Book Title: Jain Tattva Darshan Part 02 Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai Publisher: Vardhaman Jain Mandal ChennaiPage 12
________________ B. प्रभु स्तुतियाँ अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम। तस्मात कारुण्य भावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर।। जेना गुणो ना सिंधुना बे बिंदु पण जाणुं नहिं, पण एक श्रद्धा दिलमही के नाथ सम को छे नहिं। जेना सहारे क्रोडो तरीया, मुक्ति मुज निश्चय सही, एवा प्रभु अरिहंतने पंचांग भावे हुं नमुं। सवि जीव करुं शासनरसी, आ भावना हैये वहु, झरणा करुणाना बनी हु, जीवनभर वहेतो रह। शणगार संयमना सजु, झंखु सदा शिवसुंदरी, प्रभु आटलु जनमोजनम, देजो मने करुणा करी ।। (SHE.. Coooooooo c. श्री चौबीस जिन चैत्यवंदन पद्म प्रभ ने वासुपूज्य, दोय राता कहिये, चन्द्रप्रभ ने सुविधिनाथ, दोय उज्जवल लहिये ।। 1 ।। मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दोय नीला निरख्या, मुनिसुव्रत ने नेमनाथ, दोय अंजन सरिखा ।। 2 ।। सोले जिन कंचन समा, एहवा जिन चोवीश, धीर विमल पंडित तणो, ज्ञान विमल कहे शिष्य ।। 3 ।। D. श्री सामान्य जिन स्तवन जिन तेरे चरण की शरण ग्रहं... हृदय कमल में ध्यान धरत हु, शिर तुज आण वहं तुम सम खोल्यो देव खलक में, पेख्यो नहीं कबहुं तेरेगुणों की जपुंजपमाला, अहर्निश पाप दहुं मेरे मन की तुम सब जानो, क्या मुख बहोत कहुं कहे जस विजय करो त्यु साहिब, ज्युं भवदु:ख न लहुं . जिन. ।। 1।। जिन. ||2|| जिन. ||3|| जिन. ||4|| जिन. ।।5।। HI 101 ..---Page Navigation
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