Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 60
________________ जिन-मासन विचारणीय प्रसंग उक्त पूरा पाठ 'मगलोत्तममरण' या 'चतुःशरण' पाठ के नाम से प्रसिद्ध है और नमोकार मन्त्र के क्रम में उमो के बाद बोला जाता है। यह मंगल अर्थात् 'म्बस्ति पाठ' णमोकार मन्त्र की भांति प्राचीनतम प्राकृत भाषा में निवर और मंगल शब्द के निण मे युक्त है। अन्य म्पनों पर हमें बहुत से अन्य मंगन भी मिलते हैं। पर वे न तो प्रतिदिन नियमित रूप मे सर्व साधारण में पंढ़ जाते है और न ही मूल मन्त्र-णमोकारगत पंच परमेष्ठियों का बोध कराते है। अतः 'मंगल' मे चनारि-पाठ की प्रमुखना णमोकार मन्त्र की भांति सहज सिड हो जाती है। स्थानकवामी मंप्रदाय मे 'चताग्मिगलं' पाठ 'मंगली' के नाम से ही प्रमित है। यन जब कोई थावक मंगल कामना में माधु-माध्वियों में प्रार्थना करता है कि महाराज ! 'मंगली' मुना दीजिए, तो वे महर्ष 'चतारिपाठ' द्वारा उसे बागीर्वाद देते हैं। इस मगन पाठ का भाषागर (हिन्दी रूप) भी बहुत बहलता से प्रचारित है. यषा 'अरिहंत जय जय, मिड प्रभु जय जय ।। माधु जीवन जय जय, जिन धर्म जय जय ।। अरिहंत मगलं. मिट प्रभु मंगलं । माधु जीवन मंगलं. जिन धर्म मंगलं ॥ अग्हित उत्तमा, मिड प्रभु उत्तमा । साधु जीवन उत्तमा, जिन धर्म उत्तमा । मरिहंत शरणा. मिड प्रभु शरणा। साधु जीवन शरणा, जिन धर्म शरणा ॥ ये ही चार शरणा, दुख दूर हग्ना । शिव मुख करना, भवि जीव मरणा ॥' . इस सर्व प्रसंग का तात्पर्य ऐमा निकला कि उक्त मूल-पाठ जो प्राकृत मे है और 'चतुः मंगन' रूप में है. वह मगल, कल्याण, शान्ति और सुख के लिए पड़ा जाता है तथा 'स्वस्ति या म्वस्तिक' (मंगल कामना) से सम्बन्धित है। 'दिगम्बर माम्नाय' में पूजा को श्रावक के दैनिक षट्कर्मों में प्रथम गिनाया गया है। वहां प्रथम ही देवशास्त्रगुरु की पूजा की जाती है और पूजा का प्रारम्भ दोनों (णमोकारमत्र और चतु मरण पाठ) और उनके महात्म्य से होता है। जैसे जमोकार मन्त्र वाचन का प्रथम क्रम है, वैसे उसके माहात्म्य पापन का कर भी पवन है, बवा

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