Book Title: Jainology Parichaya 05
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 40
________________ यात्रा = जत्ता यथा = जहा यादव = जायव 9 १९) य त ल ( शब्द के आरम्भ का 'य' कभी-कभी 'त' या 'ल' में परिवर्तित होता है ।) युष्मद् = तुम्हे यष्टि = लट्ठि कय १२) श, ष, स छ (शब्द के आरम्भ के 'श, ष, स' कभी-कभी 'छ' में परिवर्तित होता है ।) शाव = छाव षण्मुख छम्मुह सुधा = छुहा षष्ठ = छट्ठ गय आ) अनादि असंयुक्त व्यंजनों के परिवर्तन : १) 'य' श्रुति का नियम 'क-ग-च-ज-त-द' इन अनादि व्यंजनों का कभी-कभी लोप होकर, उसकी जगह 'य' का उपयोग किया जाता है। इसी को 'य' श्रुति का नियम कहते हैं। चय जय योगी = जोगी यम = जम यदा = जया तय दय कनक = कणय सकल = सयल नरक = नरय सागर = सायर नगर = नयर आगर = आयर यशोदा = जसोदा यमुना जमुणा आचार = आयार वचन = वयण नीच = नीय सुजन = सुयण गज = गय शीतल = सीयल मारुत = मारुय कृत = कय पाद = पाय वेद = वेय सदा = सया वसुमती = वसुमई उ : रिपु = रिउ ऋतु = उउ = जनक = जणय उदक = उयय लोक = लोय मगर = मयर मृग = मिय कवच = कवय उपचार = उवयार काच = काय पूजा = पूया गीत = गीय २) अनादि असंयुक्त व्यंजनों का कभी-कभी लोप होकर, उसके बदले 'इ', 'उ' और 'ए' इन स्वरों का उपयोग किया जाता है । इ : कोकिला = कोइला सीता = सीया शीत = सीय हृदय = हिय प्रसाद = पसाय गदा = गया जाति = जाइ वनराजि = वणराइ वायु नूपुर = नेउर = वाउ 40

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