Book Title: Jinabhashita 2006 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ मुनिश्री क्षमासागर जी की कविताएँ उसने कहा मौत ने आकर उससे पूछा, मेरे आने से पहले वह, क्या करता रहा? उसने कहा, आपके स्वागत में पूरे होश और जोश में जीता रहा। सुना है मौत ने उसे प्रणाम किया और कहा, अच्छा जियो अलविदा। सोच एक वे हैं जो ये सोच कर जी रहे हैं कि एक दिन मरने का तय है तो आज अभी ठाठ से जियो एक तुम हो जो ये सोच कर मर रहे हो कि आज अभी यदि मौत आयी है तो शान से मरो ये तो हम हैं जो इस सोच में न जी पा रहे हैं न मर पा रहे हैं कि तुम क्यों शान से मर रहे हो कि वे क्यों ठाठ से जी रहे हैं? ज़िन्दगी-भर हम जिन्दगी-भर जीते हैं कुछ इस तरह कि जैसे जीना नहीं चाहते जीना पड़ रहा है और मरते वक्त मरते हैं कुछ इस तरह कि जैसे मरना नहीं चाहते मरना पड़ रहा है शायद इसीलिए हमें जीवन दुहराना पड़ रहा है! वीर देशना जो विवेकी जन परीक्षा करके निर्दोष देव, शास्त्र, गुरु और चारित्र की उपासना किया करते हैं, वे शीघ्र ही कर्म-सांकल को काटकर पवित्र व अविनश्वर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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