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पाठ ५ सोमदेवकृत नीतिवाक्यामृत (चयनित अंश तथा स्पष्टीकरण)
हमारे भारत देश में स्वातन्त्र्यप्राप्ति के बाद, भारतीय संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का तत्त्व अपनाया गया है । साथ ही साथ भारतीय संविधान ने हरएक नागरिक को धार्मिक स्वातन्त्र्य भी प्रदान किया है । उसी के अनुसार जैनधर्म के धार्मिक लोग आहार-नियम, धार्मिक-क्रिया, स्तोत्र-पठन, जप, उपवास आदि आचार में तत्पर रहते हैं । लेकिन धर्म में आचार का महत्त्व जितना है उससे कई बढकर शाश्वत नीतिमूल्यों का भी (universal ethical values) महत्त्व है। आज के भारत के नवयुवक चाहते हैं कि आचार प्रधानता (religiocity) एवं आध्यात्मिकता (spirituality) से उपर उठकर हम शाश्वत नीतिमूल्यों की आराधना करें ताकि हम विश्व के एक अच्छे घटक बनें ।
जैन आचार्यों ने लिखे हुए साहित्यरूपी समुद्र में बहुत ही गिनेचुने ग्रन्थ ऐसे हैं, जो नीतिमूल्यों को सामने रखकर लिखे हुए हैं। उनमें से सबसे सुन्दर और प्रभावशाली, अमूल्य ग्रन्थ है नीतिवाक्यामृत । जैन आचार्य सोमदेवसूरि ने यह 'संस्कृत भाषा में लिखा है । सोमदेव दसवीं शताब्दि के प्रख्यात दिगम्बर आचार्य है । यह सारा ग्रन्थ गद्य में है और सूत्र पद्धति से लिखा है । वाक्य छोटे-छोटे है लेकिन बहुत बड़ी बात कहने में सोमदेव सिद्धहस्त है।
भारतीय संस्कृति में धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष इन चार पुरुषार्थों को महत्त्व दिया गया है । 'धर्म' पुरुषार्थ में ब्राह्मण परम्परा का मानवधर्मशास्त्र याने 'मनुस्मृति' प्रसिद्ध है । चार में दूसरा पुरुषार्थ 'अर्थ' है । अर्थपुरुषार्थ का एक प्रमुख भाग राजनीति है । राजनीति का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' है । वह चाणक्य याने कौटिल्य ने लिखा है । चाणक्य के बाद कामन्दक' नाम के विद्वान ने लिखा हुआ 'नीतिसार' प्रसिद्ध है । नीतिसार के बाद नीतिवाक्यामृत' एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें शुद्ध राजनीति की चर्चा की गयी है । दसवीं शताब्दि में नीतिमूल्यों पर आधारित जो भी चर्चाएँ की गयी, उसका सार नीतिवाक्यामृत में ग्रथित है। चार में तीसरा पुरुषार्थ है 'काम' पुरुषार्थ । 'वात्स्यायन' नाम के आचार्य का 'कामसूत्र' संस्कृत साहित्य में अमर है। भारतीय परम्परा में तत्त्वज्ञानप्रधान ग्रन्थ 'मोक्षशास्त्र' नाम से प्रसिद्ध है । जैन परम्परा में 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्र' का दूसरा नाम ही 'मोक्षशास्त्र' है। ___ सोमदेव के नीतिवाक्यामृत में कुल ३२ समुद्देश' याने विभाग है । राजनीति का ग्रन्थ होने के कारण कई बाते स्वामी (राजा)-अमात्य-कोश-मन्त्री-पुरोहित-दुत-युद्ध आदि से सम्बन्धित है । तथापि कम से कम ८-१० प्रकरण या विभाग ऐसे हैं जिनमें धर्म-अर्थ-काम-व्यसन-सदाचार-व्यवहार आदि विषयों को परिलक्षित करके सामान्य नीतितत्त्व बहुत ही प्रभावी तरीके से बतायें हैं । इस पाठ में धर्म-अर्थ-काम इन प्रकरणों (समुद्देशों से) कुछ अंश चयनित करके, उनमें निहित नीतिमूल्यों की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है।
(अ) धर्मसमुद्देश १) अथ धर्मार्थकामफलाय राज्याय नमः। अर्थ : धर्म, अर्थ और काम इन तीन पुरुषार्थों का फल देनेवाले राज्य को (राष्ट्र को) वन्दन हो । भावार्थ : धार्मिक ग्रन्थों के आरम्भ में, मंगलाचरण देने की प्रथा प्राय: सभी भारतीय साहित्य में पायी जाती है । जैन आचार्य सोमदेव ने भी, प्रारम्भिक सूत्र में यह प्रथा निभायी है । नीतिवाक्यामृत यह ग्रन्थ राजनीति (politics), अर्थशास्त्र (economics) और मूल्यशास्त्र (ethics) इन तीनों को परिलक्षित करता है । इसी