Book Title: Jasahar Chariu
Author(s): Pushpadant, Parshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
१४२
जसहरचरिउ
[४. २२. १२२ दुवई-भणइ महीमहंत परमेसर कित्तिमचूलिमारणं ।।
काउं तं भवेसु भमिऊण दुहं पत्तो सि दारुणं ॥१॥ मई पुणु जीवउलई जाई जाई णिहयई को लक्खइ ताई ताई। हउँ णिवडीस मि रउरवतमालि णारयगणहणहणरववमालि। दे देहि देव पावहो णिवित्ति अवलंबमि मणि णिग्गंथवित्ति । भववासपासवेढणचुएण
ता भासिउ कुसुमावलिसुएण । आवेहु जाहँ जिणणाहसिक्ख गुरु देइ महारहु तुज्झु दिक्ख । वयणेण तेण विभियउ राउ आणंदु मणोहरु तासु जाउ । हउँ जणि महग्घु णरवंदणिज्जु सामंतमंतिमंडलियपुज्जु । मज्झु वि सुपुज्ज कुलदेवि आसि सा संजाया खुल्लहहो दासि । खल्लयहो वि जइ गरु अस्थि अवरु तववंतहँ जगि माहप्पु पवरु। जाणिवि संबोहिउ मारियत्तु एत्थंतरि आयउ गुरु सुदत्तु । अवहीसरु सुरणरवंदणिज्जु णिज्जियमयारि तिल्लोकपुज्जु । हयमोहु महामइ गुणसमिद्ध सत्तहिँ मि पवररिद्धीहिं रिद्ध । जज्जरिउ जेण बहुभेयकम्मु तवि संठिउ दसविहु णाइ धम्मु । इल लाइवि जाणुयसिरभुएण गुरु वंदिउ कुसुमावलिसुएण । राएण वि तहो पयपंकया। णवियई उम्मूलियभवसयाई । घत्ता-ता जगपरमेसरु संघाहिउ गुरु धम्मविद्धि सुपयच्छियउ॥
संतुट्ठमणेणं तेण णिवेणं णियसीसत्तु समिच्छियउ ।।२२।।
पुच्छइ मारियत्तु हरिसं गउ कहहि देव णियभव णमियंगउ । गोवड्ढणसिट्ठीहि भवंतर महु भवाई जं जेम णिरंतर । जोईसहु भइरवहु चिराण उ चंडमारिदेविहि सुपहाणउ । णिवइजसोहहो जसैपरिपुण्णहो चंदसिरीहि चंदमइ अण्णहो । जसहररायहो अवगुणभरियहि अभयमहाएविहि अहचरियहि । जसवइणामहो लैच्छिसहायहो कुसुमावलिहि सुमंडियकायहो। माहिंदहो तुरयहो पुणु खुज्जहो एयह कह पयडेहि अणुज्जहो। अवहीसरु जंपइ सुपसिद्धउ अस्थि देसु गंधव्वु सुरिद्धउ ।
सालिछेत्तकणभरपूरियधरु पक्ककलमझंकारमहुरसरु । २२. १. ST को लक्खिवि सक्कइ तित्तियाई। २. ST णिवडिहीमि। ३. ST ताहि वि खुडुउ
गुणरयणरासि । ४. S and T have after this line : वंदियई सुरासुरपुज्जियाई। तहु पायमूलि पणमियसिरेण पावज्ज लइय राएण तेण । ५. Portion beginning with this line and ending with कड़वक 30 line 15 is omitted in S and T. ६. A तहि अवसरि गरुणा
गुणगणगुरुणा धम्मविद्धि सूपयच्छिय । २३. १. Both A and P omit the दुवई from this कडवक onwards; but P gives; in
second hand the following as दुवई-आसियवाउ पडिच्छिय राएं तह मणि आणंदकित्ति णं ( ? )। गुरुएवउ मुणिवि को दोसइ मुहु मणसंसउहेडणं ॥ २. A गुणपरिपुण्णहो । ३. A लच्छिहसणाहो। ४. A आयहं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320