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जा सकता है।
से जिनदत्ता को मारने के लिए विद्या भिजवाई गई। जिनदत्ता धार्मिक ४. यन्त्रों की विधि पूर्वक प्रतिष्ठा होनी चाहिए। इसके लिए | सेठानी थी अत: उस विद्या ने बजाय जिनदत्ता को मारने के बन्धुश्री प्रतिष्ठाचार्यों से चर्चा करना आवश्यक है। जिस यन्त्र की प्रतिष्ठा की लड़की कनकधी को तलवार से मार डाला। जब वाद में बन्धुश्री नहीं हुई है वह यन्त्र कार्यकारी नहीं होता। वर्तमान में बहुत से यन्त्रों | का अभिप्राय सभी नगर के लोगों को मालूम पड़ा तब वहाँ की के चित्र बाजार में बिकते हैं उनको फोटो में जड़कर कमरे में उच्च | शासन देवी ने जिनदत्ता का सम्मान करते हुए नगर के मध्य पञ्चाश्चर्य स्थान पर लगा लेना उचित कैसे माना जाये यह विचारणीय है।। प्रकट किए।
५. अपने घर में किसी यन्त्र का रखना वर्तमान में उचित ३. पृष्ठ १२६ पर कहा है 'बसुमित्रा वेश्या ने सोमासती को प्रतीत नहीं होता। आजकल स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी शुद्धि | मारने के लिए एक विषधर सर्प घड़े में रखकर भेजा। सोमासती ने लगभग समाप्त सी देखी जा रही है, पुरुषों में भी शौचादि के वस्त्र | जब उसे निकाला तो वह पुष्पमाला बन गया और जब उसे वसुमित्रा संबंधी शुद्धि के प्रकरण लुप्त हो गये हैं, सौन्दर्य प्रशाधन की की लड़की कामलता के कण्ठ में डाला तो वह माला सर्प बन गई सामग्रियों में चर्बी आदि अशुद्ध पदार्थों का इस्तेमाल प्रचुर मात्रा में | और उसने वेश्या की लड़की को डस लिया। जब राजा ने सोमा को हो रहा है, रेशम चमड़ा तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग लगभग सभी पकड़कर बुलवाया तब सोमा के स्पर्श से कामलता विष रहित हो ग्रहस्थ करते हैं। अत: घरों में शुद्धि समाप्त हो चली है। फिर भी । गई। सोमा के शील की प्रशंसा हुई और देवों ने पञ्चाश्चर्य प्रकट यदि किसी को यन्त्र घर में रखना ही हो तो किसी उच्च एवं पवित्र | किए। स्थान पर अथवा अपने गृह के धर्मसाधन कक्ष में उच्च स्थान पर ४. पृष्ठ १५० पर कहा है - 'मंत्री के द्वारा प्रभुस्मरण पूर्वक, सिंहासन आदि में उचित सम्मान पूर्वक यन्त्र रखा जाना चाहिए।। अपने नियम के पालन के लिए जब लोहे की तलवार को लकड़ी
६. यन्त्र आदि को अपने गले में पहन लेना या अपने कुर्ते की तलवार बनाया गया तब पूरे नगर में मंत्री की प्रतिज्ञा पालन की या पेन्ट की या कुर्ते की जेब में रखे पर्स में रखे रहना बिल्कुल उचित | प्रशंसा हुई और देवों ने पञ्चाश्चर्य प्रकट किए। नहीं है।
५. पृष्ठ २०० पर कहा है- 'उमय नामक व्यक्ति के अज्ञात ७. हवनकुण्ड में जो छल्ले, अंगूठी आदि डाले जाते हैं वे | फल न खाने का नियम था प्रसंग वश उसकी धर्म की दृढ़ता देखकर मन्त्रित तो हो जाते हैं, परन्तु उनका प्रयोग लघुशंका आदि के समय | देवों ने उसको सिंहासन पर बिठाया और पञ्चाश्चर्य प्रकट किए। अथवा अशुद्ध स्थानों में किए जाने से मंत्र की अवमानना का दोष इस प्रकार के और भी कई प्रकरण इस ग्रन्थ में दृष्टिगोचर लगता है, अत: विवेकशील गृहस्थों को ऐसा नहीं करना चाहिए। |
. जिज्ञासा- क्या देव, तीर्थंकर व ऋषियों के आहार एवं प्रश्नकर्ता - पं.आलोकशास्त्री, ललितपुर समवशरण आदि केवली भगवान के प्रसंगों के अलावा किन्हीं जिज्ञासा - औदयिक भावों में लिंग को तो लिया है परंतु अन्य प्रसंगों में भी पञ्चाश्चर्य प्रकट करते हैं या नहीं? हास्यादिक नो कषायों को क्यों नहीं लिया?
समाधान- शास्त्रों में तीर्थंकरों एवं महामुनियों के आहार समाधान - तत्वार्थसूत्र अध्याय-2, सूत्र-6 'गतिकषाय दान के अवसर पर पञ्चाश्चर्य के प्रसंग बहुत पढ़ने में आते हैं। | ........' की टीका करते हुये आ. विद्यानंद महाराज ने श्लोकवार्तिक समवशरण या गन्ध कुटी के बनने पर भी देव पञ्चाश्चर्य करते हैं। में इस प्रकार कहा है, 'मिथ्यादर्शनमेकभेदमदर्शनस्य तत्रैवांतर्भावात्, इसके अलावा अन्य प्रसंगों पर प्रथमानुयोग के ग्रन्थों में देवों द्वारा अज्ञानमेकभेदं असंयतत्वमेकभेदं लिंगे हास्यरदत्याद्यंतर्भाव: पञ्चाश्चर्य करने के प्रकरण मेरे पढ़ने में नहीं आए हैं। परन्तु सहचारित्वात्। गतिग्रहणमघात्युपलक्षणमिति न कस्यचिदौदयिक सम्यक्त्व कौमुदी नामक ग्रन्थ में विभिन्न अवसरों पर पञ्चाश्चर्य | भेदस्यासंग्रहः। करने के प्रकरण अवश्य प्राप्त होते हैं। सम्यक्त्व कौमुदी के | विशेषार्थ - (पं. माणिकचंद जी कौन्देय) मिथ्यादर्शन (भारतवर्षीय अनेकान्त विद्त परिषद द्वारा प्रकाशित) अनुवादक एक प्रकार का है, अदर्शन भाव का उस मिथ्यादर्शन में ही पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य, प्रकाशन - १९९४,के कुछ प्रसंग | अन्तर्भाव हो जाता है। अज्ञान एक प्रकार का है, असंयतपना एक इस प्रकार हैं- जिनदत्त सेठ द्वारा चोर को णमोकार मंत्र दिया गया। | भेद वाला है, लिंग तीन प्रकार है। हास्य आदि नो कषायों का वह चोर मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। कुछ लोगों ने राजा से | अन्तर्भाव लिंग में कर लेना सूत्रकार को सहचारीपना होने से चुगली की कि सेठ ने दण्ड प्राप्त चोर के साथ वार्तालाप किया है। | विवक्षित है। जीवविपाकी जातिकर्म के उदय से होने वाले या तब राजा ने सेठ को पकड़ने के लिए योद्धा भेजे।देव ने अवधिज्ञान | त्रस-स्थावर, उच्चगोत्र, मनुष्यायु, साता- असाता, तीर्थकरत्व आदि से जब इस संकट को जाना तब संकट दूर कर पञ्चाश्चर्य के द्वारा | अघातिया कर्मों की प्रकृतियों के उदय से होने वाले औदयिक सेठ का अत्यंत सम्मान और प्रशंसा की।
भावों का गतिग्रहण से उपलक्षण हो जाता है। इस कारण जीवविपाकी २. पृष्ठ १०७ पर कहा है- 'बन्धु श्री के द्वारा कापालिक | घाति या अघाति किसी भी कर्म के उदय से होने वाले औदयिक
-फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित 39
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