Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 42
________________ जिन-मालन के कुछ विचारणीय प्रसंग पिनु मुविधानुमार मभी रूप प्रयोगों में लाए जान है-जमा कि आचार्य कुन्दकुन्द ने भी किया है। जननीरसेनी के सम्बन्ध में निम्न विचार दृष्टबी बार अधिकागे विद्वानों के विचार है . 'In his obscrvation on the Digambar lest Dr. Denecke discusses various points about some Digamber Prakirit works .. He remarks that the language of there works is influenced by Ardhamagdhi, Jain Maharastri which Approaches it and Saurseni' -Dr. A.N. Upadhye (Introduction of Pravachansara) 'Thc Prakrit of the sutras, the Gathas as well as of the commentary, is Saurseni influenced by the order Ardhamagdhi on the one hand and the Maharashtri on the other, and this is excctly the nature of the language called 'Juin Saurseni.' - Dr. Hiralal (Introduction of पद खडागम P. IV) 'जन महागष्ट्री का नामचुनाव मर्माचन न होने पर भी काम चलाऊ है। यही बान जैन शामिनी के बारे में और जोर देकर कही जा सकती है। इस विषय में अभी तक जो थोड़ी-मी गांध हुई है. उममें यह बात विदिन हुई है कि हम भाषा में ऐम प और गन्द है जो शोरमनी में बिल्कुल नहीं मिलने बल्कि इसके विपरीत वे रूप और शब्द कुछ महाराष्ट्री और कुछ अचंमागधी में व्यवहन हां है। -पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण पृ० ३८ प्राचीन आगमो और आचार्य कुन्द-कुन्द की रचनाओं में इसी आधार पर विविध गब्द-सपा के प्रयोग मिलने है--दिगम्बर आचार्य किमी एक प्राकृत के नियमों को लेकर नही चले अपितु उन्होंने अन्य प्राकृना के शब्दरूपों को भी अपनाया । अत. उनकी रचनाबी में भाषा की दृष्टि से सशोधन की बान सर्वया निराधार प्रतीत होती है। आचार्यों के द्वारा अपनाए गए विविध शब्दरूपी को मस पाठकों की जानकारी के लिए प्रस्तुत है। हमे बाणा है कि पाठक तथ्य तक पहने। वि० जैन बाबमों में एक ही आचार्य द्वारा प्रयुक्त विविध प्रयोग :

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