Book Title: Jinabhashita 2006 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 14
________________ सौंदर्य प्रसाधन-सामग्री भी आप मुँह माँगे दाम देकर । स्थान पर हानि हुई और हिंसा भी बढ़ गयी। आप सही तरीके से खरीदते हैं, जीवन का आवश्यक कार्य समझकर उसका उपयोग | सोचें, तो ज्ञात होगा कि सभी क्षेत्रों में, सामाजिक क्षेत्र में आर्थिक करते हैं। क्या जानबूझकर आप उसमें होनेवाली अंधाधुंध हिंसा | क्षेत्र में, शैक्षणिक क्षेत्र में ऐसा कोई भी कार्य नहीं हुआ, जिसकी का समर्थन नहीं कर रहे हैं? आप रात्रि-भोजन नहीं करते, अभक्ष्य | तुलना हम पूर्वपरम्परा से कर सकें और उसे अधिक लाभकारी पदार्थ नहीं खाते, पानी छानकर पीते हैं, नियमित स्वाध्याय करते | कह सकें। हैं, पर हिंसा के साधनों का उपयोग करके हिंसा का समर्थन करते आप लोग चुपचाप सब बातें सुन रहे हैं। जीवन में परिवर्तन हैं। इन नश्वर शरीर की सुंदरता बढ़ाने के लिए आज कितने जीवों | लाने का भी प्रयास करिये। अपनी संतान को इस प्रकार की शिक्षा को मौत के घाट उतारा जा रहा है! दध देनेवाली भोली-भाली गायें, भैंसे दिनदहाड़े मारी जा रही हैं। खरगोश, चूहे, मेंढक और | एम.बी.बी.एस. हो जाये, इंजीनियर या ऑफीसर हो जाये। ठीक बेचारे बंदरों की हत्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और आप है पर उसके भीतर धर्म के प्रति आस्था, संस्कृति के प्रति आदर चुप हैं। सब वासना की पूर्ति के लिए हो रहा है। पशुओं को | और अच्छे संस्कार आयें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये। जो सहारा देना, उनका पालन पोषण करना तो दूर रहा, उनके जीवन कार्य आस्था के बिना और विवेक के बिना किया जाता है, वह को नष्ट होते देखकर भी आप चुप हैं। कहाँ गयी आपकी दया, बहुत कम दिन चलता है। भीतर उस कार्य के प्रति कोई जगह न कहाँ गया आपका लम्बा चौड़ा ज्ञान-विज्ञान, कहाँ गया आपका हो, तो खोखलापन अल्प समय तक ही टिकता है। उच्च शिक्षा मानव धर्म? के साथ मानवीयता की शिक्षा भी होनी चाहिये। आज मुर्गी पालन केंद्र के नाम पर मुर्गियों को जो यातना नवनीत और छाँछ ये दो तत्त्व हैं। जिसमें सारभूत तत्त्व दी जा रही है, वह आपसे छिपी नहीं है। मछलियों का उत्पादन | नवनीत है. पर आज उसे छोडकर हमारी दृष्टि मात्र छाँछ की ओर उनकी संख्या बढ़ाने के लिए नहीं, उन्हें मारने के लिए हो रहा है। जा रही है। अपनी मल संस्कृति को छोडकर भारत. पाश्चात्य उस सबकी शिक्षा दी जा रही है, लेकिन दया की उत्पत्ति, | संस्कृति की ओर जा रहा है। यह नवनीत छोड़कर छाँछ की ओर अनुकम्पा की उत्पत्ति, और आत्म-शान्ति के लिए कोई ऐसी जाना है। बंधुओ, ज्ञान धर्म के लिए है मानवता के लिए है। यूनिवर्सिटी, कोई कालेज या स्कूल कहीं देखने में नहीं आ रहा।। मानव-धर्म ही आत्मा का उन्नति की ओर ले जाने वाला है। यदि मुझे यह देखकर बड़ा दुख होता है कि जहाँ पर आप लोगों ने धर्म | ज्ञान दयाधर्म से संबंधित होकर दयामय हो जाता है, तो वह ज्ञान के संस्कारों के लिए विद्यालय और गुरुकुल खोले थे, वहाँ भी हमारे लिये हितकर सिद्ध होगा। वे आँखें भी हमारे लिए बहुत धर्म का नामों निशान नहीं है। सारे लौकिक विषय वहाँ पढ़ाये | प्रिय मानी जायेंगी, जिनमें करुणा, दया अनुकम्पा के दर्शन होते जाते हैं, लेकिन जीव दया पालन जैसा सरल और हितकर विषय | हों। अन्यथा इनके अभाव में मानव जीवन नीरस प्रतीत होता है। रंचमात्र भी नहीं है। आज सहनशीलता , त्याग, धर्मवात्सल्य और सह अस्तित्व आज नागरिकशास्त्र की आवश्यकता है। ऐसा नागरिक- | की भावना दिनोंदिन कम होती जा रही है। प्रगति के नाम पर शास्त्र जिसमें सिखाया जाए कि कैसे श्रेष्ठ नागरिक बनें, कैसे | दिनोंदिन हिंसा बढ़ती जा रही है। भौतिकता से ऊब कर एक दिन समाज का हित करें, कैसे दया का पालन करें! उस नागरिक | बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भी धर्म की ओर मुड़ने को मजबूर होना शास्त्र के माध्यम से हम सही जीवन जीना सीखें और दूसरे | पडेगा, हो भी रहे हैं। कैसे जियें! कैसा व्यवहार करें! ताकि प्राणियों को अपना सहयोग दें। पशुओं की रक्षा करें। उनका | जीवन में सुख शान्ति आये, इन प्रश्नों का समाधान आज विज्ञान सहयोग भी अपने जीवन में लें। के पास नहीं। अनावश्यक भौतिक सामग्री के उत्पादन से समस्याएँ जहाँ पहले पशुओं की सहायता से खेतों में हल चलाया बढ़ती जा रही हैं। धन का भी अपव्यय हो रहा है। शक्ति क्षीण हो जाता था, चरस द्वारा सींचा जाता था, वहाँ अब ट्रेक्टर और पंप आ रही है। हमें इस सबके प्रति सचेत होना चाहिए। गया। जमीन का अनावश्यक दोहन होने लगा और कुएँ खाली हो हम जब बहुत छोटे थे, उस समय की बात है। रसोई गये। चरस चलने से पानी धीरे-धीरे निकलता था, जमीन में | परोसने वाले को हम कहते थे कि रसोई दो बार परोसने की अपेक्षा भीतर धीरे-धीरे घुसता चला जाता था, जमीन की उपजाऊ शक्ति | एक बार ही सब परोस दो। तो वह कह देते थे कि हम तीन बार बनी रहती थी, पानी का अपव्यय नहीं होता था। इस सारे कार्य में | परोसे देंगे, लेकिन तुम ठीक से खाओ तो। एक बार में सब पशुओं का सहयोग मिलता था। उनका पालन भी होता था। परोसेंगे तो तम आधी खाओगे और आधी छोड दोगे। इसी प्रकार मशीनों के अत्यधिक प्रयोग से यह सब नष्ट हो गया। लाभ के | आज हर क्षेत्र में स्थिति हो गयी है। बहुत प्रकार का उत्पादन होने 12 नवम्बर 2006 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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