Book Title: Jinabhashita 2001 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ अपना रखी है, जिसके अंतर्गत वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार रखते मुझे लगा कि मैं यदि प्रजातंत्र के बचाव में दलीलें देना प्रारंभ करूंगा तो फिर जरूर मेरे मेहमान की ट्रेन छूट जाएगी। इसलिए मैंने तत्काल आटो बुलवाया और उन्हें विदा किया। उपर्युक्त वार्तालाप से मैं कई दिनों तक व्यथित रहा। मेरे लिये यह जानकारी निश्चय ही पीड़ादायक थी कि प्रजातंत्र से लोगों का मोहभंग होने लगा है। हालांकि, क्यों होने लगा है ? यह कोई नहीं बतला पाता । अब संसद में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो मिली-जुली सरकार बनाना पड़ी, जो कि कोई कठोर निर्णय नहीं ले पाती, क्योंकि अगर लेती है तो एकाध घटक खिसकने पर उतारू हो जाता है, जिससे सरकार के अल्पमत में आ जाने का अंदेशा हो जाता है, जबकि अन्य पार्टियों में एका न होने से वैकल्पिक सरकार की गुंजाइश नहीं बन पाती और सबके सिर पर मध्यावधि चुनाव की तलवार लटकने लगती है, तो इसमें प्रजातंत्र का क्या दोष है ? किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन बने इसका निर्णय यदि संबंधित राजनीतिक दल, उसके विधायकों के बहुमत से करने की कोशिश करे तो निश्चय ही विधायक-गण उतने धड़ों में बँट जायेंगे, जितने कि विधायक होंगे, जिसके फलस्वरूप विधायकों की संख्या के बराबर ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार उठ खड़े होंगे। इस हालत में पार्टी को टूटने से बचाने हेतु एवं अपने ही दल की सरकार सुनिश्चित करने के लिये यदि मुख्यमंत्री का चुनाव हाईकमान पर छोड़ दिया जाता है, तो इसमें प्रजातंत्र क्या करे ? सांसदों की संख्या अल्प होने के बावजूद, यदि किसी राजनीतिक दल की मर्जी किसी विशेष विधेयक को संसद में पेश न होने देने की होती है और इस हेतु उस दल के सांसद सदन में नान स्टॉप हंगामा मचाए रखते हैं, ताकि सदन की कार्यवाही चल ही न पाए और इस प्रक्रिया में अन्य विरोधी दल, सरकार की फजीहत होते देख मन ही मन आनंदित होते हुए मूक दर्शक बने रहते हैं, , Jain Education International तो इस परिदृश्य में प्रजातंत्र कहाँ दृष्टिगोचर होता है ? यह सब और ऐसे ही अनेक उदाहरण हैं, जिन्हें मुद्दा बनाकर प्रजातंत्र को बदनाम करने की कोशिश की जाती है। मुझे लगता है कि दान की बछिया को लेकर जो भ्रम चार ठगों ने पण्डित के मन में पैदा किया था, प्रजातंत्र के मामले में वही हथकंडा दोहराया जा रहा है। · , पर मेरे कई मित्र मेरी इस बात से इत्तफाक नहीं रखते! उनका कहना है कि समय के साथ, हमारे प्रजातंत्र में निश्चय ही कुछ गंभीर किस्म की विकृतियाँ विकसित हुई हैं, जिनका कुप्रभाव अब सार्वजनिक रूप से परिलक्षित होने लगा है। किसी विभाग के उद्योग के दफ्तर के कर्मचारियों की हड़ताल तो फिर भी कुछ हद तक समझने वाली बात होती है, पर विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा आए दिन किए जाने वाले नाना प्रकार के आन्दोलन, बघा रास्ता रोको, रेल रोको, पानी रोको, बिजली रोको, खनिज रोको, गेहूँ रोको, चावल रोको, ग्राम बंद, नगर बंद, शहर बंद, प्रांत बंद, देश बंद, घेराव, हल्लाबोल, आत्मदाह आदि पता नहीं किस विधान के अंतर्गत उचित माने जाते हैं? इनसे न जाने किनका क्या भला होता है? और यह भी पता नहीं कि यदि लोग यह सब केवल अपनी शक्ति के प्रदर्शन हेतु ही नहीं करते हैं, तो फिर प्रजातंत्र में उन्हें यह सब करने के लिये बाध्य क्यों होना पड़ता है ? यहाँ विनम्रता पूर्वक में यह कहना चाहूँगा कि दरअसल यही तो प्रजातंत्र की खूबी है कि लोगों को अपनी पीड़ा, अपना दर्द, अपना आक्रोश, अपने विचार, कभी भी, कहीं भी किसी भी शांतिपूर्ण तरीके से प्रकट करने का अवसर उपलब्ध है। इसे प्रजातंत्र का गुण माना जाना चाहिए, अवगुण नहीं और फिर आन्दोलन तो जीवन्त होने की निशानी है जो जीवित होते हैं वही तो हलचल कर पाते हैं वही तो आन्दोलित होने की क्षमता रखते हैं। प्रजातंत्र में आन्दोलन तो स्वाभाविक हैं, समुद्र में लहरों की तरह स्वाभाविक । 7/56 ए, मोतीलाल नेहरू नगर (पश्चिम) भिलाई (दुर्ग) छ.ग. 490020 For Private & Personal Use Only समाचार श्री दिगम्बर जैन ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र, ज्ञानोदय नगर अजमेर में वार्षिक कलशाभिषेक एवं पदयात्रा समारोह दिनांक 30.9.2001 रविवार, को अ. भा. श्री दिगम्बर जैन ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र, अजमेर में वार्षिक जिनाभिषेक का विशाल स्तर पर भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ। कलशाभिषेक महामहोत्सव में भाग लेने हेतु अनेक नगरों, ग्रामों से पदयात्रा करके अदम्य उत्साह एवं हर्षोल्लास के साथ परम पावन अतिशयकारी तीर्थ पर हजारों की संख्या में नर नारी, बालअबाल पधारे। अजमेर नगर से लगभग 2500 साधर्मीजनों ने पैदल चलकर कलशाभिबेक कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता दी। इस प्रकार लगभग 30 कि.मी. किशनगढ़ से पदयात्रा प्रारंभ करके प्रातः 10.00 बजे क्षेत्र पर पदार्पण किया। ब्यावर, नसीराबाद, जेठाना, मांगलियावास, छोटा लाम्ब भवानीखेड़ा, केकड़ी, सरवाड़ आदि-आदि स्थानों से सहस्राधिक धर्मानुरागी समाज ने भाग लिया। दिगम्बर जैन समिति (राज.) की | ओर से क्षेत्र पर पैदल आने वाले बन्धुओं का सम्मान किया गया। विश्व विख्यात नाम आर. के. मार्बल्स लि. किशनगढ़ की ओर से क्षेत्र पर पधारे सकल साधर्मी बन्धुओं के लिये सामूहिक भोज दिया गया। श्रेष्ठि श्री संजय कुमार जी, विजय कुमार जी महतिया की ओर से "कल्याण मंदिर विधान" पूजन का भव्य आयोजन किया गया। इस प्रकार लगभग आठ हजार साधर्मी बन्धुओं ने इस महामहोत्सव कार्यक्रम में भाग लिया। भीकमचन्द्र पाटनी स. मंत्री 'अक्टूबर 2001 जिनभाषित 23 www.jainelibrary.org

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