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३. निर्मल चारित्र के धारी आचार्यों को "वंदित्ता" । के लिए 'विश्ववंदनीय' लगता है। पूर्वाग्रह से मुक्त होकर शब्द से नमस्कार किया गया है।
इस पर भी विचार किया जाए कि आचार्य को कितने ऊँचे बहुसत्थ अत्थजाणे, संजमसम्मत्तसुद्धतवयरणे
| विशेषण से विभषित किया जावे? 'परमात्मा' के लिए लगाये वंदित्ता आयरिए कसायमलवज्जिदे सुद्धे ॥१॥
| जानेवाले विशेषणों से आचार्य को सम्बोधित न किया जाए बोधप्राभृत
क्योंकि वह छद्मस्थ हैं, सर्वज्ञ नहीं। ४. परमात्मप्रकाश में श्रावकों को कहा गया है कि
उक्त संगोष्ठी में विद्वानों की आम सहमति यह देखी जिन्होंने मुनिवरों को दान नहीं दिया और पंचपरमेष्ठियों की
| गयी कि आर्यिकाओं की परम्परा से 'वंदामि' शब्द से वंदना नहीं की, उन्हें मोक्ष की प्राप्त कैसे हो सकती है?
विनयभक्ति की जा रही है, जो इतनी जल्दी नहीं छोड़ी जा
सकती, लेकिन सैद्धान्तिक रूप से यह सहमति भी मिली दाणुण दिण्णउ मुणिवरहँणवि पुज्जिउ जिणणाहुँ।
कि केवल पंचपरमेष्ठियों के लिए 'नमोऽस्तु' या 'वंदामि' पंचण वंदिय परम-गुरूकिमुहोसइ सिव-लाहु॥२/१६८॥
का प्रयोग आगमसिद्ध है। इन प्रमाणों के परिप्रेक्ष्य में यह प्रश्न मैं विद्वानों के
जवाहर वार्ड, बीना फोन : (07580)224044 विचारार्थ छोड़ता हूँ कि आगम से परिपुष्ट विनय-भक्ति के
सम्पादकीय टिप्पणी - यह सत्य है कि आचार्य लिए 'आर्यिका' माता जी को क्या 'वन्दामि' कहना चाहिए
कुन्दकुन्द ने निर्ग्रन्थ मुनियों की तुलना में सग्रन्थ आर्यिकाओं या 'इच्छाकार'? अब तो 'आर्यिकाएँ अपनी महापूजन तक
के प्रति ‘इच्छाकार' ('इच्छामि' शब्द के उच्चारण) द्वारा करवाने लगी हैं और करवानेवाले को पुरस्कृत भी किया
विनय प्रकट करने का उपदेश गृहस्थों को दिया है, तथापि जाने लगा है।
११वीं शती ई० के इन्द्रनन्दी ने 'नीतिसार समुच्चय' में, वस्तुतः 'वन्दना' शब्द का अवमूल्यन हुआ है। हर | १३वीं शती ई० के पं० आशाधर जी ने सागारधर्मामृत में तथा ब्रह्मचारी भैया या ब्रह्मचारिणी दीदी अपने लिए 'वन्दना'
उसके बाद के 'सिरिवालचरिउ' में आर्यिकाओं को वन्दना' कहलवाने के लिए प्रेरित करती हैं। उनकी विनय के लिए
या 'वन्दामि' शब्द से वन्दनीय बतलाया है। (देखिए, 'जय-जिनेन्द्र' किया जावे जैसा श्रावक के लिए किया जाता
| "जिनभाषित' के इसी अंक में पं० रतनलाल जी बैनाड़ा का है। एक दूसरे शब्द का भी अवमूल्पन हुआ है। कुछ आचार्य ।
जिज्ञासा-समाधान)। अपने नाम के पूर्व विशेषण के रूप में 'विश्ववंदनीय' लगाने
सम्पादक पर उसका निषेध न करके गौरान्वित होते हैं, जबकि तीर्थंकर ।
डॉ. यतीश जैन राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित । संयमी, श्रावक की षट् आवश्यक क्रिया में निपुण और
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रसिद्ध पर्यावरणविद, | हर धार्मिक कार्यों में हमेशा अग्रेसर रहने वाले थे। | शिक्षाविद्, लेखक डॉ. यतीश जैन को महामहिम राष्ट्रपति
अरुण पन्नालाल जैन डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा रानी दुर्गावती
डॉ. मुकेश जैन की पुस्तक का विमोचन विश्वविद्यालय, जबलपुर में आयोजित 21 वें दीक्षांत समारोह
'मध्यप्रदेश की मृणमूर्ति कला' पर इतने अच्छे ग्रंथ में अर्थशास्त्र विषय में तीन स्वर्ण पदक एवं प्रशस्ति पत्र
का प्रकाशन एक महत्त्वपूर्ण कार्य है और मैं इस साहसिक प्रदान कर सम्मानित किया गया।
कार्य के लिये डॉ. मुकेश जैन को हार्दिक बधाई देता हूँ। श्रीमती ज्योति जैन
उक्ताशय के उद्गार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई
दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. सुखदेव थोरात ने विश्वविद्यालय पन्नालाल जी जैन कुसुंबा वालों का निधन
द्वारा आयोजित सम्मान समारेह में उक्त ग्रंथ का विमोचन कुसंबा (महाराष्ट्र) के श्री पन्नालालजी जिवलालजी |
करते हुए व्यक्त किये। कार्यक्रम के अध्यक्ष रानी दुर्गावती ने ९४ वर्ष में दिनांक २३.०९.२००६ को प्रातः २ बज के |
विश्वविद्यालय, जबलपुर के कुलपति डॉ. एस.एम.पाल ५५ मिनिट पर णमोकार महामंत्र का उच्चारण करते हुए |
| खुराना ने अपनी शुभकामनाएँ दी। इस नश्वर शरीर का त्याग किया। श्री पन्नालाल जी मुनिभक्त, ।
सुरेश सरल, 293, गढ़ाफाटक, जबलपुर
-नवम्बर 2006 जिनभाषित 25
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