Book Title: Jinabhashita 2005 02 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 33
________________ भागीदारी, स्वैच्छिक और गैर सरकारी संगठनों का सहयोग तथा बायोफ्रेंडली/बायो डिग्रेडेबिलप्लास्टिक निर्माण के विभिन्न स्तरों के शैक्षिक पाठ्यक्रमों में इससे संबंधित जानकारी का | प्रयास : पिछले कुछ सालों से प्लास्टिक के बढ़ते कहर से छुटकारा समावेश काफी मददगार हो सकता है। समय रहते ही यदि इस ओर | पाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा नए-नए रास्ते तलाशे जा रहे हैं। इस ध्यान नहीं दिया गया तो इससे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। | दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है बायोफ्रेंडली अथवा बायोडिग्रेडेबल वास्तव में प्लास्टिक/पॉलिथिन के दुष्प्रभावों से मुक्ति पाने के दो | प्लास्टिक का विकास। इस प्रकार के प्लास्टिक के निर्माण में प्रमुख रास्ते हैं- पहला यह कि इसके उत्पादन और प्रयोग पर पूर्ण पेट्रोलियम पदार्थों का प्रयोग नहीं किया जाता। दिखने में और रूप से प्रतिबंध लगाकर अनुपालन किया जाए तथा दूसरे कदम के इस्तेमाल में यह आम प्लास्टिक के समान ही होता है। इसकी रूप में बायोफ्रेंडली अर्थात बायोडिग्रेडेविल प्लास्टिक को परंपरागत | | सबसे बड़ी खासियत है धरती में सहज ही घुल-मिल जाना। प्लास्टिक का प्रभावकारी विकल्प बनाकर उसके उपयोग को मूलत: बायोप्लास्टिक कृषि उत्पादों जैसे मक्का और आलू के स्टार्च बढ़ावा दिया जाए। से तैयार किए जाते हैं। पानी और ऊर्जा के संपर्क में आने पर ये ___ प्लास्टिक और पॉलीथिन पर प्रतिबंध के लिए समय-समय | आसानी से कार्बनिक पदार्थों में टूटकर मिट्टी में घुल जाते हैं। अभी पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी सभी देशों को इनके दुष्प्रभावों तक स्टार्च से तैयार बायोप्लास्टिक की तीन किस्मों का निर्माण हुआ से आगाह करते हुए इसके प्रयोग पर तुरंत प्रतिबंध लगाने को कहा | है। पॉलीइथाइलीन और पालीप्रोपीन से तैयार उसकी पहली किस्म जाता रहा है। हमारे देश में भी सरकार ने इस दिशा में पहल करते | में स्टार्च मात्र 5 से 20 प्रतिशत ही मौजूद था। कुछ खास हुए पॉलीथिन के प्रयोग को कानून बनाकर प्रतिबंधित और नियंत्रित | परिस्थितियों में इस प्लास्टिक का स्टार्च पानी में घुल जाता था करने का प्रयास किया है। विशेष रूप से पॉलीथिन की रिसाइकिलिंग | लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों की बड़ी मात्रा यों ही रह जाती थी। से बनी थैलियों के उपयोग पर पाबंदी लगाई गई है तथा इन थैलियों | पहली पीढ़ी के बायोप्लास्टिक में सुधार करके वैज्ञानिकों के निर्माण हेतु मानक निर्धारित किए गए हैं ताकि इनके उपयोग से | द्वारा पहले से बेहतर नया प्लॉस्टिक तैयार किया गया। दूसरी पीढ़ी मानव स्वास्थ्य पर कम से कम प्रतिकूल प्रभाव हो। केंद्र सरकार के के इस बायोप्लास्टिक में स्टार्च के पालीमर गुणों को उपयोग में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा वर्ष 1999 में ही 'रिसाइकिल । लाया गया। इस प्लास्टिक में स्टार्च की मात्रा 50 से 70 प्रतिशत प्लास्टिक मैनुफैक्चर एंड यूसेज अधिनियम' पास किया गया | तक ही रही। यानी अभी भी ऐसे प्लास्टिक का एक बड़ा भाग जिसमें रिसाइकिल्ड प्लास्टिक से बनी थैली में खाने के लिए खाद्य | टूटकर नष्ट नहीं हो सकता था। विज्ञान की देन इस प्लास्टिक का पदार्थों का उपयोग निषिद्ध किया गया है। भारतीय मानक ब्यूरो ने सड़-गल कर नष्ट न होना पर्यावरण के साथ-साथ वैज्ञानिकों के इसी क्रम में अन्य मामलों के अतिरिक्त रिसाइकिल प्लास्टिक से बैग | लिए भी सिरदर्द बन गया। लगातार शोध के बाद फिर आया तीसरी बनाने के लिए पॉलीथिन की कम से कम मोटाई 20 माइक्रोन | पीढ़ी का बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक। इसे सही मायने में जैव निर्धारित की है। अपघटन कहा जा सकता है क्योंकि इसमें सिंथेटिक पॉलीमर्स का केंद्र सरकार द्वारा 4 जून 2000 को जारी राज्यों को दिए गए | जरा भी उपयोग नहीं किया गया है। यह न सिर्फ पर्यावरण की दृष्टि निर्देशों के अनुरुप अधिकांश राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों | से सुरक्षित है बल्कि सेहत पर भी दुष्प्रभाव नहीं डालता क्योंकि यह द्वारा अपने-अपने स्थानीय प्रशासित क्षेत्रों में पॉलीथिन बैग्स के | प्रकृति में सड़-गलकर पूरी तरह नष्ट हो सकता है। ऐसा प्लास्टिक उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है लेकिन इन प्रतिबंधों पर | अभी काफी महंगा है। पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति सचेत होने समुचित रूप से अमल नहीं हो पा रहा है जो अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण | के बावजूद जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अधिक कीमत देकर इसे स्थिति है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों, शहरी स्थानीय निकायों | अपनाने को तैयार नहीं होगा। तथा त्रिस्तरीय पंचायतों द्वारा इस समस्या के निराकरण हेतु बिना देर | प्लास्टिक टेक्नोलॉजीज नामक आस्ट्रेलियाई कंपनी ने इस किए इस संबंध में उपलब्ध काननू को प्रभावी रूप से क्रियान्वित | समस्या का भी निदान किया है। पिछले दिनों कंपनी ने एक ऐसा करने के लिए समुचित कार्यवाही कर इसका कड़ाई से अनुपालन | बायोप्लास्टिक तैयार किया है जो प्रचलित प्लास्टिक के समान ही सुनिश्चित कराना अति आवश्यक है। बायोफ्रेंडली प्लास्टिक का | सस्ता है। मक्का के स्टार्च से तैयार इस प्लास्टिक ने आम प्लास्टिक निर्माण और उपयोग इस समस्या के समाधान का दूसरा विकल्प है | से छुटकारा पाने के द्वारा खोले हैं। यह बायोप्लास्टिक इस्तेमाल की जिसमें स्टार्च एवं कम घनत्व वाली पॉली-इथीलिन को मिलाकर | दृष्टि से काफी टिकाऊ और सुरक्षित हैं। इसे उपयोग में लाने के बाद पानी और मिट्टी में घुलनशील योग्य प्लास्टिक बनाकर उपयोग में | इससे निपटने का झंझट भी नहीं है। वजह, यह पानी में पूरी तरह लाया जाये। इस प्लास्टिक से बनी पॉलीथिन की विशेषता है कि घुलनशील है। बायोप्लास्टिक 33 डिग्री फारेनहाइट पर और मिट्टी यह मिट्टी में दबा देने से उससे नमी पाकर मिट्टी के अंदर ही गलने | की नमी के संपर्क में आते ही गलने लगता है। हल्की-फुल्की लगती है और मजबूती में भी यह खास कम नहीं है। हालांकि यह | बारिश में मात्र एक घंटे में ही यह घुलकर मिट्टी में मिल जाता है। कीमत में कुछ अधिक है। -फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित 31 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