Book Title: Jain Tattva Darshan Part 02
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 35
________________ इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! बेसणे ठाउं? 'इच्छं' (फिर) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहुं? 'इच्छं' (फिर) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करूं? 'इच्छं' । (ऐसा कहकर दोनों हाथ जोड़कर नवकार मंत्र तीन बार गिनना। फिर दो घड़ी तक स्वाध्याय या नवकार आदि का ध्यान करना।) D. सामायिक पारने की विधि इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए, मत्थएण वंदामि। (इस प्रकार खमासमण पूर्वक पहले की तरह इरियावहियं, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ का पाठ बोलकर चंदेसु निम्मलयरा तक लोगस्स न आवे तो चार नवकार का काउस्सग्ग करें और 'नमो अरिहंताणं' बोलकर प्रगट लोगस्स कहें। फिर खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुँहपत्ति पडिलेहुँ ? 'इच्छं' (कहकर पचास बोल से मुहपत्ति पडिलेवे) (फिर खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पारूं? 'यथाक्ति' (फिर खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पार्यु ? 'तहत्ति' (कहकर दाहिने हाथ को चरवले या आसन पर रखकर व मस्तक को झुकाकर एक नवकार गिनकर सामाइय वय जुत्तो बोलना। फिर स्थापनाचार्यजी के सामने दाहिना हाथ उल्टा (अपने मुँह के सन्मुख खड़ा रखकर) एक नवकार गिने । 33

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