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पॉलीथिन प्रदषण स्वास्थ्य के लिए खतरा
डॉ. उमेशचन्द्र अग्रवाल आजकल हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक की हमारे यहाँ हाल के कुछ वर्षों में प्लास्टिक के प्रयोग में थैलियों, डिब्बों और बोतलों के बढ़ते प्रयोग ने जहाँ अभी तक शहरी | बढ़ोतरी हुई है। भारत में प्लास्टिक उद्योग वर्तमान में 15 प्रतिशत क्षेत्रों में सीवर लाइनों को अवरुद्ध कर वातावरण को दुर्गंधपूर्ण | की दर से वृद्धि कर रहा है। देश में पिछले एक दशक में प्लास्टिक बनाने, अनेक पशुओं को मौत के मुँह में धकेलने और मानव स्वास्थ्य के उत्पादन और प्रयोग में लगभग पाँच गुना वृद्धि होकर वर्तमान में पर गंभीर बीमारियों के रूप में घातक प्रभाव छोड़ने में अहम भूमिका ! इसकी खपत 15 करोड़ टन से भी अधिक हो गई है। पूरे देश में निभाई है वहीं अब हमारे गाँव भी तेजी से इसकी चपेट में आने लगे | प्लास्टिक निर्माण से संबंधित कई लाख प्लांट स्थापित हैं। हाल ही हैं। गाँवों में यदि इसी प्रकार इनका प्रयोग बढ़ता रहा तो वह दिन | में किए गए एक अध्ययन के अनुसार प्लास्टिक ही कुल खपत में दूर नहीं जब गाँवों में पॉलिथिन के कहर से हमारी बहुत सारी | 40 प्रतिशत का प्रयोग पॉलिथिन की थैलियों के रूप में होता है। कृषियोग्य भूमि अनुपजाऊ भूमि में तब्दील होने लगेगी, अनेक | केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा हाल ही में जारी आँकड़ों के पालतू पशु इसके कारण मौत के मुँह में समाएंगे और गाँव के लोग | अनुसार भारत में पाँच वर्ष पूर्व प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत 1.4 इससे होने वाली अनेक गंभीर बीमारियों से अपने को बचाने में | किलोग्राम थी जो आज 4 किलोग्राम से भी अधिक हो गई है। असमर्थ और असहाय ही पाएंगे।
आज जीवन के हर क्षेत्र में प्लास्टिक का बोलबाला है। हम उल्लेखनीय है कि पॉलिथिन और प्लास्टिक केवल उपयोग | रोज सुबह उठकर प्लास्टिक से बना हुआ टूथब्रश प्रयोग करते हैं करने या उसके बाद ही प्रदूषण नहीं फैलाते बल्कि इनकी फैक्ट्रियों | हमारे घरों में लोहे की बाल्टियों की जगह अब प्लास्टिक की में काम करने वाले लोग तथा आसपास का वातावरण भी इसके | बाल्टियों ने ले ली है। लकड़ी के फर्नीचर की जगह अब प्लास्टिक घातक प्रभाव से ग्रसित हो जाते हैं। प्लास्टिक फैक्ट्रियों में काम | का दिखने में खूबसूरत फर्नीचर बहुतायत से प्रयोग हो रहा है। खाने करने वाले मजदूरों को चर्म रोगों, श्वसन तंत्र संबंधी रोगों, यकृत, के लिए प्लास्टिक से निर्मित मेलेमाइन की क्राकरी का प्रयोग बढ़ता फेफड़े तथा त्वचा कैंसर जैसे भयानक रोगों से ग्रसित करने के साथ- | जा रहा है। प्लास्टिक की बोतलों में मिनरल वाटर बहुतायत से साथ यह संपूर्ण पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। प्रचलन में आ रहा है। दवाओं की पैकिंग, मशीनों तथा अन्य प्रयोग
प्लास्टिक बनाने और नष्ट करने के लिए, जलाने से भी में आने वाले अनेक कलपुर्जे आज प्लास्टिक के बने इस्तेमाल हो अनेक विषैले तत्व जैसे फिनाल, फासजीन, हाइड्रोजन-सायनाइड, | रहे हैं। राशन, फल, सब्जी, अचार, जूस, दूध, दही, आटा, तेल हाइड्रोजन-फ्लोराइड तथा नाइट्रोजन के अनेक तत्व निकलते हैं। ये | और घी जैसी रोजमर्रा के प्रयोग की सभी खाद्य सामग्री आज सभी मानव के श्वसन तंत्र के लिए अति हानिकारक हैं। इनसे | प्लास्टिक की थैलियों में आने लगी है। इसके इस अंधाधुंध प्रयोग खाँसी,सांस लेने में दिक्कत, आँखों में जलन, चक्कर आना, | ने मानव स्वास्थ्य के खतरे तथा निष्प्रयोज्य थैलियों आदि को नष्ट माँसपेशियाँ शिथिल होना तथा हृदय गति बढ़ने जैसी बीमारियाँ पैदा | करने हेतु अपनाए जा रहे तरीकों ने पर्यावरण प्रदूषण संबंधी कुछ होती हैं और इनका गंभीर दुष्प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य व पर्यावरण | जटिलताएँ पैदा की हैं जिनके निराकरण हेतु तुरंत उपाय ढूंढकर दोनों पर बहुत अधिक पड़ता है। ऐसे दुष्प्रभावी तत्वों के बावजूद | प्रभावी कदम उठाने होंगे। आजकल उपभोक्ताओं में रोजमर्रा की जरूरतों में प्लास्टिक इतनी प्लास्टिक जिससे पॉलिथिन बैग बनाए जाते हैं , एक गहरी जड़ें जमा चुका है कि इसके प्रयोग को पूर्णतया रोकना । | जटिल पालीमर है, जिसमें फास्फेट, कंपोराइड, सल्फेट, पराबैंगनी मुश्किल है और कुछ क्षेत्र जैसे बिजली, इलेक्ट्रानिक्स, दूरसंचार, | तत्व, प्लास्टिसाइजर, सटैबीलाइजर रंग, मोनोमर तथा ए.डी.टी. आटोमोबाइल आदि तो ऐसे हैं जहाँ इसका प्रयोग कोई अन्य विकल्प बस आदि का सम्मिश्रण रहता है। प्लास्टिक मुख्य रूप से दो प्रकार नहीं होने के कारण अपरिहार्य लगने लगा है।
के होते हैं- एक थरमोस्टेटिंग तथा दूसरे थर्मोप्लास्टिक/थर्मोस्टेटिंग। अपनी कुछ खास खूबियों जैसे हल्के, सस्ते, टिकाऊ और | प्लास्टिक गर्म होने पर विघटित होता है, जबकि थर्मोप्लास्टिक गर्म आकर्षक होने के कारण पिछले कुछ वर्षों में ही प्लास्टिक का प्रयोग | होने पर विघटित नहीं होता, वैज्ञानिकों के अनुसार प्लास्टिक को विभिन्न क्षेत्रों में इतनी तेजी से बढ़ा है कि आज दैनिक कार्यों में | जमीन में दबा देने पर इसके नष्ट होने में लगभग 250 वर्ष तक लग प्रयोग आने वाली छोटी-छोटी चीजों से लेकर बड़ी-बड़ी और | जाते हैं और इसके जलाने से नष्ट करने पर इससे अति विध्वंसकारी कीमती मशीनों के कलपुर्जे तक प्लास्टिक से बनाए जाने लगे हैं। गैसें निकलती हैं जो मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पेड़-पौधे और तभी विश्वभर में 100 मिलियन टन के करीब प्लास्टिक का उत्पादन | पशु-पक्षियों पर भी दूषित प्रभाव छोड़ती हैं। प्लास्टिक निर्माण में प्रतिवर्ष हो रहा है और भारत एशिया में प्लास्टिक का चौथा सबसे प्रयुक्त होने वाले अवयवों व उनमें प्रयुक्त होने वाले कार्बनिक एवं बड़ा आयातक देश है।
फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित 29
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