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१.२६.१० ]
हिन्दी अनुवाद
२९
उसने भले प्रकार द्वारपाल का साक्षात्कार करके सद्व्यवहार के साथ सभा मण्डप में प्रवेश किया और विनयसे अपने मनको भूषित करते हुए सद्भावपूर्वक यशोध राजाका जयकार किया । राजाने ताम्बूलादि देकर उसका सम्मान किया और कुशलप्रश्न पूछनेपर अपनी कुशलकी बात कही। फिर राजाने पूछा - हे मन्त्रि ! कहिए आप यहाँ किस कार्यंसे आये हैं ? इसपर मन्त्रीने कहा - हे राजन् ! इस भूतलपर प्रसिद्ध जन और धनसे समृद्ध वैराट नामका नगर है । वहाँ अपने कुलरूपी कमलको प्रफुल्लित करनेवाले सूर्यके समान विमलवाहन नामका प्रधान नृपति है । उनकी भार्याका नाम श्यामादेवी है जो लाखों सुलक्षणोंसे अंकित क्षीण कटि है । उनकी पुत्री अभय महादेवी है, जो मानो अप्सरा या नाग कन्या हो हो । उसे योवन आरूढ़ हुई देखकर पिताका भाव हुआ कि मैं अपनी पुत्रीका विवाह कर दूँ । उन्होंने अपने समस्त परिवारके लोगों तथा विशेष इष्टजनोंको एवं वृद्ध, विचक्षण शुद्धाचरण वरिष्ठ लोगोंको एकत्र किया। उनसे बोले - हे सज्जनो ! मेरी पुत्रीके लिए कोई वर खोजिए, जो राजपुत्र हो, और गुण सम्पन्न हो । उन सज्जनोंने परस्पर मन्त्रणा करके निर्मल मनसे कहा - हे राजन् ! उज्जयिनी नगरी में राजा यशोधका पुत्र यशोधर है । वही इस कन्याके योग्य वर है । तब राजाने मुझे आदेश दिया और में वहाँ से चलकर यहां आया हूँ | मैंने द्वारपालको लेकर आपको सभामें प्रवेश किया और इस जन-संकुल राजस्थान को देखा । राजाको सिंहासनपर विराजमान देखकर मैंने अपना सिर नवाकर आपके चरणों में प्रणाम किया । आपने मुझसे वार्तालाप करके यहाँ आनेका कार्यं पूछा। तब हे स्वामी, मैंने तत्काल आपको अपनी बात कह सुनायी । अब इसपर विचार करके इस कार्यको कराइए जिससे आप दोनों राजाओं के बीच स्नेहको वृद्धि हो । इसपर राजाने सन्तुष्ट होकर कहा कि हे मन्त्री, आपने जो सब बातें कही हैं वे बहुत अच्छी हैं । कोन ऐसा होगा, जो घृत और दुग्धके बीच वर्णंसे सुन्दर सारभूत शक्करका प्रवेश न चाहता हो । जब मन्त्रीने राजाका यह प्रिय वचन सुना तो वह हर्षित हो उठा। उसने तत्काल ही वरको कन्याका वाग्दान दे दिया और कहा कि अब कन्याको यहाँ लाकर शुभदिन, शुभयोग और शुभलग्नमें विवाह कार्य किया जावेगा । तब राजाने तुरन्त ही उसे कन्या के लिए एक अमूल्य मणिमुद्रिका प्रदान की ।
जनपदकी शान्ति करनेवाला (वह मन्त्री, जिसे सज्जन जानकर सम्मानित किया था, अपने घोड़े पर सवार हो वहाँसे निकला और वैराट नगर में आ पहुँचा ॥२५॥
२६. विवाहकी तैयारी
मन्त्रीने वैराट नगर में पहुँचकर सभा मध्य इन्द्रके समान विराजमान विमलवाहन राजाके दर्शन किये। उस श्रेष्ठ मन्त्रीने भक्तिके भारसहित पृथ्वीपर अपना सिर रखकर राजाके चरणकमलों में प्रणाम किया और कहा - हे देव ! अभयमती कन्याका यशोधके पुत्र यशोधरको वाग्दान कर दिया गया है । अब आप उज्जयिनी जाकर पुण्यका लाभ लीजिए और कन्याका विवाह कीजिए। तब राजाने समस्त सज्जनोंसहित मन्त्रणा की और यह निश्चय किया कि उज्जयिनी चलना चाहिए । फिर राजाके समस्त बान्धव, पुत्र, परिवार के लोग एवं दिव्य भोगोंका उपभोग करनेवाला अन्तःपुर, घोड़ों, हाथियों, रथों व सुभटों सहित चल पड़े और वे उस जगत्प्रसिद्ध नगरी उज्जयिनी में आये । वहाँ उन्होंने नगर के समीप नन्दन-वन में निवास किया। तब वनपालने जाकर राजाको यह समाचार दिया। नगरीके बीच उत्साह उत्पन्न हो उठा और उस वनमें वैरियोंको असह्य उत्सव हुआ । तुरन्त हो विचित्र मण्डपकी रचना की गयी जिसपर पचरंगी ध्वजापताकाएँ
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