्यक है। अनावश्यक उत्पादन | सुख शान्ति प्राप्त करे यह उनकी भावना थी। सब संतों का, में समय और शक्ति मत गँवाओ। धन का संग्रह करने की अपेक्षा | धर्मात्मा पुरुषों का उद्देश्य यही होता है कि जगत् के सभी जीव जहाँ पर आवश्यक है, वहाँ पर लगाओ। इसी में सभी का हित | सुख शान्ति का अनुभव करें। एक साथ सभी जीवों को अभय देने निहित है।
की भावना हर धर्मात्मा के अंदर होती है, होनी भी चाहिए। इस बहुत दिन पहले की बात है। राज्यव्यवस्था और राज्य- | बात का प्रयास सभी को करना चाहिये। शासन कैसा हो, इस बारे में एक पाठ पढ़ा था। उस राजा के राज्य | प्राणी मात्र के भीतर जानने देखने की क्षमता है। पशुपक्षी में धीरे-धीरे प्रजा की स्थिति दयनीय हो गयी। राजा के पास | | भी हमारी तरह जानते देखते हैं। किसी-किसी क्षेत्र में उनका बार-बार शिकायतें आने लगीं। राजा ने सारी बात मालूम करके इन्द्रियज्ञान हमसे भी आगे का है। यहाँ आप बैठे सुन रहे हैं, कमियों का दूर करने के लिए सख्त आदेश दे दिया। कहा दिया | लेकिन आप ही मात्र श्रोता हैं ऐसा नहीं है। पेड़ के ऊपर बैठी कि हमारे राज्य में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सो सकता। यदि | चिड़िया भी सुन सकती है। कौआ भी सुन सकता है, बंदर भी भूखा सोयेगा तो दण्ड दिया जाएगा। कोई भूखा हो, तो अपनी | सुन सकता है और ये सब प्राणी भी अपने जीवन को धर्ममय बना बात राजा तक पहुँचाने के लिए एक घंटा भी लगवा दिया। सकते हैं। बनाते भी हैं। पुराणों के अंदर ऐसी कथाओं की भरमार
एक दो दिन तक कुछ नहीं हुआ। तीसरे दिन घंटा बजने है। इन कथाओं को पढ़कर ऐसा लगता है कि हम लोगों को तो लगा। घंटा बजते ही जो सिपाही वहाँ तैनात था उसने देखा कि | | अल्प समय में बहुत उन्नति कर लेनी चाहिए। बात क्या है? घंटा बजानेवाला वहाँ कोई व्यक्ति नहीं है, एक आज से आप लोग यह संकल्प कर लें कि नये कपड़े या घोड़ा अवश्य था। किसी ने घंटे के ऊपर थोडा सा घास अटका | अन्य कोई उपयोगी सामग्री खरीदने से पहले पुराने कपड़े और दिया था, उसको खाने के लिए वह घोडा सिर उठाता था. तो घंटा | पुरानी सामग्री दयापूर्वक, जिसके पास नहीं है, उसे दे दें। परस्पर बजने लगता था। राजा तक खबर पहुँची। राजा ने सोचा कि जरूर | एक दूसरे का उपकार करने का भाव बनायें। यह घोड़ा भूखा है। उसके मालिक को बुलाया। पूछा गया कि इस युग में गाँधी जी ने अपने जीवन को 'सिम्पल लिविंग बोलो- यह कितने दिन से भूखा था। अन्नदाता, मैंने इसे जानबूझकर | एण्ड हाई थिंकिंग', 'सादा जीवन उच्च विचार' के माध्यम से भूखा तो नहीं रखा'- उस घोड़े के मालिक ने डरते-डरते कह | उन्नत बनाया था। वे सदा सादगी से रहते थे। भौतिकशक्ति भले दिया। राजा ने पुनः प्रश्न किया कि फिर यह भूखा क्यों है? तब | ही कम थी, लेकिन आत्मिक शक्ति, धर्म का सम्बल अधिक था। वह कहने लगा कि अन्नदाता! इस घोड़े के माध्यम से मैं जो कुछ उनके अनुरूप भी यदि आप अपना जीवन बनाने के लिए संकल्प भी कमाता हूँ, उसमें कमी आ गयी है। पहले लोग जो किराया कर लें, तो बहुत सारी समस्याएँ समाप्त हो जायेंगी। जितनी देते थे, अब उसमें कमी करने लगे हैं। मेरा तो एक बार भोजन से | सामग्री आवश्यक है, उतनी ही रखें, उससे अधिक न रखें, इस काम चल जाता है, पर इसके लिए कहाँ से पूरा पड़ेगा। मैंने सोचा | प्रकार परिमाण कर लेने से आप अपव्यय से बचेंगे, साथ ही कि अपनी बात यह स्वयं आपसे कहे, इसलिए इसके माध्यम से | सामग्री का संचय नहीं होने से सामग्री का वितरण सभी के लिए घंटा बजवा दिया। अब आप ही न्याय करें।
सही ढंग से होगा। सभी का जीवन सुखद होगा। देश में मानवता राजा हँसने लगा। वह सारी बात समझ गया कि कमी कायम रहेगी और देश की संस्कृति की रक्षा होगी, आत्म कल्याण कहाँ है? मनुष्य-मनुष्य के बीच जो आदान-प्रदान का व्यवहार
होगा। है, उसमें कमी आ गयी है। उसी दिन राजा ने आज्ञा दी कि जो |
'समग्र' चतुर्थ खण्ड से साभार
- नवम्बर 2006 जिनभाषित 13
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