________________
विषयानुक्रम दीक्षाकी याचना तथा सुदत्त आचार्यका आगमन । [२३] राजा द्वारा पूर्वभवों सम्बन्धी प्रश्न, सुदत्तमुनिका उत्तर, राजा यशोधर और रानी चन्द्रमतिका पूर्वभव, गन्धर्वदेश, गन्धर्वगिरि, गन्धर्वपुर, वैधव्य राजा, विन्ध्येश्वरी रानी, गन्धर्वसेन पुत्र तथा गन्धर्वश्री पुत्री । [२४] वैधव्य राजाका मन्त्री राम व उसके पुत्र जितशत्रु और भीम, राजकन्याका जितशत्रुसे विवाह, राजाका आखेट, मृगीका बध, तथा मृगकी विह्वलता देख राजाका वैराग्य व मुनिदीक्षा, गन्धर्वसेनका राज्याभिषेक, विन्ध्यश्रीका मासोपवास और गन्धर्वसेनकी धर्मयात्रा । [२५] वैधव्य मुनिका निदानपूर्वक मरण, उनका तथा विंध्येश्वरीका राजा यशोबंधुरके पुत्र यशोध और रानी चन्द्रमतिके रूपमें, जितशत्रुका यशोधरके रूपमें और गन्धर्वसेनका मारिदत्तके रूपमें पुनर्जन्म । [२६] महिष द्वारा मारा गया अश्व, गायका बछड़ा और फिर मारिदत्त राजाका पुत्र, भीमका जीव कुबड़ा, गन्धर्वश्रीका अमृतमति तथा राममन्त्री व चन्द्रलेखाके जीव यशोमति और कुसुमावली हए। [२७] यशोधकी पत्नि चन्द्रश्री और चन्द्रमतीका सपत्नी-विरोध ही उनके अगले जन्ममें महिष
और अश्वके वैरका कारण, मारिदत्तका पिता चित्रांगद दण्डमारी देवी हुआ, माता चित्रसेना हई भैरवानन्द, यशोबंधर हए कलिंग नरेश भगदत्त और उनके पत्र सदत्त चोरके प्रसंगसे मुनि हुए। [२८] यशोधका मन्त्री गुणसिन्धु हुआ गोवर्धन जिसने यशोमतिका सम्बोधन किया। मारिदत्तकी दोक्षा, भैरवका अनशनव्रत एवं क्षुल्लक और क्षुल्लिका निर्ग्रन्थ व आर्यिका बनना और देव होना । [२९] सुदत्त मुनिका सप्तम स्वर्ग गमन, यशोमति, कल्याणमित्र गोवर्धन, मारिदत्त और कुसुमावली भी तपकर स्वर्गगामी हुए। [३०] कृष्णके पुत्र गन्धर्व द्वारा प्रक्षिप्त वर्णनोंका उल्लेख तथा आत्मपरिचय । [३१] काव्यकर्ता पुष्पदन्तका आत्मपरिचय तथा जगत-कल्याणकी शुभ कामनाके साथ काव्य समाप्ति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org