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कोई भी देख नहीं रहा है वहाँ छगल को मारो'-ऐसा उपाध्याय का वचन है । उसका भावार्थ यह हुआ कि, 'छगल को न मारो ।" वह उपाध्याय के चरण में लौट गया । उसको जो भावार्थ समझा था, उसको उसने उपाध्याय से कहा।
उपाध्याय सन्तुष्ट होकर बोले, 'तुम बुद्धिमान हो । आज से तुम मेरे पट्टशिष्य हो ।'
तात्पर्य : वेद के अन्तिम भाग को 'वेदान्त' कहते हैं । वेदान्त में आत्मासम्बन्धी विचार किया है । यह पवित्र शास्त्र होने के कारण वेदान्त की पढाई में हिंसा का कोई सम्बन्ध नहीं है । यद्यपि समाज में पशबलि की प्रथा थी फिर भी श्रेष्ठ आत्मज्ञान अहिंसा से ही प्राप्त होता है - यह इस कथा का तात्पर्य है।
स्वाध्याय
प्रश्न १ : इस पाठ में निहित निम्नलिखित वर्तमानकालवाचक क्रियापदों की मूल क्रिया, पुरुष
और वचन लिखिए। विण्णवेंति, सिक्खावेमि, भणइ, भणंति, गच्छामो, करेइ, गच्छइ, मारेइ, पडिनियत्तइ, जाणइ, पेच्छंति, चिंतेइ, पासइ, साहेइ, भुंजइ, पडिगच्छइ उदाहरणार्थ : विण्णवेंति - मूल क्रिया ‘विण्णव', वर्तमानकाल, तृतीयपुरुष, बहुवचन
प्रश्न २ : निम्नलिखित आज्ञार्थ क्रियापदों के पुरुष और वचन लिखिए । वक्खाणह, देह
प्रश्न३ : निम्नलिखित नामविभक्ति के रूप पहचानिए । नयरे, बंभणो, छत्ता, तारगा, देवउलं, वयणं, परिक्खा उदाहरणार्थ : नयरे - मूल शब्द 'नयर', अकारान्त नपुंसकलिंगी, सप्तमी एकवचन
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