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जसहरचरिउ ५. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
आज ( २०-५-७२ ) को जब मैं यह लिख रहा हूँ तब मेरी स्मृतिमें गत दो-तीन सप्ताहके भीतर घटित हुई वे दो घटनाएँ ताजी हैं जिन्होंने समस्त देशकी मानवीय चेतनाको झकझोर दिया। दोनों ही घटनाएँ पंजाबकी हैं और नर-बलिकी हैं। एकमें दम्पतिने पत्र-प्राप्तिके अन्य उपायों में विफल होकर अपने पुरोहित की सलाहसे किसी दूसरेके पुत्रका बलिदान कर दिया। दूसरी घटनामें माता-पिताने स्वयं अपने
पत्रको बड़ी करतासे काट कर बलि चढा दिया क्योंकि उसका पितामह परलोकसे इसकी प्रेरणा पिताको स्वप्नमें दे रहा था। इस प्रकारके नरबलिकी अन्य भी अनेक घटनाएँ समय-समयपर समाचारपत्रोंमें प्रकाशित होती रही हैं।
इनके प्रकाशमें प्रस्तुत ग्रन्थमें जिस नरबलिकी योजनाकी कथा पायी जाती है वह सर्वथा कल्पित हो ऐसा प्रतीत नहीं होता। वैदिक परम्पराके ऐतरेय ब्राह्मणमें वर्णित शुनःशेपकी कथा सुप्रसिद्ध ही है जिसमें राजा हरिश्चन्द्रको जलोदर रोगसे मुक्त करने हेतु एक पिता स्वयं अपने पुत्रको काटकर बलि चढ़ानेके लिए तत्पर हो गया था, किन्तु भाग्यवशात् नरबलि से बच गया ।
__पंजाबमें बहुत प्राचीन कालसे नरबलिकी प्रथा प्रचलित रही प्रतीत होती है । वर्तमानमें जिसे पंजाब कहते हैं वह प्राचीनकालमें यौधेय देश कहलाता था क्योंकि वहाँ यौधेय नामक जातिके लोग बसते थे और उन्होंका वहाँ राज्य था। महाभारतमें युधिष्ठिरके एक पुत्रका नाम यौधेय पाया जाता है । और आश्चर्य नहीं जो वे अपनेको कुरु या पाण्डववंशी मानते हों। ईसा पूर्व तीसरी-चौथी शतीसे लेकर चतुर्थ शती तक यौधेयोंके ऐतिहासिक उल्लेख पाये जाते हैं। पाणिनि कृत व्याकरणमें भी उनका उल्लेख आया है। रुद्रदामन्के ( १५० ई.) व समुद्रगुप्त ( ३५० ई. के लगभग ) शिलालेखोंमें भी लुधियानासे लेकर रोहतक क्षेत्र तक यौधेयोंकी अनेक मृद् मुद्राएँ, चाँदी व तांबेके सिक्के तथा सिक्के ढालनेके सांचे प्राप्त हुए हैं। वैसे यौधेय सिक्कोंकी उपलब्धि मुलतानसे लेकर सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश ) तक हुई है। इसे सामान्यतः यौधेय राज्य-विस्तारका सूचक ( पूर्व-पश्चिम लगभग ५०० मील ) माना जा सकता है। उत्तर-दक्षिण लुधियानासे विजयगढ़ (वयाना, राजस्थान) तक उनकी मुद्राओं व लेखोंका विस्तार ( लगभग ३०० मील) पाये जानेसे यौधेय देश तीसरी-चौथी शताब्दीमें ५००-३०० मील लम्बा-चौड़ा सिद्ध होता है।
इस डेढ़ लाख वर्गमील विस्तृत विशाल देशकी राजधानी कहाँ थी? इस प्रश्नका उत्तर हमें यौधेयोंके प्राप्त लेखोंसे नहीं मिलता। किन्तु प्रस्तुत ग्रन्थमें यौधेय देशकी राजधानीका नाम 'राजपुर' आया है । यह निस्सन्देह वही है जो पंजाबमें अक्षांश ३१४७७ पर अम्बालासे सरहिन्द-लुधियानाकी ओर उत्तरपश्चिम दिशामें जानेवाले रेलवे व ग्रेडट्रंक रोड पर स्थित है तथा जो दक्षिण-पश्चिमकी ओर पटियाला जानेवाले रेलवे मार्गका जंक्शन है। यह सतलज नदीसे लगभग ५० व चण्डीगढसे लगभग २५ मील दक्षिण की ओर है व उपर्युक्त सीमाओंके राज्य हेतु उपयुक्त राजधानी प्रतीत होती है ।
यौधेयोंका विजयगढ़से प्राप्त हुआ एकमात्र ऐसा लेख है जिसपर निर्विवाद रूपसे उनके राजा “यौधेय-गण पुरस्कृत महाराज महासेनापति का नाम अंकित है। यह प्रस्तुत प्रसंगमें बड़ा महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि प्रस्तुत रचनाके कर्ता पुष्पदन्तने यौधेय देशकी राजपुर राजधानीके राजा मारिदत्तके पिताका नाम प्रकट नहीं किया, तथापि इसी कथाको पुष्पदन्तके समसामयिक कवि सोमदेवने अपने सुप्रसिद्ध 'यशस्तिलकचम्प' में लिखा है। उसमें एकसे अधिक बार यौधेय देशके नरेश व मारिदत्तके पिता का नाम 'चण्ड महासेन' प्रकट किया है । चण्ड तो एक विशेषण है जो उस राजाके उग्र स्वभावको प्रकट करता है, जैसे उज्जयिनीके राजा 'चण्ड प्रद्योत' । किन्तु उनका वैयक्तिक नाम महासेन ही प्रतीत होता है और वह उक्त शिलालेखके महासेनापतिसे अभिन्न हो तो आश्चर्य नहीं । यदि ऐसा हो तो प्रस्तुत ग्रन्थके कथाभागकी मूल घटना तीसरीचौथी शतीकी मानी जा सकती है क्योंकि लिपि आदिके आधारसे विजयगढ़का लेख इसी कालका अनुमान किया गया है। इसकी पुष्टि कुछ अन्य बातोंसे भी होती है।
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