Book Title: Jain Tattva Darshan Part 02
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ B. नव अंग पूजा के दोहे 1. अंगुठा : जलभरी संपूट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत; ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत ।। 1 ।। - (परमात्मा ने चरणो द्वारा विहार करके अनंत उपकार किया।) 2. ढींचणाः जानुबले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश-विदेश; खडा खडा केवल लद्यु, पूजो जानु नरेश ।। 2 ।। (खडे खडे कायोत्सर्ग एवं परिषह सह किया।) 3. कांडे : लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान; कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवि बहुमान।। 3 ।। (दान देकर जगत का दारिद्र दूर किया।) 4.खंभे मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत; भुजाबले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत ।। 4 ।। (शक्ति का अहंकार नहीं करते हुए उपसर्ग सहन किया।) 5.मस्तक-शिखा : सिद्धशिला गुण उजली, लोकांते भगवंत; वसीया तेणे कारण भवि, शिरशिखा पूजंत।। 5 ।। (चौदह राजलोक के अग्रभाग पर स्थान प्राप्त किया।) 6. कपाल तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत; त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत ।। 6 ।। (तीन भुवन में परमात्मा तिलक समान है।) 7. कंठ सोल प्रहर प्रभु देशना, कंठे विवर वर्तुल; मधुरध्वनि सुरनर सुणे, तिणे गले तिलक अमूल ।। 7 ।। (देशना देके भव्य जीवों का उद्धार किया।)

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56