Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 18
________________ जिन-मानविन निग्यन-निमूमधाग्यि, मोहंधामुर-कवध-विदकरा। मिड-मयमय-या बहना दुग्णय-कयंता' ॥२५॥ (२) सिड-जो पूर्णन अपने म्बम्प में स्थित है, कृत्यकृत्य हैं, जिन्होंने अपने माध्य को मिल कर लिया है और जिनकमानावरणादि बाट कर्म नप्ट हो वक है, उन्हे मिड कहते है। (अगहनावस्था बनजानी की मकल-बगैरी अनम्या है और मिद अणगैरी आत्मामात्र निगकार होते है और लोकाग्र-- बभाग में विगजमान हान है) -- fणय विविहट्ट-कम्मा तिहवण-मिर-महग बिव-दुक्या। मह-मायर-मग्न गया णिग्जणा णिच्च अटगृणा' ॥२६॥ (३) आनायं जो दर्णन-जान-चाग्त्रि, नप और वीर्य इन पाच आचार्ग को ग्वय आचरण करने है और दूमा माधुओ मे आचरण कगनं है, उन्हें आचार्य कहते है। __ 'मगह-णिग्गह-कमलो मुनय-विमाग्ओ महिय-कित्ती । मारण-वारण-गाण-किरियुग्जुना हु आग्यिो ॥३१॥ (४) उपाध्याय जो माधु चौदह पूर्वरूपी ममुद्र में प्रवेश कर अर्थात पग्मागम का अभ्याम करके मांक्षमाग में स्थित है नथा मोक्ष मार्ग के इच्छक गोलगे मनियों को उपदेण देते है, उन मुनीश्वगे को उपाध्याय कहते है'चाइम-ब-महाहिगम्म मिव- पिओ मिवन्धीण । मीलधगण वता हो. मुणी मी उवमायो ।।३२॥ सर्वसाप. जो अनन्त जानादि प शुद्ध आत्मा के म्वरूप की माधना करने है जो पांच महायता की धारण करने है, नीन गुप्नियों में मुरक्षित है. अठार हजार मील के भेदों को धारण करते है और चौगमी नाख उनर गृणां का पालन करने के माधु परमप्ठी होते है। मीह-गय-बमा-मिय-सम-माग्दमूकबहि-माग्द-मणी।। खिदि-उगवर-मग्मिा परम-पय-विमग्गया माह ॥3॥

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