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१४) पुद्गल :
'पुद्गल' द्रव्य अजीव एवं अमूर्त (रूपी) है। 'पूरण' और 'गलन' उसका स्वभाव है । इसलिए उसके स्कन्ध बनते हैं । प्रत्येक परमाणुपर वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श, ये चार गुण रहते हैं। सभी जीवों के शरीर 'पुदालमय'
है ।
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स्वाध्याय
* ये चौदह परिभाषाएँ जैन तत्त्वज्ञान की मूलभूत परिभाषाएँ हैं । विद्यार्थी इन्हें समझबूझकर कंठस्थ करें ।
* 'परिभाषा दीजिए' - इस प्रकार का लगभग चार गुणों का प्रश्न परीक्षा में पूछा जायेगा
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