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आदि में उल्लिखित व्रात्य अथवा अब्राह्मणीय क्षत्रिय जैन धर्म के | भाषा को हिन्दी या हिन्दवी कहते थे। उनका यह सूबा भी हिन्द अनुयायी थे। (वही पृ.17) डा. राधाकृष्णन के अनुसार जैन धर्म | की सत्रयी (क्षत्रयी) कहलाता था और उनकी सेना का भी एक वर्धमान अथवा पार्श्वनाथ के भी बहुत पूर्व प्रचलित था (वही | अंग हिन्दी सेना था। पृ.20), तथा यह कि यजुर्वेद में ऋषभ, अजितनाथ और अरिष्टनेमि, | ईरानियों के द्वार से ही यनानियों को सर्वप्रथम इस देश का इन तीर्थंकरों का नामोल्लेख है, ऋग्वेदादि के यह उल्लेख तमाम, | ज्ञान हुआ और ईसा पूर्व 326 में सिकंदर महान के आक्रमण द्वारा ऋषभादि, विशिष्ट जैन तो तीर्थंकरों के ही हैं और भागवतपुराण से | उसके साथ उनका प्रत्यक्ष संपर्क हुआ। यूनानी लोग 'ह' का इस तथ्य की पुष्टि होती है कि ऋषभदेव ही जैनधर्म के प्रवर्तक | उच्चारण नहीं कर पाते थे। उन्होंने ईरानियों के हिन्द को 'इन्ड' थे(वही पृ.41-42)।
कर दिया। वह हिन्दु (सिन्ध) नदी को 'इन्डस' कहने लगे और प्रो.पाजिस्टर, रहोड, एडकिन्स, ओल्डहस आदि विद्वानों | उसके तटवर्ती उस हिन्द (सिन्ध) प्रदेश या देश को इन्डिया का मत है कि वैदिक एवं हिन्दू पौराणिक साहित्य के असुर, | इन्डिका कहने लगे। जब सिंध नदी के इस पार के प्रदेश से उनका राक्षस आदि जैन ही थे। और डा.हरिसत्य भट्टाचार्य का कहना है | परिचय हुआ तो पूरे भारत देश को भी वे उसी नाम से पुकारने कि जैन और ब्राह्मणीय, दोनों परंपराओं के साहित्य के तुलनात्मक | लगे। रोम देश के निवासियों ने भी यूनानियों का ही अनुकरण अध्ययन से आधुनिक युग के कतिपय विद्वानों का यह साग्रह मत | किया और कालांतर में यूरोप की अन्य सब भाषाओं में भी है कि वैदिक परंपरा के अनुयायियों ने राक्षसों की जो अत्यधिक | भारतवर्ष का सूचन इन्ड, इन्डि, इन्डे, इन्डियेन, इन्डीस, इन्डिया निंदा, भर्त्सना की है उसका कारण यही है कि वे जैन थे। यह कि | आदि विभिन्न रूपों में हुआ जो सब एक ही मूल यूनानी शब्द की बाल्मीकि रामायण में राक्षस जाति का जैसा वर्णन है, उससे स्पष्ट | पर्याय हैं। इस प्रकार अंग्रेजी में भारतवर्ष के लिए इंडिया और है कि वे जैनों के अतिरिक्त अन्य कोई हो ही नहीं सकते और | भारतीय विशेषण के लिए इंडियन तथा इन्डो शब्द प्रचलित हुए। रामायण के रचयिता ने उनका जो वीभत्स चित्रण किया है वह चीनियों को भारतवर्ष की स्पष्ट जानकारी सर्पप्रथम दूसरी धार्मिक विद्वेष से प्रेरित होकर ही किया है (वही पृ.26,27,30)। | शताब्दी ईसवी पूर्व में उत्तरवर्ती हानवंश के सम्राट वूति के समय अन्य अनेक प्रख्यात विद्वानों ने जैन धर्म और उसके अनुयायियों | में हुई बताई जाती है और उस काल के एक चीनी ग्रंथ में उसका की स्वतंत्र सत्ता वैदिक परंपरा के ब्राह्मण (या हिन्दू) धर्म और | सर्वप्रथम उल्लेख हुआ बताया जाता है। उसमें सिन्धुनदी के लिए उसके अनुयायियों के उदय से पूर्व से चली आई निश्चित की है, - 'शिन्तु' शब्द प्रयुक्त हुआ है और यहाँ के निवासियों के लिए कुछ ने सिन्धु घाटी की प्रागेतिहासिक सभ्यता में भी जैन धर्म के | 'युआन्तु' अथवा 'यिन्तु' कालांतर में 'ध्यान्तु' शब्द का प्रयोग भी उस समय प्रचलित रहने के चिन्ह लक्ष्य किये हैं। (वही, पृ.39 | मिलता है।। आदि)। उसके ब्राह्मण (हिन्दू) धर्म की कोई शाखा या उपसम्प्रदाय सातवीं शताब्दी ई.से मुसलमान अरब इस देश में आने प्रारंभ होने का प्रायः सभी विद्वानों ने सबल प्रतिवाद किया है। हुए और वे ईरानियों के आक्रमण से इसे 'हिन्द' और इसके निवासियों
अब 'हिन्दू' शब्द को लें। प्रथम तो यह शब्द भारतीय है | को अहले हिन्द कहने लगे।दसवीं शताब्दी के अंत में अफगानिस्तान ही नहीं, विदेशी है और अपेक्षाकृत पर्याप्त अर्वाचीन है। इतिहासकाल | को केन्द्र बनाकर तुर्क मुसलमानों का साम्राज्य स्थापित हुआ और वे में सर्वप्रथम जो विदेशी जाति भारतवर्ष और भारतीयों के स्पष्ट | गजनी के सुलतानों के रूप में भारतवर्ष पर लुटेरे आक्रमण करने लगे। संपर्क में आयी वह फ़ारसदेश के निवासी ईरानी थे। छठी शताब्दी | तुर्की का मूलस्थान चीन की पश्चिमी सीमा पर था और भारत एवं ईसा पूर्व में ईरान के शाहदारा ने भारतवर्ष के पश्चिमोत्तर सीमांत | चीन के बीच यातयात प्रायः उन्हीं के देश में होकर होता था। यह पर आक्रमण किया था और उसके कुछ भाग को उसने अपने राज्य | तुर्क लोग मुसलमान बनने के पूर्व चिरकाल तक बौद्धादि भारतीय में मिला लिया था तथा उसे उसकी एक क्षेत्रयी (सूबा) बना दिया | धर्मों के अनुयायी रहे थे अतएव दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी में जब वे था। उस काल में वर्तमान अफ़गानिस्तान भी भारतवर्ष का ही एक | भारतवर्ष के संपर्क में आये तो चीनी, अरबी एवं फ़ारसी एवं फ़ारसी अंग समझा जाता था। ईरानी लोग सिंधु नदी के उस पार के प्रदेश | मिश्र प्रभाव के कारण वे इस देश को हिन्दुस्तान, यहाँ के निवासियों को भारत ही समझते थे। इस पार का समस्त प्रदेश उनके लिए को हिन्दू और यहाँ की भाषा को हिन्दवी कहने लगे। मध्यकाल के चिर काल तक अज्ञात बना रहा। ईरानी भाषा में 'स' को 'ह' हो । लगभग 700 वर्ष के मुसलमानी शासन में ये शब्द प्राय: व्यापक रूप जाता है, अतएव वह लोग सिंध नदी को दरियाए हिन्द कहते थे | से प्रचलित हो गये। और इस समस्त प्रदेश को मुल्के हिन्द, तथा उसके निवासियों एवं यह मुसलमान लोग समस्त मुसलमानेतर भारतीयों को,
16 फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित
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