Book Title: Jinabhashita 2006 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 28
________________ जैन समाज को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समुदाय घोषित किया जाय अरुण जैन सदस्य-म.प्र. राज्य अल्पसंख्यक आयोग स्वतंत्रताप्राप्त भारत में कभी भी किसी ने किसी अन्य धर्म । फासला है, (डॉ. राधाकृष्णन 'एसेज़ ऑन हिन्दू धर्म', पृष्ठ के प्रति या उनके पवित्र धार्मिक स्थलों के साथ दुर्भावना या | 100-173)। इत्यादि, जो इस धर्म की अति प्राचीनता और छेड़खानी नहीं की है, हमारा देश पूर्णरूपेण एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र | | अनादिकाल से इसके अस्तित्व की पुष्टि करते हैं। है और इस गौरव को बनाये रखने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी देश के जैन धार्मिक समुदाय के धार्मिक रीति-रिवाज, परम्पराओं, प्रत्येक नागरिक तथा शासन की है। लाखों धर्मावलम्बी यात्री सेवा | संस्कृति, भाषा, स्थापत्य एवं कला के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय स्तर एवं दर्शनार्थ देश-विदेश के कोने-कोने से प्रतिवर्ष यहाँ आते-जाते | पर जैन समुदाय की धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय की विचारधीन हैं। हमारी प्राचीन संस्कृति एवं सम्पदाओं और पुरातत्त्व की अपनी माँग का स्वीकार करते हुए नौ राज्यों द्वारा नीतिगत निर्णय लेकर अहमियत है, जो पावन एवं वंदनीय है। यदि 350 वर्ष का राम | अपने-अपने राज्यों में उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा विधिवत् मंदिर या 800 वर्ष का पूर्ण ध्वस्त सोमनाथ मंदिर का पुनः निर्माण | घोषित किया गया है, कुछ राज्यों में इसका क्रियान्वयन होना शेष एक बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक आस्था का प्रमाण है, तो देश | है। अतः यदि राष्ट्रीय स्तर पर जैनसमुदाय को अल्पसंख्यक घोषित के अल्पसंख्यक समुदायों की आस्था एवं उनकी धार्मिक भावनाएँ | कर दिया जावे, तो राज्यों की विभिन्नता एवं भ्रमात्मक तुलनाओं भी उसी समान सम्मान की अधिकारी हैं। धर्मस्थल, धार्मिक | के निराधार विश्लेषण समाप्त हो जायेंगे। भावनाएँ, आस्थाएँ, संस्कृति-संस्कारों की रक्षा, शैक्षणिक उत्थान | गौरतलब हो कि भारत के महारजिस्ट्रार तथा जनगणना एवं धर्मस्थलों को सुरक्षित रखने, तथा अल्पसंख्यक समुदायों की | आयुक्त, नई दिल्ली द्वारा भारत की जनगणना 2001 का विस्तृत इन सामाजिक सार्वजनिक मूलभूत आवश्यकता को दृष्टिगत रखते | विवरण विगत 6.9.2004 के धर्म के आंकड़ों पर प्रथम प्रतिवेदन हुए ही, भारतीय संविधान के कर्णधारों ने देश के धार्मिक, भाषायी, | नाम से शासन ने जारी किया है, जिसमें देश की कुल आबादी का अल्पसंख्यक समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित रखने | बहुभाग हिन्दूधर्मावलंबियों समुदाय का जो कि 82 प्रतिशत है प्रावधान एवं उनके संरक्षण को प्राथमिकता के अनुक्रम में | तथा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों में मुस्लिम समुदाय 13.2, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 में समाहित कर धार्मिक | ईसाई समुदाय 2.41, सिख समुदाय 1.92, बौद्ध धार्मिक समुदाय भाषायी अल्पसंख्यक समुदायों को एक संवैधानिक कवच बिना 0.8 एवं जैन समुदाय 0.4 प्रतिशत, देश की कुल जनसंख्या में कोई भेदभाव रखे रखा है। शासन पर इन्हें संरक्षित, सुरक्षित रखने | घोषित किए गए हैं। जो स्पष्ट प्रमाण है, इस समुदाय के धार्मिक एवं उनके पूर्ण संरक्षण की जिम्मेदारी एवं दायित्व है। ये समुदाय | भाषायी अल्पसंख्यक समुदाय होने के, जिसके आधार पर अन्य अपनी भाषा संस्कृति की रक्षा सुरक्षा का पूर्ण संवैधानिक अधिकार | समुदायों को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित किया गया है। रखते हैं। यही नहीं भारतीय संविधान के उपासना स्थल (विशेष | जैन धर्म के अनादिकाल से अकाट्य प्रमाण हैं, जो इसके उपबंध) अधिनिमय 1991 की अधिनियम संख्या 42 दिनांक | अति प्राचीन होने की पुष्टि करते हैं। परिस्थितयाँ विस्फोटक हों, 18.9.91 के तहत किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप | उसके पहले जनहित में, राष्ट्रहित में केन्द्रीय शासन को यथोचित इत्यादि के सरंक्षण-सुरक्षा हेतु भी स्पष्ट निर्देश दिये हैं। कदम उठाने होंगे, ताकि राज्यों द्वारा अपनाई जा रही अलगाववादी नीतियों पर और भ्रामक गतिविधियों पर अविलम्ब रोक लग जैन धर्म एक अति प्राचीन धर्म है, जिसके प्रथम तीर्थंकर सके। इतिहास का परिहास बन्द होना चाहिए। भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) से शताब्दियों तक चलने वाली यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँकि जैन समुदाय को एक अल्पसंख्यक तीर्थंकरों की श्रृंखला में अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर हैं, जो आज से लगभग 26 सौ वर्ष पूर्व हुए थे। प्रसिद्ध विद्वान समुदाय मानते हुए इस समुदाय के हितों के संरक्षण की माँग के जी.जे.र.फरलांग ने कहा है कि जैनधर्म सम्भवतः भारत का सबसे बावजूद मैं अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा नहीं देता तथा प्राचीन धर्म है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय अखंडता के लक्ष्य के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हूँ। जैन की पुस्तक ('डिस्कवरी ऑफ इंडिया', पृष्ठ 72-73) में स्पष्ट धर्मावलंबियों ने राष्ट्र की मुख्य धारा में रहकर राष्ट्र के आर्थिक, लिखा है कि जैन एवं बौद्धधर्मावलम्बी शतप्रतिशत भारतीय चिन्तन | शैक्षणिक, वाणिज्यिक, राजनैतिक, नैतिक, पत्रकारिता, समाजएवं संस्कृति की उपज हैं, किन्तु वे हिन्दूधर्मावलम्बी नहीं हैं। वैदिक | सेवा, वैज्ञानिक एवं स्वतंत्रता समर, आदि पक्षों के साथ चारित्रिक और जैन धर्मों के मूलभूत सिद्धान्तों में दो ध्रवों की भाँति का | अभ्युत्थान में सदा ही अग्रणी भूमिका निबाही है। 26 नवम्बर 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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