Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ ॐ स्वस्तिक रहस्य मान्तिक भाग्नीयो में, चाहे वे दिक मनावलम्बी हो या मनाननजन मतालम्बी। गाह्मण, वैश्य और शूद्र सभी को मालिक क्रियाओं में (जमे विवाह वादि पोरण सम्कार, चूल्हा-चक्की स्थापना, दुकानदारो के खाता-बही, नरा-नाट के मुहूर्त में) नीन परिपाटिया मुख्य रूप में देखने को मिलती है। कुछ लोग 'लित कर कार्य प्रारम्भ करते हैं और कुछ म्बनिक अकिन कर कार्य का श्रीगज करते है। इसके सिवाय कुछ लोग ऐसे भी है, जो दोनों को प्रयोग में मात है।'' भी लिखते है और म्याग्निक भी अकिन करते है। ग्रामीण अनपढ स्त्रिया भी इन विधियों को मादर अपनाती है। नियों के आगमा में' और 'म्बनिक' को प्रमुख स्थान दिया गया है। वेदों में भी कार को 'प्रणव' माना गया है, और प्रत्येक वेद मन्त्र का उच्चारण ॐकार में प्रारम्भ होता है। 'म्बग्नि' गब्द भी वेदो में अनेक बार आता है जंग 'म्बम्ति न इन्द्र' इत्यादि । जब एक ओर भारत में इनका इतना प्रचार है, नब दूमगे और जमन देग भी 'म्बम्तिक' से बचित नहीं है। बहा म्बनिक चिह्न को गजकीय सम्मान निना हुआ है। गहराई से खोज की जाय नो अग्रेजो के काम चिह्न में भी 'म्बम्तिक' को मूल मनक मिल मकनी है। मम्भावना हो सकती है कि ईमा को फांसी के बाद चिह्न का नामान्तर या भावान्नर कर दिया गया हो। के सम्बन्ध में विविध मनावलम्बी विविध-विविध विचार प्रस्नुन करते है और विचार प्रसिड भी है यथा '' परमात्मा वाचक है, 'मगल म्बन्प है इत्यादि । जैनियों को दृष्टि में '' पचपरमेष्ठी वाचक एक लघु सकन है इमं पपरमेष्ठी का प्रतिनिधित्व प्राप्त है। इस प्रकार जिन शामन में नमोकार मन्त्र की अपार महिमा है । प्रत्येक जैन, चाहे वह किमी पन्ध का हो, हिमालय से कन्याकुमारी तक इस मन्त्र को एक स्वर से पढ़ता है। मन्त्र हम प्रकार है 'णमो बरहताण नमो सिसाण गमो बाइग्यिाण । नमो उवमायाण गमो लोए सम्बमाहूण ॥' अरहन्तो को नमस्कार, सिडो को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार बार नोकरे सर्व साधुबो (पपर बैन) मुनियो को नमस्कार ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67