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दिगम्बरों में समन्वय करने की भरसक कोशिश की। लेकिन वे उसमें असफल रहें । इतिहासकार कहते हैं कि अरोक्त चार संघों में से केवल काष्ठासंघ ही आज जीवित है।
सांप्रत काल में दिगम्बर सम्प्रदाय के दो पन्थ प्रचलित हैं। __ अ) बीसपन्थी लोगों के धार्मिक नेताओं को 'भट्टारक' कहते हैं । क्षेत्रपाल, भैरव आदि दैवतों की प्रतिमा पूजेत हैं । पूजा में केशर और फूलों का उपयोग करते हैं । तीर्थंकरों की आरती भी उतारते हैं।
ब) तेरापन्थी लोग भट्टारकों का नेतृत्व नहीं मानते । आसनस्थ रहकर, जपमाला की सहायता से मंत्रोच्चार आदि करते हैं । पूजा का आडम्बर उन्हें मान्य नहीं है । तेरापन्थी और बीसपन्थी सनातनी लोग, एकदूसरे के मंदिरमें भी नहीं जाते । महाराष्ट्र और गुजरात में बीसपन्थियों की संख्या ज्यादा है । राजपुताना, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश मेरापन्थियों की संख्या ज्यादा है । कर्नाटक के श्रवणबेळगोळ में चारुकीर्ति भट्टारक, सांप्रत काल में प्राकृत और जैनविद्या के अभ्यास का सुदृढ केन्द्र बनाने में जुटे हुए हैं।
क) इसके अलावा दिगम्बर सम्प्रदाय में सोलहवीं शती में 'तारणस्वामी'द्वारा मूर्तिपूजानिषेधक पन्थ की स्थापना हुई, जो ‘तारणपन्थ' कहलाता है । इनके अनुयायी विशेष रूप से मध्यप्रदेश में है ।
अठारहवीं सदी में 'गुमानराम'द्वारा 'गुमानपन्थ' की स्थापना हुई। सांप्रत काल में कांजीस्वामी के अनुयायियों का एक अलग सम्प्रदाय भी प्रचलित है।
अल्पसंख्याक जैन समाज उपरोक्त सम्प्रदाय-उपसम्प्रदाय में विभाजित होने के कारण, एक व्यासपीठपर आने का प्रयास नहीं करता था। लेकिन इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करते-करते जैन युवक-युवतियों में 'जैन एकता' कउमंग जागृत हो रही है । ये नयी चेतना की लहर, भेदविरहित एकसंध जैन समाज का निर्माण करेगी।
स्वाध्याय अ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न १ : जैनधर्म के दो मुख्य सम्प्रदाय कौनसे हैं ? प्रश्न २ : श्वेताम्बरियों के तीन उपसम्प्रदायों के नाम लिखिए । प्रश्न३ : दिगम्बरियों के दो मुख्य उपसम्प्रदायों के नाम लिखिए ।
ब) बडा प्रश्न (गुण ५) प्रश्न : श्वेताम्बर-दिगम्बर के मतभेदों की तुलना, पाठ के आधार से लिखिए ।