Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ प्रनादि मूलमंत्रोऽयम् । जनमगार मणमाकार माना नान गान ।। गमाग 'गावणागणों ओर पढग य: मगन म माननं 11 मारण करने है। मान्यता भी है कि गिद्ध पर मर नादिमन और अपगजिन 'अनादिगुलमनोऽयम्', 'अपगजिनमत्रोऽयम्' : पाक्षि। जहा तक मन के अनामिन्त्र की बान , it. " म नंगमाग ।। अपना अर्थात् - 'जो मन है उसका नाम नी' नी गीन ग णगातार नाना: माना जायगा हर नीज के मन को अनादि माना जायगा । या 'मनामनग्गाही जणा:म-नंगी तमा नग्ग । उपजद नाभय भय न ग नागा बाथ ॥ नंगमनय गनामाग्राही हाता: । :गी अप. बन गया गया ही होती है चाहे वह किसी भी पर्याय ग क्या ना नावना गा मार मगन के. पाप गरमाया दोनों ही अनादि गिी । पानगागानगार आत्मा ही परमात्मा गिद्र ग्यम् ।। मार प्रागा . विकाग ग ग गाथ आध्याय आचार्य बार पर भी प्रामा-गग्गामा की भाति प्रगा। ग घाम प्रवाह प ग की न की किगीन निगी ममता वर्तमान ।। जन पान्यतानुगार पाना माटी जनाधिकार गाहा मार अगनमान नागा हाने मन मना मन । नायनर मनमान म अनन नावीगी हजार नियमान म जन ती गी। वित मनकी गना गर्वकाल विद्यामान ही। गोल अयमा का प्राव गिढ़ हा जो अपम अवस्था को प्राप्त साग व गिद दाग गमगी ग:: नही। अध्याग कशा की धगी में विद्यमान ( भमान-विपतकाली ) नाना पाध्याय बार गायु भी अनादि-मनन (गना को अपना) : , नार हंगे । और जब-जब ये है नव-नब उनको नमन भी है। अन एन नमागभन णमोकार भी [मना की पेक्षा जनादि । गीला कसा है। 'म नमस्कागं. निन्य एव. वस्नुबान नभावन । नापद्यनं नापि बिनण्यनीन्यथं । बह नमस्कार निन्य -मदाकाल है, वस्नु हान म । जो जो वस्नु है वह

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67