Book Title: Jainology Parichaya 04
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 42
________________ ७. प्राकृत में स्वरपरिवर्तन (सामान्य नियम) प्राकृत भाषाएँ प्राचीन काल से बोलीभाषाएँ थी। सबसे प्राचीन प्राचीन प्राकृत भाषा 'अर्धमागधी' मानी जाती है। उसके बाद शौरसेनी' एवं 'महाराष्ट्री' भाषा के ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। बोलचाल की भाषाएँ जब ग्रन्थेखन की भाषाएँ बनीं, तब उच्चारण तथा व्याकरण के नियम बनने लगे । इन नियमों का आधार प्रमाणित संस्कृत भाषा थी। वररुचि' तथा 'हेमचन्द्र' ने प्राकृत भाषा का व्याकरण लिखा । उसके आधारपर, इस पाठ में स्वर-परिवर्तन के नियम दिये हैं * प्राकृत में सामान्यत: निम्नलिखित स्वर (vowels) पाये जाते हैं । - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ। * संस्कृत में पाये जानेवाले निम्नलिखित स्वर प्राकृत में नहीं हैं। - ऋ , ल , ऐ, औ , अः । * प्राकृत में नहीं पाये जानेवाले उपरोक्त स्वरों का प्राकृत में सुलभीकरण (implification) होता हैं । इस पाठ में प्राकृत में सामान्यत: पाये जानेवाले स्वर-परिवर्तन दिये हैं । १) 'ऐ' स्वर के स्थान में 'ए' तथा 'अई' का उपयोग पाया जाता है। कैलास - केलास, कइलास कैकयी - केगई दैव - देव्व, दइव मैत्री - मेत्ती (मित्ती) दैवत - देवय वैशाली - वेसाली वैकुंठ - वेगुंठ, वइकुंठ वैरि - वेरि, वइरि वैद्य - वेज्ज वैश्य - वइस्स सैन्य - सेन्न, सइन्न शैल - सेल २) 'औ' स्वर के स्थान में 'ओ' तथा 'अउ' का उपयोग पाया जाता है। औषध - ओसह कौतुक - कोउय कौमुदी - कोमुई कौरव - कउरव गौरी - गोरी, गउरी गौरव - गउरव गौतम - गोयम पौर - पोर, पउर यौवन - जोव्वण पौरुष - पउरिस ३) प्राकृत में 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' पाया जाता है। राम: - रामो देवः - देवो महावीर: - महावीरो गणेश: - गणेसो वाणर: - वाणरो सूर्यः - सूरिओ ४) 'ऋ' स्वर के स्थान में प्राकृत भाषा में बहुत परिवर्तन पाये जाते हैं । 'ऋ' का रूपांतर प्राकृत में 'अ', 'इ', 'उ' तथा 'रि' में होता है । प्रत्येक के उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से पाये जाते हैं । I) ऋ = अ कृत - कय घृत - घय

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