Book Title: Jainology Parichaya 05
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 53
________________ पाठ ११ छत्त परिक्खा अत्थि एगम्मि नयरे चाउव्वेओ बंभणो दुवे छत्ता तं विण्णवेंति 'तुम्हे अम्हाणं वेयंतं वक्खाणह ।' बंभणो भणइ 'अहं तुब्भं वेयंतं सिक्खावेमि । किंतु तत्थ विहाणमत्थि ।' तओ एगो छत्तो बीयं भइ 'तुमं आयरियं पुच्छ केरिसं तं विहाणं' ति । सो बंभणं पुच्छइ भयवं वयं तुम्भेहिंतो सोउं इच्छामो केरिसं - तं विहाणं' ति । - - आयरिओ भइ 'तुमए काल - चउद्दसीए सेओ छालओ मारेयव्वो जत्थ न कोइ पासइ । तत्थ तस्स मंसं भुंजियव्वं । तओ वेयंत - सुणण - जोग्गो होसि ।' एगो छत्तो पडिभणइ - 'मए एयम्मि जत्तो कि । तुम्हे आसीसं देह ।' बंभणो भणइ - 'मम आसीसो तुज्झाणं कए अत्थि एव । किंतु तवं बुद्धीए परिक्खा अत्थि ।' छत्ता भणति 'अम्हे गच्छामो ।' आयरिओ आसीसं देइ भणइ य 'तुम्हेसुं जो विहाणं सम्म करे, सो मज्झ पट्टसीसो । ' तओ एगो छत्तो सेय छालगं गेण्हइ, काल-चउदसी रत्तीए सुन्न रत्थाए य गच्छइ । छगलयं मारेइ । तस्स मंसं भुंजइ, पडिनियत्तइ य । उवज्झाओ जाणइ 'अजोग्गो, न किंचि परिणयमेयस्स' त्ति । न वक्खाणेइ तस्स वेय-रहस्सं । - दुइओ वि तहेव सुन्न रत्थाए गच्छइ । चिंतेइ य - एत्थ तारगा पेच्छति । तओ देवउलं गच्छइ, चिंतेइ य - 'एत्थ देवो पेच्छइ ।' तओ सो सुन्नागारे गच्छइ, तत्थ वि चिंतेइ "एत्थ अहं, एसो छगलओ, अइसय नाणी य पेच्छति । जत्थ न कोइ पासइ तत्थ मारेयव्वों' त्ति उवज्झाय वयणं । ता एस भावत्थो 'एसो न मारेयव्वो' त्ति ।” पडिगच्छइ उवज्झायस्स पाय मूले। साहेइ तं जं तस्स परिणमियं । संतो उवज्झाओ भणइ - 'तं बुद्धिमंतो, अज्जप्पहुइ मम पट्टसीसो तुमं' ति । - (प्राकृत कथा के आरम्भ में जब 'अत्थि' यह क्रियापद आता है तब उसका अर्थ भूतकालवाचक होता है। उसका अर्थ है 'था' ।) . - छात्र- परीक्षा (अनुवाद) एक नगर में चार वेद जाननेवाला ( चतुर्वेदी) एक ब्राह्मण था । दो छात्रों ने उसको बिनती की - 'आप हमें वेदान्त का व्याख्यान कीजिए ।' ब्राह्मण ने कहा, 'मैं तुम्हें वेदान्त पढाऊँगा । किन्तु उसकी एक शर्त है ।' तब एक छात्र ने दूसरे से कहा, 'तुम आचार्य से पूछो कि वह शर्त कौनसी है ?' उसने ब्राह्मण से पूछा, 'भगवान, हम आपसे सुनना चाहते हैं कि वह शर्त कौनसी है ? ' आचार्य ने कहा, 'तुम्हे कृष्ण चतुर्दशी को श्वेत छगल (बकरा ) मारना होगा जहाँ कोई भी देख न सके । उधर ही उसके मांस का भोजन करना होगा । तभी तुम वेदान्त - श्रवण के योग्य हो जाओगे ।' पहले छात्र ने कहा, ‘मैं इसमें प्रथम प्रयत्न करूँगा । आप मुझे आशीर्वाद दीजिए ।' ब्राह्मण ने कहा, 'मेरे आशीर्वाद तुम्हारे लिए हमेशा है । किन्तु इसमें तुम्हारे बुद्धि की परीक्षा है ।' छात्रों ने कहा, 'हम जाते हैं ।' आचार्य ने आशीर्वाद देकर बोला, 'तुम में से जो छात्र अच्छी तरह से शर्त निभायेगा, वह मेरा पट्टशिष्य होगा ।' तब पहले छात्र ने श्वेत छगल लिया, कृष्ण चतुर्दशी की रात में शून्य (निर्जन) रास्ते पर गया । छगल को मारा । उसका मांस भक्षण किया और वापस आया । उपाध्याय ने जाना, 'यह अयोग्य है । इसको कुछ भी नहीं समझा है ।' (उपाध्याय ने) उसको वेद - रहस्य (वेदान्त) नहीं बताया । दूसरा भी उसी तरह निर्जन मार्ग पर गया और सोचा, 'यहाँ तो तारकाएँ देख रही हैं। उसके पश्चात देवकुल (मन्दिर) में गया और सोचा, 'यहाँ तो देव देख रहा है।' उसके अनन्तर वह शून्यघर में गया । वहाँ भी उसने सोचा, “यहाँ तो मैं भी हूँ, यह छगल है और कोई अतिशय ज्ञानी सर्वज्ञ भी देख रहे हैं । 'जहाँ 53

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