Book Title: Jina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Author(s): Padamchand Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 24
________________ जिन-सासन के कुछ विचारणीय प्रसंग मणगार महम्म गोगनाए दर्यान ॥३०॥ -[माताधमंकथा, मेनग गषि अध्ययन ५. पृ० ४८४ श्री अमोलक ऋपि, मिकद्राबाद प्रकाशन] मुन का पावन्चापुन में प्रश्नांना-- 'माण किषयं धम्म पणन ? ननंग थावच्चागुन मुदंमणण एव पुन ममाणे मुदगण वयामी -- मुद्रमणा विणयमूल धम्म पण्णते । मंत्रिय विणए दुबिहे पणनं न नहा- आगार विणाय अणगार विणाय नत्थण से आगार विणा मेवय पत्र अणुबयार मत मिक्खायाड, एक्कारस उवामग पडिमाआत्तो । नयण मे अणगार विणा मण पच महब्बयाई त जहा-मयओ पाणाडवायाओ बंग्मण, मब्बा मुगावायओ बग्मण, मव्याओ महणाओ बेग्मण, गब्बाओ दिन्नाहाणाओ वग्मण, मन्याओ मेहुणाओ बग्मण, मवाओं परिग्गहाओ बग्मण.......||6|| -(वही पृ० २५०) (8) पण अभिधान गजेन्द्रकोप में जहाँ पग्ग्रिही (बाय परिग्रहां) का सकेत है वहां उनमें हिपद' का उल्लंख है-- म्पाट सप में स्त्री का उल्लेख नहीं है यथा - 'धन धान्य क्षेत्र वास्तु सप्य मुवर्ण कुप्य 'द्विपदः चतुष्पदाश्च ।' नथापि यदि यथावाचन स्त्री को द्विपद रूप पग्नित माना जाता है तो पर मात्र गश्या-रिमाण की दृष्टि में ही माना जा गकना है। मिथुन माधी भाग या मंग सम्बन्धित नहीं माना जा सकता। यर परिमाण की यान पग्मिरण परिमाण नामक श्रावक बन के अनीनागं का वर्णन करने बाल मृग म भी पूर्ण स्पष्ट हो जाती है। उम मूत्र में आचार्य ने 'प्रमाणानिकम' पर देकर 'मग्रह मयांदा" को ही गित किया है अभिधान गंज-काल में एक स्थान पर मा भी लिखा है. 'णाणार्माणकणगग्यण महारहारमल 'मानदार" परिजन दासीदाम ......।' उन्न पद में आए 'मगुनदार' शब्द का विश्लेषण करने हुए कॉपकार 'लमय है. गामाग मुतगृतवनमाणि ।' इगम भी "परिमाण" को ही बल 'मनमा है। गंग मिनी पाद्वानी या दाग का परिमाण रक्या नो वह उसके परिमाण में बने के लिए 'सुनयुक्त दानी' बी नहीं रख सकता। क्योकि यदि बह वंगा नो उमको एक मख्याग्मिाण में दोप आ जायगा। यन. दामी माव रहने के कारण उसका पुत्र भी दास कार्य में महायक सिद्ध होगा और बनी बन-भग का कारण होगा। इन प्रसगो से स्पष्ट है कि जिस भाव में ब्रह्मचर्य है वह भाव अपरिग्रह से बस्ता है अत: एक में दूसरे का समावेश नही हो सकता। हो, यदि नीचतान

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