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२) इस पाठ में अंतर्भूत संस्कृत शब्दों के प्राकृत रूप लिखिए ।
उदा. सैन्य - सेन्न ; पौर- पोर, पउर; घृत
घय ; ऋषभ
ब) प्राकृत में व्यंजनपरिवर्तन
भाषा स्वर और व्यंजनों से बनती है। 'प्राकृत' नाम की कोई 'एक' भाषा नहीं है । वह भाषाओं का समूह है। भारत की सबसे प्राचीन ज्ञात बोलचाल की भाषा 'अर्धमागधी' थी। शौरसेनी और महाराष्ट्री ये तत्कालीन भारत की दो प्रमुख बोलीभाषाएँ थी। जैन आचार्यों ने उनमें समयोचित परिवर्तन लाकर 'जैन महाराष्ट्री' और 'जैन शौरसेनी' में कई ग्रन्थ लिखें। ईसवी की आठवीं शताब्दी से 'अपभ्रंश' भाषाएँ प्रचार में आने लगी । हेमचन्द्र नामक जैन आचार्य ने प्राकृत भाषाओं का लिखा हुआ व्याकरण सबसे प्रमाणित माना जाता है ।
उच्चारण के प्रकार
कंठ्य (velars)
तालव्य (palatals ) मूर्धन्य ( cerebrals )
दन्त्य (dentals )
ओष्ठ्य (labials)
प्रस्तुत पाठ में सामान्यतः प्राकृत में पाये जानेवाले व्यंजन (constants) और संस्कृत की तुलना में, उसमें पाये जानेवाले 'परिवर्तन' याने बदल संक्षेप में दिये हैं ।
प्राकृत के व्यंजन (constants )
वर्ग
व्यंजन
क्, ख्, ग्, घ्, ङ्
च्, छ्, ज्, झ, ञ्
-
क
च
ट
त
प
शत = सय
कृषि = किसि
शाखा = साहा शमी = समी
अन्तस्थ वर्ण
ऊष्म वर्ण
महाप्राण
रिसह इ.
I
१) वर्गीय व्यंजनों के पाँच गुट हैं । उन्हें 'क' वर्ग, 'च' वर्ग, 'ट' वर्ग, 'त' वर्ग और 'प' उनमें से प्रत्येक के आरम्भ के दो वर्णों को 'कठोर वर्ण' कहते हैं जैसे कि और प् फ् । बाद के दो वर्णों को 'मृदु व्यंजन' कहते हैं जैसे कि ग् घ्, ज्-झ, ड् ढ् द् ध्, ब् भ् ।
वर्ग कहते हैं । क् ख् च् छ, ट् ठ्, त्-थ् · ट्-ठ्,
-
२) पाँचों वर्गों के अन्तिम व्यंजनों का उच्चारण 'नाक' से होता है । इसलिए उनको 'अनुनासिक' (nasal) कहते हैं। ङ्, ञ, ण, न्, म् ये पाँच व्यंजन 'अनुनासिक' व्यंजन हैं।
ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्
त्, थ्, द्, ध्, न्
प् फ् ब् भ् म्
य्, र्, लृ, ब्
कौन कौनसे व्यंजन प्राकृत में नहीं है ?
१) प्राकृत में और खास कर, अर्धमागधी और महाराष्ट्री में 'श' और 'ष' ये व्यंजन नहीं हैं । उन दोनों के बदले 'स' का उपयोग पाया जाता है ।
,
कषाय = कसाय
भूषण = भूसण
शशिन् = ससि
मूषक = मूसग, मूसय
स्
ह
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