Book Title: Jinabhashita 2001 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 5
________________ उनमें इतना खर्च किया जाता है कि एक निमंत्रण पत्र की कीमत सौ- | विवाहोत्सव में युवतियों के नृत्यगीत से हानि नहीं है। नृत्यगीत तो सौ, दो-दो सौ रुपयों तक पहुँच जाती है। हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति का मानवस्वभावोद्भूत सांस्कृतिक माध्यम विवाह का पंडाल इतना विशाल बनवाया जाता है और उसे | है। लोकसंस्कृति में तो विवाहोत्सवों में नृत्यगीतादि के प्रयोग की रेशमी परदों, ट्यूबलाइटों आदि से ऐसा सजाया जाता है कि लगता | प्राचीन परम्परा है। किन्तु लोकसंस्कृति में भी संस्कृति है। भारतीय है जैसे किसी राजदरबार या इन्द्रसभा का फिल्मी सेट हो। भोज | लोकसंस्कृति में इस बात का ख्याल रखा गया है कि किस श्रेणी के के लिय तरह-तरह के खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय व्यंजनों के | लोगों के द्वारा, किस अवसर पर, किस प्रकार के नृत्यगीत का प्रयोग अनगिनत स्टाल लगाये जाते हैं और शोभायात्रा के समय | किया जाना चाहिए। भारतीय लोकसंस्कृति में भी अश्लील नृत्यगीतादि आतिशबाजी में हजारों रुपये फेंक दिये जाते हैं। इस तरह विवाह के | के लिये स्थान है, पर वह केवल होली जैसे अवसरों पर या विशेष धार्मिक अनुष्ठान को परिग्रहपरिमाण और भोगोपभोगपरिमाण व्रतों की | प्रकार की रसिकमंडली के बीच। विवाहोत्सवों में जो बन्ना-बन्नी के धज्जियाँ उड़ाने वाला कृत्य बना दिया गया है। गीत गाये जाते हैं, वे अश्लील नहीं होते, अपितु वर-वधू के विवाह संस्कार रात्रि में किया जाता है, जिससे रात्रि में ही पूजन- | दाम्पत्यभाव को सुरुचिपूर्ण भाषा में अभिव्यक्त करने वाले होते हैं हवन आदि धार्मिक क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। यह जिनागम के विरुद्ध | तथा स्त्रियाँ जो नृत्य करती हैं, वह घर के भीतर स्त्रियों के बीच में है। अहिंसाप्रधान जैनधर्म दिन में ही हवन-पूजन आदि धार्मिक क्रियाएँ ही किया जाता है। आजकल पुरुषों के बीच में भी किया जाने लगा करने की अनुमति देता है। रात्रि में विवाहविधि सम्पन्न करने से भोजन- | है, किन्तु वे परिवार के ही सगे-सम्बन्धी होते हैं तथा नृत्य की पान भी रात्रि में किया जाता है, जो श्रावकधर्म की जड़ पर भीषण | भावभंगिमाएँ अश्लील नहीं होती, सुरुचिपूर्ण होती हैं। किन्तु आजकल कुठाराघात है। इतना ही नहीं, विवाहों में मद्यपान और द्यूतक्रीड़ा जैसे | वर की शोभायात्रा में सड़कों पर युवक-युवतियों द्वारा किया जानेवाला व्यसनों का भी चलन हो गया है, जिसने विवाह के धार्मिक अनुष्ठान नृत्य फिल्मों की भद्दी स्टाइल में होता है, जिसे देखकर सुरुचिसम्पन्न को पापानुष्ठान में बदल दिया है। लोगों को शर्म आती है। उसमें संस्कृति का नामोनिशाँ नहीं रहता, पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भोज के बुफे सिस्टम (खड़े- अपितु अपसंस्कृति का बोलबाला रहता है। खड़े भोजन करना) ने भी श्रावकधर्म को आघात पहुँचाया है। एक | इस प्रकार हम देखते हैं कि विवाह के धार्मिक अनुष्ठान को स्थान में बैठकर मौनपूर्वक शुद्ध भोजन करना श्रावकचर्या का | धनलोभ, वैभवप्रदर्शन, व्यसनपरकता, रात्रिविवाह-रात्रिभोज, बुफेमहत्त्वपूर्ण अंग है, किन्तु बुफे में खड़े-खड़े भोजन करना पड़ता है | भोजनपद्धति, और सड़कों पर बहूबेटियों के अशोभनीय नृत्य, इन और बार-बार भोजन उठाने के लिये टेबिल के पास जाना पड़ता है। | विकृतियों ने अत्यंत बीभत्सरूप दे दिया है। इसका उपचार इस पद्धति में सब लोग अपने-अपने जूठे हाथों से भोजन उठाते हैं, . शीघ्रातिशीघ्र किया जाना चाहिए। अतः वह अशुद्ध हो जाता है। इसमें अजैन भी शामिल होते हैं। अनेक इस दिशा में परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के सुयोग्य लोगों के हाथ का स्पर्श लगने से भोजन में रोगाणुओं का भी संचार | शिष्य पूज्य मुनि श्री समतासागर जी एवं पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर हो जाता है। जी अच्छा काम कर रहे हैं। ये दो प्रतिभाशाली, आगमचक्खू, विवाह संस्कार में एक नई विकृति जो पैदा हुई है, वह है वर | आत्मसाधना और धर्मप्रभावना में निरत युवा मुनि जहाँ भी जाते हैं, की शोभायात्रा में युवक-युवतियों का सड़कों पर फिल्मी स्टाइल में | अपने हृदयस्पर्शी उद्बोधन द्वारा रात्रिविवाह और रात्रिभोज की गर्हित नाचना। कुछ समय पूर्व तक केवल युवक ही नाचा करते थे, कोई | प्रथाओं पर कठोर प्रहार करते हैं और लोगों के मन में इन के प्रति भी जैन युवती सड़कों पर नाचती हुई दिखाई नहीं देती थी। किन्तु | घोर घृणा जगाकर इन्हें जड़ से उखाड़ फेंकते हैं। इनके उन्मूलन से अब जैनेतरों की देखा-सीखी जैनों में भी यह विकृति प्रवेश कर गई | इनके साथ जुड़ी अन्य बुराइयाँ अपने आप विलुप्त हो जाती हैं। है। अब हमारी बहू-बेटियाँ भी, जिन्हें विवाह जैसे धार्मिक अनुष्ठान फिर भी, सड़कों पर बहूबेटियों के नाचने की अशोभनीय प्रथा में सड़कों पर संयत-परिष्कृत, लज्जाशील आचरण-पद्धति का परिचय | चल रही है, क्योंकि इसके लिये उन्हें दिन के समय निकलनेवाली देना चाहिए, वे लाज-शरम छोड़कर बैंड बाजों की फिल्मी धुनों पर | शोभायात्राओं में भी अवसर मिल जाता है। अतः अब इस पर भी नाचती हुई दिखाई देती हैं। यह दृश्य बड़ा अशोभनीय लगता है। प्रहार करने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त दहेज की माँग यह विवाहसंस्कार के बीभत्सीकरण की दिशा में उठाया गया नया | वैभवप्रदर्शन और व्यसनसेवन की दुष्प्रवृत्तियाँ भी जीवित हैं। इन सब कदम है। पर बलपूर्वक कुठाराघात आवश्यक है, तभी विवाह एक संस्कार, विवाह एक धार्मिक अनुष्ठान है। उसे संयत, परिष्कृत और | एक धार्मिक अनुष्ठान का नाम सार्थक कर पायेगा। शोभनीय प्रवृत्तियों के परिवेश में ही सम्पन्न किया जाना चाहिए। रतनचन्द्र जैन इस विषय पर यदि पाठक अपने विचार भेजना चाहें तो स्वागत है। - सम्पादक -अक्टूबर 2001 जिनभाषित 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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