Book Title: Jainology Parichaya 04
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 47
________________ व्याकरण विवेचन : इस कथा में पूर्वकालवाचक धातुसाधित अव्ययों का उपयोग किया गया है। आरोहिऊण, पासिऊण, चिंतिऊण, दळूण, नाऊण, नमिऊण, आलोएऊण, ओयरित्ता, पासित्ता, गंतूण, नच्चा, चिंतेत्ताण - ये सब रूप पूर्वकालक्नक धातुसाधित अव्यय हैं। _ 'पूर्वकालवाचक' का मतलब है - दो घटनाओं में से जो घटना पहले हुई है, उसका सूचन करनेवाला शब्द / 'धातुसाधित' का मतलब है - क्रियापद (verb) से बना हआ। अव्यय' का मतलब है - जिस शब्द रूप में किसी भी तरह से बदल नहीं होता / अव्यय वाक्य में जैसे के तैसे उपयोग में लाये जाते हैं। उनके काल, विभक्ति, फुष, वचन नहीं होते। मराठी में ‘करून, खाऊन, पाहून, जाऊन' आदि जो रूप दिखायी देते हैं वे पूर्णत: प्राकृत के प्रभाव से आये हैं / पू.का.धा.अ. दो प्रकार से बनते हैं / 1) नियमित, 2) अनियमित 1) नियमित पू.का.धा.अ. रूप : I) अकारान्त धातुओं (verb) को 'इऊण' और इतर धातुओं को 'ऊण' प्रत्यय लगाकर ये रूप बनते हैं / II) सभी धातुओं को (क्रियापदों को) 'इत्ता, एत्ता, इत्ताणं, एत्ताणं, इत्तु और एत्तु' ये प्रत्यय लगते हैं / इसके कुछ उदाहरण - पास (देखना) - पासिऊण, पासित्ता, पासेत्ता, पासित्ताणं, पासेत्ताणं, पासित्तु, पासेत्तु कर (करना) - करिऊण, करित्ता, करेत्ता, करित्ताणं, करेत्ताणं, करित्तु, करेत्तु गा (गाना) - गाऊण, गाइत्ता, गाएत्ता, गाइत्ताणं, गाएत्ताणं, गाइत्तु, गाएत्तु ने (लेना) - नेऊण, नेइत्ता, नेएत्ता, नेइत्ताणं, नेएत्ताणं, नेइत्तु, नेएत्तु / हो (होना) - होऊण, होइत्ता, होएत्ता, होइत्ताणं, होएत्ताणं, होइत्तु, होएत्तु 2) अनियमित पू.का.धा.अ. रूप : ये रूप संस्कृत शब्दों के साक्षात् (direct) प्राकृतीकरण से बनते हैं / अनियमित होने से भी इन्हें ध्यान में रखना पडता है क्योंकि प्राकृत आगम तथा कथाओं में ये बार बार पाये जाते हैं / इसके कुछ उदाहरण - किच्चा (कृत्वा) - करके सोच्चा (श्रुत्वा) - सुनकर पेच्छिय (प्रेक्ष्य) - देखकर नच्चा (ज्ञात्वा) - जानकर गहाय (गृहीत्वा) - ग्रहण करके पणम्म (प्रणम्य) - प्रणाम करके **********

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