Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ मिन-मानपिपारवीय प्रसंग व्य के माधारण गुण है और शान' दर्शन, मुख, वीर्य, चेतनत्व और अमूर्तत्व ये विशेष गुण हैं। कहा भी है "ममणानि कानि" अम्नित्वं, वस्तुत्वं, द्रव्यत्वं, प्रमेयत्वं, अगुरुलपुत्वं, प्रदेजन्य, चेतनत्वं, अंचनत्व, मूर्नन्वं, अमूर्नत्वं द्रव्याणां दश मामान्य गुणाः । प्रत्येकमष्टावप्टो मर्वपाम्" नानदर्शनमुखवीर्याणि म्पर्णग्मगंधवर्णाः गतिहेतुत्वं, म्पिनिहेतृत्वं अवगाहनहेनुत्वं वर्तनाहेतृत्वं चननमचेतनत्वं मूर्नममूनत्वं द्रव्याणां पोलविणेपगुणाः । प्रत्येक जीवपुद्गलयोपेट् ।"- (आलापपनि गुणाधिकार) जीव में निर्धाग्नि गुणों को जीव कभी भी किमी भी अवस्था में नहीं छोरना। इतना अवश्य है कि कभी कोई गुण मुख्य कर लिया जाता है और दूमो गौर कर लिए जाने है। यह अनेकान्न दृष्टि की अपनी विशेप गेनी है दव्य में गोण किए गए गुण-धर्मो का द्रव्य में मर्वथा अभाव नही हो जानाद्रव्य का बम्प अपने में पूर्ण रहना है । यदि गौण म्प का मर्वथा अभाव माना गाय नो वस्तुम्बाप एकांत-मिथ्या हो जाय और ऐसे में अनेकान्न दृष्टि का भी व्याधान हो जाय । अनेकान्त नभी कार्यकारी है जब वम्न अनेक धर्मा हो-- "अनन्मधर्मणम्तन्वं", "मकनद्रव्य के गुण अनन्त पर्याय अनन्ना।" ___अनेकान्न दृष्टि प्रमाण नयों पर आधारित है और एक देग भाग को जाना होने मे नय दृष्टि पुगपत् वस्तु के पूर्ण रूप को जाना नही हो मकनी--इमलिए नयाधिन जान छपम्प के अधीन होने मे वस्तु के एक देश को जान सकता है। वह अग को जाने-कहे. यहां तक तो ठीक है। पर, यदि वह वस्तु को पूर्ण वैमी और उननी ही मान बंटे नो मिथ्या है । यन वस्तु, शान के अनुमार नही होती अपि नु वस्तु के अनुमार जान होना है। अन जिमने अपनी गति अनुसार जितना जाना वह उसकी शक्ति में (मम्यग्नयानुमार) उतने रूप में ठीक है। पूर्ण प नो केवलज्ञानगम्य है जमा है वैमा है। नय ज्ञान उमे नही जान मकना है। फलन' - आत्मा के म्वभाव कप अमंब्यान प्रदेणत्व को किसी भी अवस्था में नकाग नही जा सकता। स्वभावतः आत्मा निश्चय-नय से तो बसच्यात प्रदेशी है ही, व्यवहार नव मे भी जिसे नगर प्रमाण कहा गया है वह भी असंन्यात प्रदेनी ही है। पन: दोनो नयों को द्रव्य के मूल म्यभाव का नाम इष्ट नहीं । असंख्य प्रदेगिन्य आत्मा का मकान रहने वाला गुण-धर्म है, जो नयों में कमी गोग और कभी मुख्य कहा या गाना गाता है। ऐसे में आत्मा को बनेकान्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67