Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ भगवान पार्श्व के पंचमहाव्रत दिगम्बर मान्यतानुमः र, जैन आगमों की वर्तमान श्रवला. युग के आदिनेता तीर्थकर ऋषभदेव मे अविछिन्न रूप में जुड़ी हुई है। ऋषभदेव द्वारा प्रदर्शित मार्ग को सभी तीर्थकरो ने ममान रूप में प्रवर्तित किया है। इसके मुख्य कारण ये भी हैं कि - १ - मभी तीर्थकर मम-सर्वज्ञ थे अर्थात् सत्रका ज्ञान पूर्ण मदृणना को लिए था । २ - मभी को देणना निरक्षगे थी । ३ - मभी की सर्वज्ञावस्था की प्रवृति मन के विकल्पों मे रहिन थी । उमम हीनाधिक वाचन को स्थान | विकल्पों के अभाव में | नहीं था । 1 तीर्थकरों ने साधुओं के मूलगुण २८, आचायों के ३६ और श्रावकों के व्रत १२ ही बतलाए। इन सबकी मख्या में और सभी के लक्षणों में कोई भ नही किया । डमी प्रकार धर्म १० पाप ५ और मज्ञा ८ की मख्या और लक्षणां में भी उन्होंने कोई भेद नही किया । ऐसी स्थिति में यह कहना कि "भगवान पार्श्वनाथ ने चातुर्याम का उपदेश दिया', 'बीच के बाईम तीर्थकरों के समय मे भी चार ही महाव्रत थे' – आदि, उपयुक्त नहीं जंचना, और ऐसी घोषणाओं मे कि 'तत्कालीन लोगो की बुद्धि तीव्र या मद थी या वे सरल और कुटिलता के भेद को लिए हुए थे' आदि कारण बनाना भी उचित प्रतीत नही होना । जहां तक मैं समझता हू 'चातुर्याम' की मान्यता की स्पष्ट घोषणा श्वेताम्बर आगमों की हैं। इसी के अनुरूप सयम के प्रसग में दिगम्बर्ग में भी १. महावीर देह में भी विदेह थे उन्ही की निरक्षरी वाणी की अनुग़ज वातावरण में है ।' ममणमुत, भूमिका पृ० १६ 'गणधर - जां अहं नोपदिष्ट ज्ञान को 'शब्दबद्ध' करते हैं । वही, पर० शब्दकोष पृ० २६८ । ममणमुन- -'यह एक सर्व सम्मन प्रातिनिधिक ग्रन्थ है । बही, भूमिका २. 'चाउरजामी य जो धम्मो, जो इमो पचमितिाए । - (उत्तरा० २३/१२) - देमिओ वमाणेण पामेण य महामुनी ॥ पुम्मिा उज्युजडाउ बक्कजहाय पच्छिमा । मन्त्रिमा उज्जुपन्नाउ तेण धम्मे दुहा कए || --- (उत्तराध्ययन, २३/२६ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67