Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 30
________________ विन-शासन के विचारणीय प्रसंग अजान मनु ने बुद्ध को बनलाया कि वह स्वयं निगठनाथपुत (महावीर) में मिले और महावीर ने उनमें कहा कि-निर्गव चातुर्याम मवर संवृत' होता है । अर्थात् वह (१) जन के व्यवहार का वारण करना है, (२) सभी पापों का वारण करता है. (३) मभी पापा का वारण करने से धुनपाप होता है, (४) मभी पापो का वारण करने में लगा रहता है। अन वस्तुम्बिनि यह भी हो मकनी है कि चातुर्यामसवर के स्थान में लोगो ने 'सवर' शब्द छोड़ दिया हो और कालान्तर में 'चातुर्याम' से अहिंमा आदि को जोड दिया हो। बन्यवा 'बानुर्यामसवर' के स्थान पर 'चनु मवर' ही पर्याप्त था। 'याम' का कोई प्रयोजन ही नहीं दिखाई देना। अन फलिन होता है कि ऊपर कहे गए 'चातुर्याममवर' के अतिरिक्त अन्य कोई चानुम नहीं थे। बोड प्रन्यों में अनेक प्रमगों में चार की मख्या उपलब्ध होती है। कई मेनो कथित-प्रमिड किए गए] चार यामो में पूरी-पूरी ममता भी दृष्टिगोचर होती है। जैसे 'चार कर्मक्लण' 'चार पागजिक' और चार आराम पमन्दी इत्यादि । (१) चार कर्मलेश - इनका वर्णन 'दीघनिकाय' के मिलोगवाद सुन ३१ मे किया गया है। वहाँ चार्ग के नाम इस प्रकार गिनाए गए है—१. प्राणि माग्ना, २ अदनादान, : मूठ बोलना, 6. काम । (४) पार पाराविक इनका वर्णन 'विनयपिटक' में इस प्रकार है-१. हत्या, २. चोगे, : दिव्यक्ति (अविवमान) का दावा, 6. मैथुन । (३) चार माराम पसन्दी -इनका वर्णन 'दीर्घनिकाय पामादि सुत्त में है-० दुर कहते है कि -१. कोई मूर्य, जीवों का वध करके आनन्दित होता है, २. कोई मूठ बोलकर आनन्दित होता है, ३. कोई चोरी करके आनन्दित होता है, 6. कोई पाच भोगों से सेवित होकर आनन्दिन होता है। ये चार आराम पमन्दी निकृष्ट है। उक्त मभी प्रसग चातुर्याम से पूर्ण मेन बाते है और यह मानने को बाध्य करते है कि पार्श्वनाथ के पाच महावतो में में बुद्ध ने चार ग्रहण किए हो --या उनमें मकोच कर उन्हें चातुर्यामसबर का रूप दिया हो या जैन ग्रन्थों में चहा पार की सख्या आई हो-वह लोक-प्रचार से प्रभावित हो-ऐसा भी हो सकता है। पाठक विचारे ! 00

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