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समाचार प्रो०प्रेम सुमन जैन को पालि-प्राकृत राष्ट्रपति अवार्ड | सही रूप में मरण और जीवन की व्याख्या की है। यह
उदयपुर 18 अगस्त । महामहिम राष्ट्रपति महोदय, भारत | संगोष्ठी इस दिशा में सार्थक बनेगी, ऐसी आशा है। सरकार द्वारा स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 2005 के पावन | परम पूज्य मुनिश्री सुधासागर जी ने अपने उद्बोधन अवसर पर देश के सेवानिवृत्त संस्कृत/अरबी-फारसी/पालि- में कहा कि साधना का जीवन जीने पर ही मरण की कला प्राकृत के 22 मूर्धन्य विद्वानों को राष्ट्रपति अवार्ड प्रदान करने |
सीखी जा सकती है। भगवती आराधना के ग्रन्थकार स्वयं की घोषणा की है। उनमें राजस्थान में उदयपुर के प्रोफेसर साधक मुनि थे। उन्होंने बारीकी से समाधिमरण के प्रयोगों प्रेम सुमन जैन को पालि-प्राकृत भाषा के अवार्ड के लिए को समझाया है। विद्वानों को उन पर ध्यान देना चाहिए।
चुना गया है। डॉ० जैन को यह राष्ट्रपति पुरस्कार आगामी | समाधिमरण तपस्या की चरम परिणति है। उससे जीवनदिनों में राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में प्रदान किया | मरण से छुटकारा मिलता है। जायेगा। पुरस्कार स्वरूप राष्ट्रपति प्रशस्ति के साथ प्रो० जैन संगोष्ठी निदेशक प्रोफेसर प्रेम सुमन जैन ने संगोष्ठी के को भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष पचास हजार रुपये की | निष्कर्ष के प्रमुख बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अध्येतावृत्ति आजीवन प्राप्त होगी।
यह प्राकृत भाषा के प्रमुख ग्रन्थ भगवती आराधना और नन्दलाल नावेडिया, सचिव | समाधिमरण विषय पर एक ऐतिहासिक संगोष्ठी है, जिसमें
64 शोध आलेख प्रस्तुत हुए और जिसमें लगभग 300 जैनविद्या उदयपुर (राजस्थान) में भगवती-आराधना
के विद्वानों ने प्रतिभागी के रूप में भाग लिया। विद्वानों का अनुशीलन संगोष्ठी सम्पन्न
| अभिमत है कि आचार्य शिवार्य दिगम्बर परम्परा के प्राकत उदयपर (राज.) में 2006 के ऐतिहासिक चातुर्मास | ग्रन्थकार थे. जिनका समय लगभग ईसा की प्रथम शताब्दी में विराजित आध्यात्मिक सन्त मुनिपुंगव श्री 108 सुधासागर होना चाहिए। उनका यह ग्रन्थ भगवती आराधना प्राकृत जी महाराज ससंघ के पावन सान्निध्य में 1, 2, एवं 31
काव्य, भाषा, दर्शन और भारतीय संस्कृति का समृद्ध ग्रन्थ अक्टूबर 2006 को अ.भा. त्रयोदश विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन | है। इसका मुख्य विषय-समाधिमरण की अवधारणा और हआ, जिसका विषय था- 'भगवती-आराधना-अनुशीलन | प्रक्रिया पर प्रकाश डालना है। संगोष्ठी का यह सर्वसम्मति सल्लेखना के परिप्रेक्ष्य में'। इस संगोष्ठी में देशभर से पधारे | से प्राप्त अभिमत है कि सल्लेखना की साधना जीवन के 70 विद्वानों ने अपने शोध आलेखों को प्रस्तुत किया और | आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त करने की एक अहिंसक और लगभग 250 विद्वानों ने संगोष्ठी की परिचर्चा में भाग लिया।| विवेकपूर्ण साधना पद्धति है। जैनधर्म की यह प्राचीन तपस्या संगोष्ठी के प्रायः सभी शोध आलेखों पर जैनविद्या के निष्णात |
साधना है। इसकी आत्मघात, इच्छामृत्यु, दयामृत्यु, सतीप्रथा मनीषी मुनिश्री सुधासागर जी ने अपनी समीक्षा प्रस्तुत की, | आदि से कोई समानता नहीं है। जो इस संगोष्ठी की विशेष उपलब्धि रही।
प्रोफेसर प्रेम सुमन जैन, निदेशक, संगोष्ठी उद्घाटन सत्र के प्रमुख अतिथि मोहनलाल सुखाड़िया के कुलपति प्रोफेसर बी.एल. चौधरी ने अपने उद्बोधन में
___ शास्त्रिपरिषद् एवं विद्वत्परिषद् का प्रथम संयुक्त कहा कि बिना वैराग्य भावना के समाधिमरण नहीं होता।
अधिवेशन अतः समाधिमरण की साधना ईश्वरत्व के साथ जीने की उदयपुर (राजस्थान) स्थित श्री पार्श्वनाथ दि. जैन साधना है। इसका आत्मघात आदि आवेश में की जाने वाली | मंदिर, उदासीन आश्रम, अशोकनगर में आध्यात्मिक संत हिंसक घटनाओं के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। मीडिया की | मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री गम्भीरसागर यह अपरिपक्वता है कि उसने तपस्यायुक्त संथारा आदि को | जी महाराज एवं क्षुल्लक श्री धैर्यसागर जी महाराज के सतीप्रथा, दयामृत्यु आदि के साथ जोड़कर मिथ्या प्रचार | सान्निध्य में अ.भा.दि. जैन शास्त्रिपरिषद् एवं अखिल किया। समाचार जगत् को भारत की धार्मिक परम्पराओं का | भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् का प्रथम खुला संयुक्त गहराई से अध्ययन करना चाहिए। आत्मा के अमरत्व को | अधिवेशन डॉ. श्रेयांस कुमार जैन (अध्यक्ष-अ.भा.दि. जैन मानने वाले इस देश में मृत्यु का भय कैसा? जैन परम्परा ने | शास्त्रिपरिषद्) एवं डॉ. शीतलचन्द जैन (अध्यक्ष-अ.भा.दि.
नवम्बर 2006 जिनभाषित 31
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