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द्वारा देवयोनि प्राप्त होती है। देव कोई भी वैसे शुभ काम का | सूर्यहास खड्ग शम्बुकुमार ने सिद्ध किया परंतु उससे भी अधिक उपार्जन नहीं कर सकता। इसी कारण देव मरकर पुन: देव शरीर | पुण्यशाली लक्ष्मण ने उसे सहज में प्राप्त कर लिया। इसलिए सुख नहीं पा सकते। इसके सिवाय तीर्थंकर, चक्रवर्ती, नारायण आदि | शांति पाने के लिये अर्हन्त भगवान् की पूजा उपासना तथा दान व्रत भी मनुष्य ही होते हैं जिनकी सेवा देवगण किया करते हैं । अनेक | आदि धर्म सेवन करना चाहिए जिससे पुण्य कर्म उपार्जन हो और मंत्रवादी अपने मंत्र बल से देव देवियों को अपने वश में कर लेते | जिसके द्वारा सुख प्राप्त हो। हैं। इसके सिवाय जन्म मरण की परंपरा समाप्त करके मुक्तिपद शासन देवी देवताओं के सिवाय संसार में और भी अनेक भी मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है। इस कारण देवों में यद्यपि | मिथ्यादृष्टि देवी देवता हैं उनकी पूजा आराधना तो और भी साधारणतः शारीरिक विशेषताएं होती हैं। किन्तु आध्यात्मिक | अधिक बुरी है क्योंकि उससे आत्मा का और भी पतन होता है। विशेषताएँ मनुष्य में ही विकसित होती हैं । मनुष्य ही अपने आत्मा | आत्मा के पतन का कारण मिथ्यात्व है । मिथ्या देवी देवताओं की के समस्त गुणों का पूर्ण विकास करके त्रिलोक पूज्य परमात्मा बन | भक्ति पूजा से मिथ्या श्रद्धा (मिथ्यात्व) मिलती है। मिथ्या श्रद्धा जाता है। वह अर्हन्त परमात्मा समस्त देवों से भी पूज्य होने के से ही लोग बकरा, मुर्गी, भैंसा आदि जीव-जंतुओं का निर्दयता से कारण देवाधिदेव कहलाता है।
कत्ल करके देवी देवताओं को भेंट करते हैं और अनेक मान्याताएँ आत्मा को महात्मा और परमात्मा बनाने के लिए उन्हीं | मानते हैं। यह सब देवमूढ़ता है। आत्म श्रद्धालु सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा देवाधिदेव अर्हन्त भगवान् की आराधना की जाती है। अर्हन्त | किसी भय, आशा, लोभ से रागीद्वेषी देवी देवताओं की पूजा भक्ति भगवान की पूजा भक्ति करने से सौधर्मेन्द्र, यक्ष यक्षिणी आदि देव | नहीं करता है। देवियों को आत्म श्रद्धा होकर सम्यग्दर्शन हो जाता है। ऐसे | अज्ञानता के कारण भोले लोग सड़क पर लगे हुए मील सम्यग्दष्टी देव कभी-कभी धर्मात्मा स्त्री पुरुषों पर, मुनियों पर | के पत्थरों को भी पूजने लगते हैं। तथा तीर्थंकरों पर कोई विपत्ति या उपसर्ग आजाने पर धर्मानुराग एक बार एक नगर में एक राजा की सवारी निकलनी थी, से सहायता करके उपद्रव दूर कर दिया करते हैं। जैसे कि भगवान् | अतः उस सड़क की खूब सफाई और पानी का छिड़काव किया पार्श्वनाथ का उपसर्ग धरणेन्द्र पद्मावती ने दूर किया था, सीता | | गया। म्युनिसिपलिटी (नगरपालिका) के कर्मचारी सफाई का के अग्निकुण्ड को पानी में परिणत कर दिया था, सुदर्शन सेठ की | ध्यान बराबर रख रहे थे। इधर राजा हाथी पर सवार होकर आ शूली सिंहासन बना दी थी।अत: मंत्रवादी मनुष्य मंत्र सिद्ध करके रहा था उधर उसी समय सड़क पर एक कुत्ते ने टट्टी कर दी। ऐसे देवों की सहायता से लौकिक कार्य सिद्ध किया करते हैं तथा | म्युनिसिपलिटी के सफाई करने वाले अधिकारी ने देख लिया, चमत्कार दिखला कर जनता में धर्म का प्रभाव फैलाते हैं। उसने इधर-उधर देखा परंतु वहाँ पर कोई मेहतर दिखाई न दिया।
यदि आत्मा की शुद्धता की दृष्टि से देखें तो सम्यग्दृष्टि देव | तब उसने टट्टी को छिपाने के लिये अपने गले में से फूलों की तथा शासन चौथे गुणस्थानवर्ती असंयत सम्यग्दृष्टी होते हैं। अतः | माला उतार कर उस कुत्ते की टट्टी पर डाल दी। राजा की सवारी जो मनुष्य सम्यग्दृष्टी नहीं हैं वही मनुष्य उनको नमस्कार कर | वहाँ से निकल गई। सकता है, सम्यग्दृष्टि मनुष्य को सांसारिक इच्छाएँ या सांसारिक | | लोगों ने देखा कि यहाँ पर फूलों की माला रखी हुई है तो सख अभीष्ट नहीं होते अत: वह अर्हन्त भगवान के सिवाय अन्य | यहाँ कोई देव होगा। अत: दूसरे मनुष्य ने भी उस पर फूल चढ़ा किसी को न नमस्कार करता है, न आत्मशुद्धि के लिये उसे आदर्श | दिये, तीसरा मनुष्य भी कोई नया देव मानकर फूल चढ़ा गया, इस मानता है। कभी धर्म प्रभावना के लिये उन देवों की सहायता से | तरह देखा देखी जो भी मनुष्य सवार उधर आया उसने वहाँ फूल चमत्कार दिखला देते हैं। जैसे मुसलमानी शासन के समय अनेक देखकर किसी नये दवे का उदय उस स्थान पर जानकर फूल चढ़ा बार भट्टारकों ने दिखलाये थे।
दिये, इस तरह वहाँ थोड़ी ही देर में फूलों का ढेर लग गया और ऐसे चमत्कारों को देखकर कुछ अज्ञानी पुरुष ऐसे देवी- उसका नाम भी फूलों का देवता प्रसिद्ध हो गया। देवताओं की पूजा करने लगते हैं और उससे धन, सम्पत्ति, स्त्री, तब एक बुद्धिमान मनुष्य आया उसने सोचा कि दो घंटे पुत्र आदि पदार्थ पाने की प्रार्थना किया करते हैं। यह देव मूढ़ता | पहले यहाँ कोई भी देवी-देवता न था अब अचानक कहाँ से कोई
देव आ गया? अपनी शंका दूर करने के लिए उसने जब सब फूलों धन, सम्पत्ति, पुत्र, मित्र, स्त्री आदि सुख-सामग्री पुण्य | को हटाया तो वहाँ पर कुत्ते की टट्टी निकली। कर्म के उदय से मिलती है यदि पूर्व भव में पुण्य कर्म का उपार्जन | ऐसे ही देखा-देखी पीपल, जंडी, दुइया, चौराया आदि में न किया हो तो चाहे जितने देवी-देवताओं की पूजा उपासना की | भी अज्ञानी स्त्री-पुरुष देवी देवता की कल्पना करके उनको पूजते जावे, चाहे जितने मंत्र साधन किये जावें, सुख-सामग्री नहीं मिल | हैं। यह सब देव मूढ़ता है। देवमूढ़ता से बचकर शुद्ध बुद्ध वीतराग सकती। रावण ने रामचंद्र लक्ष्मण को युद्ध में जीतने के लिये कितने | सर्वज्ञ अर्हन्त परमात्मा के सिवाय अन्य किसी देवी-देवता की मंत्र सिद्ध किये, बहुरूपिणी विद्या भी सिद्ध कर ली परंतु राम- | पूजा आराधना भक्ति नहीं करनी चाहिये। लक्ष्मण के तीव्र पुण्य के सामने कोई भी काम न आया। देवाधिष्ठित
'उपदेशसार संग्रह' (द्वितीय भाग) से साभार
. 10 फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित
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