Book Title: Jinabhashita 2001 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ कविता वह लाजवाब है (आचार्य श्री विद्यासागर का एक शब्दचित्र) नरेन्द्रप्रकाश जैन सम्पादक- जैन गजट वह मुनिगण-मुकुट है उसका कोई जवाब नहीं वह लाजवाब है साम्प्रदायिकता से वह परे है संकीर्णता के घेरों से मुक्त है वह सैकड़ों में अकेला है अलबेला है उसका कोई जोड़ नहीं वह तो बस, वह ही है वह भला है भोला है भद्र भावों से भरा है खरा है वदन का इकहरा है छरहरा है उम्र से (अब भी) जवान है साधक महान है भूखा है ज्ञान का शत्रु है अभिमान का भुलावों से दूर है तपश्चरण में शूर है वह आत्मजयी है आत्मकेन्द्रित है नासादृष्टि है निजानन्द-रसलीन है मोह-माया-मत्सर विहीन है उसे लुभाती नहीं है बाहरी दुनिया की चमक उसके स्वभाव में है एक स्वाभिमानी की ठसक उसके सबसे बड़े गुण हैं - अनासक्ति और निःस्पृहता क्षमाशीलता और समता निर्ममता और निर्भयता उसका चिन्तन मौलिक है उसकी वार्ता अलौकिक है विचारों में उदारता है प्रामाणिकता है शालीनता है सर्वजनहितैषिता है वह आलोक - पुंज है ज्ञान - दीप है ज्योति - पुरुष है विराजी रहती है प्रतिक्षण उसके चेहरे पर एक निर्मल-निश्छल मुस्कान उसकी हर छवि है अम्लान उसका नहीं है जवाब वह है लाजवाब 'तीर्थकर' नव.दिस. 1978 से साभार 104, नईबस्ती, फिरोजाबाद (उ.प्र.) 30 अक्टूबर 2001 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36