Book Title: Jinabhashita 2001 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ नमोऽस्तु - प्रो. (डॉ.) सरोजकुमार वर्तमान युग के सुप्रसिद्ध मूर्धन्य कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। उनका 'अंदाज-ए-बयाँ' गालिब की तरह कुछ और ही है। उनकी कविताएँ ध्वनिकाव्य के उत्कृष्ट नमूने हैं और उनमें व्यंग्य की तीखी चोट होती है। सरोजकुमार जी में शब्दों के व्यंजनात्मक प्रयोग की अद्भुत क्षमता है। वे लाक्षणिक-व्यंजक शब्दों, प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से अपनी बात इस तरह कहते हैं कि पाठक की हृदयतन्त्री झनझना उठती है। मंचों पर वे छाये रहते N HOME दैनिक 'नई दुनिया में हर सप्ताह 'स्वान्तः दु:खाय' स्तम्भ के अंतर्गत उनकी व्यंग्यात्मक कविता प्रकाशित होती है। उनके दो काव्यसंग्रह निकल चुके हैं : “लौटती है नदी' और 'काव्यमित्र।' काव्यपाठ हेतु उन्हें विदेशों में कई बार आमंत्रित किया गया है। अभी जुलाई 2001 में शिकागो में 'जैना' संगठन ने उनके काव्यपाठ का आयोजन किया था। उसके लिये उन्होंने जैनानुशासन की भावभूमि पर कुछ कविताएँ रची थीं, जिनका संग्रह 'नमोऽस्तु' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। मैंने आग्रह करके उसमें की कविताएँ 'जिनभाषित' में क्रमशः प्रकाशित करने की अनुमति ले ली है। एतदर्थ में उनका आभारी हूँ। कविता प्रदर्शनी का गुलाब प्रो. (डॉ.) सरोज कुमार हमको ही टहनियों में काट-छाँट लाएँगे, सुन्दर होने की सजा देंगे, फिर सजाएँगे। श्वेत, लाल, पीले, नीलाभ गुलाब ही गुलाब ही गुलाब! घुघराली, दल पर दल पंखुरियाँ! काँटों की सीढ़ियाँ, हरी-हरी पत्तियाँ! एक-एक पौधे से एक-एक डाली कटी-छंटी सज-धज नखराली! रंगों की रति का मनचीता त्योहार नयनाभिराम मोहक अलौकी संभार! मैंने प्रदर्शनी के गुलाबों से पूछाकैसा लग रहा है? कोई टिप्पणी? बोले- यहाँ क्या निहारते हो बंद-बंद हॉल में, पंडाल में? वहाँ आओ, जहाँ हम चहकते हैं महकते हैं, क्यारियों के थाल में! पर आप वहाँ क्यों आएँगे अब हम हैं भी क्या? आपके सौन्दर्यबोध की सेवा में आपके अवलोकनार्थ अपने ताजा शव हैं! आप हमें निहारकर अपने घर जाएँगे पर हम तो अब अपने घर नहीं लौट पाएँगे! अपनी जड़ों से कटने के बाद कोई कहीं का नहीं रहता! देखना दिखाना कुछ घंटों का फिर आप ही हमें घूरे पर पटक आएँगे! 'मनोरम'37 पत्रकार कालोनी, इंदौर-452001 म.प्र. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36